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________________ स्वास्थ्य ठीक नहीं रहता चलने-फिरने में दिक्कत होती है तो इतना क्यों आते-जाते हैं, कुछ दिन के लिये घर में बैठिये, आराम कीजिए' कहने लगे, “बेटा जब तक साँस है तब तक माँ जिनवाणी सेवा में ही रहना है।" यह है आपका धर्म के प्रति सच्चा राग व समर्पण। लखनऊ आने का आग्रह किया। आपने तुरंत उसका स्वीकार किया। आपकी स्नेहमयी वाणीने अपनत्व का बोध कराया। ___ आपसे सम्बोधित एक और संस्मरण याद आता है जो अविस्मरणीय व अनुकरणीय है। बात 12 मार्च 2006 की है 'श्री आशापुरा माँ जैन अस्पताल में आई सेन्टर का उद्घाटन और आन्टीजी की हार्ट बाईपास सर्जरी होनी थी। अतः वह अस्पताल में एडमिट थीं, लेकिन जरा भी विचलित न होते हुये तन-मन-धन से आई सेन्टर का उद्घाटन सम्पन्न कराया। जब मैंने फोन पर बधाई दी तो ज्ञात हुआ मेरी आन्टीजी का ऑपरेशन है, मैंने कहा आपको यह कार्यक्रम अग्रिम तारीख के लिये बढ़ा देना चाहिये, कहने लगे वह भी चलता रहेगा, देखने वाले हैं, यह कार्य आवश्यक है, कितने लोग लाभान्वित होंगे और आप इस कार्य में संलग्न रहे। ऐसे सेवाभाव ! के धनी विरले ही होते हैं। आपको हस्तिनापुरजी में 2005 में गणिनी ज्ञानमती माँ के जन्म जयन्ती महोत्सव के सुअवसर पर पुरस्कारों में शिरमौर पुरुस्कार सन् 2005 का गणिनी ज्ञानमती पुरस्कार से नवाजा जाना था। मैंने अपनी व अपने परिवार की ओर से बधाई दी उन्होंने पूछा आ नहीं रही हो, मैंने अपनी बात से अवगत कराया, कहने लगे ठीक है दूसरे ही पल डाँटकर बोले तुम्हें अपने मम्मी पापा को लेकर आना है, मैं नहीं जानता, मैं तुमसे कभी बात नहीं करूँगा। प्यार भरे शब्दो को सुनकर मेरे नेत्र सजल हो उठे और मैं अपनी सासुमाँ के साथ हस्तिनापुर जा पहुंची। ____ अन्त में मैं इतना ही कहना चाहूँगी कि अंकलजी मेरे प्रेरणास्रोत, मार्गदर्शक हैं। ऐसे अनेक गुणों से अलंकृत । वरद पुत्र के अभिनन्दन के शुभ अवसर पर श्रद्धा अर्पित करती हुई हार्दिक यशोर्जित सुख-स्वास्थ्य, समृद्धि से समन्वित । दीर्घायु की मंगल कामना करती हूँ। "महकने के लिए सौरभ का खजाना चाहिए, नींद के लिए गमों को भुलाना चाहिए। धर्ममय, आदर्श जीवन बनाना है तो, डॉ. साहब के जीवन को प्रेरणास्रोत बनाना चाहिए॥" डॉ. श्रीमती अल्पना जैन 'अभि' (लखनऊ) - डॉ. शेखरजी : आशाजी के पति भी सखा भी डॉ. शेखरचंद्रजैन कठोर वाणी बोलने वाले मृदुल-व्यक्ति हैं। नजरें गड़ा कर सामने वाले को देखना और प्रहारात्मक शब्दों से वार्ता शुरु करना उनके वर्तमान व्यक्तित्व की विशेषता है। यह स्वभाव, सच कहा जावे तो, आजकी जरूरत भी है। सीधे-सरल व्यक्ति को कोई भी चतर-पुरूष अपने जेब में रखकर चलता बनता है। डॉ. साब में, सौभाग्य से, ऐसी सिधाई नहीं है। वे किसी की जेब में नहीं समा सकते। कोई प्रयास करे भी, तो मुझे लगता है; वे जेब फाड़कर निकल आयेंगे। (काटकर नहीं कह रहा हूँ) वे अनेक विद्वानों और धनपतियों को जेब में रख कर चलते हैं; यह उनका सर्वाधिक सशक्त और पवित्र परिचय है। उनके द्वारा किसी को जेब में रखना दोषपूर्ण वृत्ति नहीं है, बल्कि वह उनकी कला और कुशाग्रता का एक हिस्सा ही है।
SR No.012084
Book TitleShekharchandra Jain Abhinandan Granth Smrutiyo ke Vatayan Se
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShekharchandra Jain Abhinandan Samiti
PublisherShekharchandra Jain Abhinandan Samiti
Publication Year2007
Total Pages580
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size21 MB
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