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________________ Sawan 106 रियाका - एक शिखर पुरुष ___डॉ. शेखरचन्द्रजी से मेरी पहली मुलाकात भावनगर (गुजरात) में हुई थी, जब मैं पर्युषण पर्व में प्रवचनार्थ सन् १९८१ सितम्बर में वहाँ गया था। गुजरात में एक बुन्देलखण्ड की संस्कृति और भाषा में रचापचा एक बुन्दली । व्यक्तित्व। चेहरे पर मुस्कान और मुझे बुन्देलखण्ड का जानकर बुन्देली लालित्य में अनेक मुहावरों से समिश्र भाषा ने अपनापन का बीज बो दिया। 25 वर्ष में पचासों मुलाकातें और बीना (म.प्र.) में निकट की रिश्तेदारी होने से आने जाने के क्रम में हर मुलाकात को एक नई समझ और वात्सल्य से आपूरित रखा। हर व्यक्ति के व्यक्तित्व को हर दूसरा व्यक्ति अपने दृष्टिकोण और भावना से रेखांकित करता है। मैंने 3 बातें डॉ. शेखर में देखीं___(1) स्पष्टवादिता (2) अभिव्यक्ति की परिपूर्णता और (3) स्वाभिमान (बुन्देलखण्डी-ठसक) __मेरी प्रशंसा करने में उन्होंने कभी भी शब्दों की कंजूसी नहीं की और यह उनकी गौरव गरिमा है कि दूसरों । में अल्प का भी वे सम्मान करते हैं। ___ समाज ने विद्वानों का सम्मान करने और अभिनन्दन ग्रन्थों के माध्यम से व्यक्तित्व को विराट कहने की सीख उन्होने धर्म गुरु-दिगम्बर संतो की सत्प्रेरणा से लेकर सारस्वत और श्रीमन्त के बीच के सह सम्बन्धों में मिठास घोली है। ___डॉ. शेखरजी का सम्मान, इसी श्रृंखला की एक कड़ी है। जैन समाज के लगभग सभी पुरस्कारो को आपने प्राप्त किया है और अपनी जीवन क्रियाशीलता को इस ढलती उम्र में भी ऊर्धारोहण पर कायम किया है। डॉ. शेखरचन्द्रजी एक "Self made man' हैं जिन्होने हर संघर्ष को भुनाया है और आज भारत में ही नहीं जहाँ परदेश में अमरीका केनेडा-लंदन-आफ्रिका जाकर जैनधर्म संस्कृति और ध्यान का प्रशिक्षण देकर बहुश्रेयस और बहुश्रुत हुए हैं। मैं आपके दीर्घायु की मंगलकामना करता हूँ तथा विद्वान इसलिए ज्यादा जिये कि वह मानवता के श्रेयस के लिए जीता है। युग को एक दुष्ट के विनाश के लिए सौ सज्जन चाहिए। ऐसे व्यक्तित्व । सज्जनों की पंक्ति को लम्बा करने और कराने में अपना अप्रतिम योगदान देते रहेंगे। इस भावना के साथ मैं डॉ. शेखरचन्द्र को अपना बड़ा भाई और मित्र मानकर अपनी सम्पूर्ण हार्दिकता उन्हे भेंट करता हूँ। प्राचार्य पं. निहालचंद जैन (बीना) ta ઈન્દ્રધનુષી વ્યક્તિત્વ એક વ્યક્તિ અનેક કાર્યો લગભગ એકી સાથે સફળતાપૂર્વક કઈ રીતે કરી શકે છે તેનું જાગતું ઉદાહરણ શ્રી ડો. શેખરચંદ્ર જૈન છે. જેટલો પરિચય રહ્યો તેટલામાં સંકલ્પને સક્રિય કરવાની શક્તિ અને લીધેલા ! કાર્યો કોઇપણ સ્વરૂપે પૂરા કરવાની ક્ષમતા ઊડીને આંખે વળગતી. - કેળવણી જે શીખવે છે તેના કરતા જીવન પોતે ખૂબ શિખવાડે છે. શ્રી જૈન સાહેબ પોતાના જ જીવનમાંથી સતત પોતાને તૈયાર કરતા રહ્યા. નાનો મોટો અરોહ તેમને મન અવસર બની જાય છે. તેમણે આદરેલા અનેક કાર્યો જેમાં અવરોધો નિત નવા અને ન હોય ત્યાથી ડોકાઈ જતા પણ તેના અદ્ભુત પુરુષાર્થથી એ બધાને પાર કરી દેતા. મને સ્મરણ થાય છે એ ઘટનાનું કે ત્યારે તેઓ એક ટ્રસ્ટ બનાવી જૈન દર્શનની પ્રવૃત્તિઓ વિસ્તારવાના !
SR No.012084
Book TitleShekharchandra Jain Abhinandan Granth Smrutiyo ke Vatayan Se
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShekharchandra Jain Abhinandan Samiti
PublisherShekharchandra Jain Abhinandan Samiti
Publication Year2007
Total Pages580
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size21 MB
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