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________________ 78 ने न केवल मेरे प्रबन्धो-काव्यों की सुदीर्घ समीक्षाएं की है, बल्कि मेरे धनुषभंग खण्डकाव्य को भावनगर । युनिवर्सिटी के पाठ्यक्रम के बड़े सम्मान के साथ लगाया है उनके द्वारा बोएं गए बीज व्यर्थ नहीं गए और यही । कृति 'सौराष्ट्र युनिवर्सिटी' में वर्षों तक पाठ्यपुस्तक के रूप में पढ़ाई जाती रही है। वस्तुतः प्रत्यक्ष के स्थान पर परोक्ष अनुग्रह शेखर का स्वभाव है। जब मैं उनके निमन्त्रण पर भावनगर कवि-सम्मेलन में जाता तो वे लोगों से मेरा इस तरह परिचय कराते, जैसे मैं बहुत ही बडा एवं महत्वपूर्ण व्यक्ति हूं और किशोर काबरा की खोज जैसे उन्होंने की है। मुझे भी ऐसा ! लगता है कि मेरे पिछले ३८ वर्षों में पूरी ईमानदारी के साथ जिन स्नेही मित्रों एवं काव्यप्रेमी साथियों ने मुझे ! गहेतुक आत्मीयता प्रदान की है, उनमें डॉ. शेखर शिखर पर है। यह मैं उनकी झूठी प्रशंसा नहीं कर रहा हूँ, क्योंकि झूठी प्रशंसा और ठकुर सुहाती वृत्ति उन्हें पसंद नहीं है। कभी-कभी डर भी लगता है कि मेरा निर्व्याज यशगान उन्हें रुचे, न रुचे। सत्यं ब्रूयात् को तो वे पसंद करते हैं, पर प्रियं ब्रूयात् को वे चापलूसी मानते हैं। अप्रिय | सत्य उन्हें परम प्रिय है। यही कारण है कि प्रायः कई प्रियजन उनसे नाराज़ रहते हैं, क्योंकि अप्रिय सत्य वे पचा नहीं पाते। डॉ. शेखर जैन अच्छे मित्र हैं, अच्छे शत्रु हैं, अच्छे हँसाने वाले हैं, अच्छे रुलाने वाले हैं, अच्छे प्रशंसक हैं, अच्छे निन्दक हैं। गृहस्थ भी हैं और साधु भी हैं, वे स्वस्थ भी हैं और अस्वस्थ भी हैं, वे सबकुछ हैं, वे 'कुछ भी नहीं है। अनुराग और वीतराग के बीच में किसी महाराग को साधे हुए शेखरचन्द्र जैन कौन है- यह कौन कह सकता है ? डॉ. किशोर काबरा ( अहमदाबाद ) 1■■ डॉ. शेखरचंद्र जैन : व्यक्ति के रूप में आत्मकेन्द्रित होते जाने के इस समय में डॉ. शेखरचन्द्र जैन एक ऐसे मित्र व्यक्ति हैं जिन्होंने बाहर की दुनिया । को भी सदैव आदर और स्नेह से देखा है । बाह्य संसार से निभने की जो कला उनके पास है वह अन्यत्र दुर्लभ है। उनके सम्पर्क में आनेवाले व्यक्ति को चाहे वह छोटा हो या बड़ा उनसे समान रूप से निकट आने का सुख मिलता है। बात की तह तक जाना, परिस्थिति को भाँपना, उसे अनुकूल मोड़ देना उनके बाएं हाथ का काम है। ! ऐसे तमाम मौकों पर उनकी असाधारण वाक्पटुता भी उनकी मदद करती है। बड़ी सभा हो या किसी समिति की 1 छोटी-सी बैठक वे सभी श्रोताओं / सदस्यों का खास ध्यान रखते हैं। वे सभी को उनके नाम से जानते हैं। बड़ीबड़ी सभाओं में दूर बैठे श्रोता को भी वे नाम से पुकार कर सभा में उसकी हिस्सेदारी को सक्रिय बना देते हैं। आप डॉ. शेखरचंद्र के महेमान हों और वे आपकी चिन्ता करें यह तो ठीक है पर अगर वे आपके महेमान हैं। तो भी वे आपकी चिन्ता करेंगे। जीवन के बहुविध व्यवहारों में डॉ. शेखरचन्द्र का विभिन्न भाषाओं का ज्ञान भी एक कारगर हथियार है। वे हिन्दी के विद्वान हैं। लेकिन गुजराती भी धड़ल्ले से बोलते हैं। म.प्र. शासन द्वारा प्रकाशित मेरी एक पुस्तक 'भगवान महावीर का बुनियादी चिन्तन' का 'भगवान महावीरनुं बुनियादी चिंतन' के नाम से सन् 2004 में उन्होंने गुजराती अनुवाद किया। इस अनुवाद की सर्वत्र प्रशंसा हुई और गुजराती भाषा भाषियों में इसने इतनी लोकप्रियता हासिल की कि प्रकाशन एक साल के भीतर ही इसका दूसरा संस्करण प्रकाशित करना पड़ा। इस तरह गुजराती बोलने पर ही नहीं गुजराती लिखने पर भी उनका अच्छा खासा अधिकार है। हर महीने प्रकाशित
SR No.012084
Book TitleShekharchandra Jain Abhinandan Granth Smrutiyo ke Vatayan Se
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShekharchandra Jain Abhinandan Samiti
PublisherShekharchandra Jain Abhinandan Samiti
Publication Year2007
Total Pages580
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size21 MB
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