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________________ पूज्य गुरु वल्लभ व महावीर विद्यालय आचार्य भगवंत श्रीमद् विजयानंद सूरिजी म.सा. की सरस्वती मंदिरों की स्थापना की अंतिम भावना को मूर्तरूप देने के लिए गुरु वल्लभ ने अवर्णनीय कष्ट सहे परंतु हरियाणा, पंजाब, राजस्थान, महाराष्ट्र व गुजरात आदि में शिक्षा संस्थानों की स्थापना कर युवकों को जैनोचित संस्कारों के साथ व्यावहारिक ज्ञान धन उपलब्ध करा कर अवर्णनीय दायित्व निभाया व स्वयं को सदा-सदा के लिए अमर कर दिया। पूज्य गुरुदेव महान जैनाचार्य श्रीमद् विजयानंद सूरि (आत्मारामजी) महाराज ने १२० वर्ष पूर्व सन् १८९३में अम्बाला से सन् १८९३ ई. स. में मुंबई के जैन श्रीसंघ को वहाँ पर जैन कॉलेज की स्थापना के लिए जोरदार पत्र लिखा था । अम्बाला आए बम्बई के दर्शनार्थियों को भी कहा कि, देखो जब तक शिक्षा का प्रचार-प्रसार नहीं होगा तब तक जैन समाज अग्रणी नहीं बन सकता । ___ कलिकाल कल्पतरू गुरुवर वल्लभ ऐसे पट्टधर आचार्य हुए जिन्होंने शिक्षा, समाजसेवा विशेष रूप से मध्यमवर्ग साधर्मिकों की भक्ति व परोपकार को अपने जीवन का लक्ष्य बनाया तथा देश में शिक्षण संस्थानों की एक श्रृंखला खडी कर दी । इस कडी में सन् १९१४ में श्री महावीर जैन विद्यालय की बम्बई में स्थापना हई । मुझे यहाँ लिखते हए अत्यन्त गर्व हो रहा है कि गुरु आत्म व गुरु वल्लभ की नीति व दर्शन का प्रभाव श्री वीरचन्द राघवजी गांधी पर भी पड़ा इसलिए वर्ल्ड पार्लियामेन्ट ऑफ रिलिजियंस - शिकागो १८९३ में उन्होंने अपने भाषण में कहा था कि शिक्षा का प्रचार-प्रसार करना जैनियों का उद्देश्य रहा है । वे लोग यथाशक्ति इसका पालन कर रहे हैं । कई जैन महाशय गुरु आत्म की प्रेरणा से जैन बालक-बालिकाओं के लिए विद्यालय खुलवा रहे हैं । स्त्रीशिक्षा के लिए गुजरात में प्राय: जैन दानदाताओं का ही आलम्बन है । तत्कालीन बम्बई जहाँ सर्वत्र पाश्चात्य सभ्यता, विदेशी संस्कृति, पराधीनता का अपार कष्ट था जैन विद्यार्थियों के आवास व शिक्षा का प्रबन्धन एक स्वप्न था, ऐसे में पूज्य गुरुदेव द्वारा चलाया गया शिक्षा का क्रांतिकारी मिशन आँधियों में दिये की तरह जलता रहा और आज एक सौ वर्ष बाद दिव्य तेजपुंज की तरह अपनी विविध शाखाओं सहित महाराष्ट्र, गुजरात तथा राजस्थान में गौरवान्वित है । यद्यपि पंजाबकेसरी गुरुदेव ने देश में जगह-जगह गुरुकुल, छात्रावास व कॉलेज खुलवाये पर महावीर विद्यालय मुम्बई जैसी विश्वस्तरीय शिक्षण संस्था की परिकल्पना युगद्रष्टा गुरुदेव की दूरदर्शिता, गहन सामाजिक उत्कर्ष चिंतन एवं उच्च दर्शन को व्यक्त करती है । समाज व राष्ट्र की इतनी चिंता करनेवाले संत कम ही होते हैं । मैं जब भी पूज्य गुरुदेव के महत्त्वपूर्ण प्रेरणादायी प्रसंगों को क्रमबद्ध करने का प्रयास करता हूँ तो भारत-पाक विभाजन के समय सभी श्रावकों को लेकर भारत में आने का संकल्प तथा महावीर विद्यालय स्थापना की योजना दोनों श्रेष्ठतम व सार्वकालिक प्रभाव बढाने वाले प्रसंग हैं । सन २००७ में मैं महावीर विद्यालय के भूतपूर्व विद्यार्थियों की सभा में अहमदाबाद गया था। विश्व के कोने कोने से आये वे विद्यार्थी अपने संस्थापक गुरुदेव के प्रति कितनी कृतज्ञता व श्रद्धासहित आभार व्यक्त कर रहे थे वह देख कर मेरे मन में महावीर विद्यालय के निरन्तर प्रगति, उन्नति की दिशा में चिंतन बढ़ गया था । मुझसे पूर्व जिनशासनरत्न शान्ततपोमूर्ति आचार्य भगवंत श्रीमद् विजय समुद्रसूरीश्वरजी म.सा. एवं परमारक्षत्रियोद्धारक चारित्रचूड़ामणि आचार्य भगवंत श्रीमद् विजय इन्द्रदिन्नसूरीश्वरजी म.सा. आदि पूज्य गुरुदेवों ने महावीर विद्यालय की प्रगति पर पूर्ण ध्यान दिया है व समय-समय पर मुंबई के अपने चातुर्मासों में संस्था की प्रगति को नजदीक से निहारा है ।
SR No.012079
Book TitleMahavir Jain Vidyalay Shatabdi Mahotsav Granth Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKumarpal Desai
PublisherMahavir Jain Vidyalay
Publication Year2015
Total Pages360
LanguageGujarati, Hindi, English
ClassificationSmruti_Granth
File Size8 MB
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