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________________ 93 - जुझारू व्यक्तित्व के धनी ___ डॉ. शेखरचन्द्र जैन को मैं सन् १९७७ के भाद्रपद मास से जानता हूँ, जब मैं भावनगर समाज की ओर से दशलक्षण पर्व पर प्रवचनार्थ आमन्त्रित था। उस समय वे भावनगर के किसी कॉलेज में हिन्दी विभाग में प्रवक्ता के रूप में कार्यरत थे। यद्यपि उनका जन्म अहमदाबाद में हुआ, वहीं शिक्षा वगैरह हुई किन्तु वे पूरी तरह बुन्देलखण्डी हैं; क्योंकि उनके माँ बाप और समस्त परिवार बुन्देलखण्डी हैं। जब वे ठेठ बुन्देलखण्डी बोलते हैं, तो हम लोग पीछे रह जाते हैं और लगता नहीं कि इस व्यक्ति का जन्म और पालन पोषण गुजरात में हुआ। उनके व्यक्तित्व की विषेषता है कि जितना मैं उन्हें बुन्देली मानता हूँ, उतना ही गुजरात के लोग उन्हें गुजराती। वे दिगम्बर, श्वेताम्बर सबमें घुले मिले हैं। उनका पर्युषण पर्व श्वेताम्बरों के साथ शुरू होता है और दिगम्बरों के साथ अनन्त चतुर्दशी को समाप्त होता है। वे पण्डित, समाज सुधारक, समाजसेवी, ओजस्वी वक्ता और सुयोग्य लेखक भी हैं। ग्राम्य लोगों में बैठा दिया जाय तो ग्रामीण हैं और शहर में रहने के कारण नागरिक तो हैं ही। अपने व्यक्तित्व के कारण वे सब जगह प्रतिष्ठित हैं और हर जगह अपनी धाक जमाने के कारण मैं उन्हें जुझारू व्यक्तित्व का मानता हूँ। कठिनाईयों से यह व्यक्ति लड़कर आगे बढ़ा है, अतः इसमें सहृदयता है। अस्पताल के माध्यम से वे समाजसेवा कर रहे हैं। किसी संस्था को खड़ी करना आसान है, किन्तु उसे निरन्तर चलाना और आगे बढ़ना, उतना ही कठिन है। बिना समर्पण और योग्यता के यह कार्य नहीं हो पाता। उन्होंने कानजीभाई के एकान्तवाद । की आँधी को रोकने में अपना योगदान दिया है। । उनकी विदेश यात्रायें भी सार्थक रही हैं। मैं उनके प्रति हार्दिक शुभकामनायें व्यक्त करता हूँ। वे इसीप्रकार । धर्म और समाज की सेवा करते रहें। उन्हें दीर्घायुष्य प्राप्त हो। डॉ. रमेशचन्द जैन (बिजनौर) भू.पू. अध्यक्ष-अ.भा.दि. जैन विद्वत परिषद a जैन एकता के सक्रिय प्रतिनिधि यह जानकर अतीव प्रसन्नता हुई कि डॉ. शेखरचन्द्रजी जैन के सम्मान में अभिनन्दन ग्रंथ का प्रकाशन हो रहा है। आज ६८ वर्ष की आयु में भी आप साहित्य तथा समाज-सेवा में पूर्णरूप से सक्रिय हैं। __ अत्यन्त साधारण स्थिति में भी श्री शेखरचन्दजी शिखरकी और ऊपर चढ़ने में सदैव तत्पर और आशावान रहे और आज समाज में बहुमुखी सेवाओं में उज्ज्वल नक्षत्र की भाँति प्रकाशमान हैं। मेरा इनसे साक्षात् परिचय तो अभी-अभी का है; जब वाराणसी तथा सारनाथ में पूज्य आर्यिका गणिनीजी आर्यमती माताजी के सान्निध्य में भगवान पार्श्वनाथ और श्रेयांसनाथ की पूजा-अर्चना तथा पंचकल्याणक के प्रसंग पर अनेक गणमान्य विद्वानों के साथ यहाँ पधारे हुए थे। उस समय व्यस्त कार्यक्रम में से थोड़ा समय निकालकर हमारे अभयकुटीर पर पधारने की कृपा की। ये मेरे लिए सुखद क्षण थे। __ यह विशेष तौर पर उल्लेखनीय प्रसन्नता की बात है कि आप जैन एकता के लिए सतत सक्रिय हैं और भारत जैन महामण्डल जैसी एक मात्र असाम्प्रदायिक संस्था के भी सक्रिय प्रतिनिधि कार्यकर्ता हैं। तीर्थंकर वाणी के माध्यम से आप सभी जैन सम्प्रदायों में भाईचारा और समन्वय स्थापित करने का प्रयास कर रहे हैं। सम्पूर्ण जैन समाज में, मेरा अंदाज है कि लगभग चार सौ पत्र-पत्रिकाएँ अनेक रूपों, आकारों में, संस्थाओं, !
SR No.012084
Book TitleShekharchandra Jain Abhinandan Granth Smrutiyo ke Vatayan Se
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShekharchandra Jain Abhinandan Samiti
PublisherShekharchandra Jain Abhinandan Samiti
Publication Year2007
Total Pages580
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size21 MB
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