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________________ जैसा जाना 771 | डॉ. शेखरजैन का अप्रिय सत्य यदि आपको किसलय की मादकता और शूल की वेधकता का एक साथ अनुभव करना है, यदि आपको स्नेह और शत्रुता की जुगलबंदी देखनी है, यदि आपको एक आँख में करुणा और एक आंख में क्रूरता देखनी है, यदि आपको निंदा और प्रशंसा दोनों का एक साथ आनंद लेना है, यदि आपको प्रसन्नता और खिन्नता की प्रतीति एक ही समय करनी है, यदि आपको आनंद के सागर को और आक्रोश के महासागर को एक ही तट पर नूतय करते देखना है, यदि आपको भौतिकता और आध्यात्मिकता को एक ही व्यक्ति में समायोजित होते देखना है और यदि आपको क्षर और अक्षर के प्रखर तथा मुखर शिखरों को एक ही साक्षर में अन्तर्निहित होते देखना है, तो आप शेखरचन्द्र जैन से मिलिए। अतिशयोक्तियों और आडम्बरों से रहित इस व्यक्ति को स्पष्टता और सपाटबयानी का सम्राट कहा जा सकता है, शहंशाह कहा जा सकता है, सिद्ध पुरुष कहा जा सकता है, प्रसिद्ध पुरुष कहा जा सकता है। ___डॉ. शेखर जैन से मेरा प्रथम परिचय उस समय हुआ, जब वे शोध की नाव में पाँव पसार कर बैठ चुके थे और मैं तट पर खड़ा अपनी नाव की प्रतीक्षा कर रहा था। हम दोनो ही उस समय श्रद्धेय डॉ. अम्बाशंकर नागर के शोध-छात्र थे। वे भी मध्यप्रदेश के, मैं भी मध्यप्रदेश के पर जब वे व्यंग में मुस्कराते या वाणी का तीर छोड़ते तो मेरा पूरा मध्यप्रदेश काँप जाता। अन्य शोधकर्ताओ में सबके बीच शेखर जैन से मुझे डर लगता क्योंकि उनकी मुस्कराहट में मुझे रामायण और महाभारत के कई पात्र दिखाई देते। यह ३६ वर्ष पुरानी बात है। आज देखता हूँ कि इस व्यक्ति में भागवत के पात्र भी आशीर्वाद की मुद्रा में छिपे हुए हैं। मैं उन्हें उस समय देख नहीं सका, परख नहीं सका, उनका साक्षात्कार नहीं कर सका। शेखर-जैन ने अभावों की परवाह किए बिना दुर्दयनीय पुरुषार्थ एवं अध्यवसाय के बल पर वह सब प्राप्त किया है, जो प्रारब्ध से भी नहीं प्राप्त होता है। नन्हें उपेक्षित बीज को आकाश छूने और घटादार वृक्ष बनने में जिन-जिन अवरोधों का सामना करना पड़ता है, शेखर को भी उपलब्धियों के शिखर तक पहुँचने में उतना ही संघर्ष करना पड़ा है। राष्ट्रीयता कवि दिनकर और उनकी काव्यकला, विषयक शोध प्रबन्ध के अतिरिक्त साहित्यिक, आध्यात्मिक एवं साधनात्मक कृतियों के लेखक डॉ. शेखर ने क्षेत्रीय प्रान्तीय, राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय स्तर के कई संस्थानों, सम्मेलनो, महासंघो, मण्डलों एवं ट्रस्टों की सदस्यता से लेकर अध्यक्षता तक के दायित्वों को बड़ी ही निष्टा, आस्था एवं गरिमा के साथ निभाया है। समन्वय ध्यान साधना केन्द्र आपकी दीर्घ कठिन तपस्या और आर्ष दृष्टि का मूर्तिमन्त प्रतीक हैं। 'तीर्थंकर वाणी' के सम्पादक के रूप में तो आपने यश एवं सम्मान प्राप्त किया ही है, जैन दर्शन के प्रखर वक्ता एवं आचार्य के रूप में भी देश एवं विदेशों में कीर्ति एवं प्रतिष्ठा प्राप्त की है। कई पुरस्कारों, सम्मानोपाधियों एवं पदों को प्राप्त करके भी डॉ. जैन जिस सरलता, सहजता एवं आत्मीयता से परिचितों, अपरिचितों एवं नवपरिचितों में घुलमिल जाते हैं, वह सभी के आश्चर्य में डालता है। शेखर जैसे खरे, मुँहफट एवं दोटूक बातें करनेवाले 'रफ' एवं 'टफ' व्यक्ति को करुणाई होते मैंने देखा है, अन्तरंग आनन्द सागर में भीगते और भिगोते मैंने देखा है। अश्रु और हास्य के बीच कहीं डॉ. शेखर को परखा । जा सकता है। ___ भावनगर के कुछ प्रसंग याद आ रहे हैं। अपने कॉलेज में आयोजित कविगोष्ठियों में एवं नगर के सार्वजनिक । कवि सम्मेलनों में वे मुझे नियमित रूप से बुलाते। मेरी काव्य-साधना को वे मुग्धभाव एवं अहोभाव से देखते रहे हैं और मुझ पर जैसे उनका सारस्वत-अधिकार हो- इस तरह आदेश देकर आयोजनों में बुलाते रहे हैं। शेखर ।
SR No.012084
Book TitleShekharchandra Jain Abhinandan Granth Smrutiyo ke Vatayan Se
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShekharchandra Jain Abhinandan Samiti
PublisherShekharchandra Jain Abhinandan Samiti
Publication Year2007
Total Pages580
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size21 MB
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