SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 193
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ स्वर्गीय महत्तराजी से - नाजर जैन, चण्डीगढ़ (चाल :- दे दे प्यार दे, प्यार दे........................) . दे दो दर्श दो, दर्श दो, महत्तरा जी हमें दर्श दो। एक बार तो झलक दिखाओ, चाहे फिर छिप जाना, निकल आओ बनकर के पूनम, प्यार के मोती लुटाना। दे दो दर्श दो..... ___ तेरे बिन चमनों के तेरे फुल कलि · कमलाएं, कौन सुनाए गीत फूलों को, कौन इन्हें मुस्काराऐ। दे दो दर्श दो....... बेरौनक हे आज स्मारक, चुप है सारे पक्षी, चुप रजनी, चुप-चाप प्रातः चुप है प्यार की बस्ती। दे दो दर्श दो.... कल तक था पाँचों का संगम, बन गई आज त्रिवेणी, | पहले टूटी कलि डाल से, टूट गई फिर टहनी। - दे दो दर्श दो.......... कर्म के आगे हार गए सब, गगन भी है निर्दोष, किस पर रोस करें "महत्तरा जी" किसको दे हम दोष । दे दो दर्श दो.......... अगर पता होता कि जाना, प्यार सोचकर पाते. वियोग में न कोई आहें भरती, न गम दिल पर लाते । दे दो दर्श दो...... पूर्व, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण, छान मारा संसार, "गुरु वल्लभ" की दिवानी सा, मुश्किल मिलेगा प्यार । दे दो दर्श दो.... "महंत्तरा जी" ऐ जैन भारती, कौम की ऐ सरताज, देवलोक में बैठे रखना, 'नाज़र' कौम की लाज | दे दो दर्श दो......... १६६ મહત્તરા શ્રી મગાવતીશ્રીજી
SR No.012083
Book TitleMahattara Shree Mrugavatishreeji
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamanlal C Shah and Others
PublisherVallabhsuri Smarak Nidhi
Publication Year1989
Total Pages198
LanguageGujarati, Hindi, Sanskrit
ClassificationSmruti_Granth
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy