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________________ १६] वीर ज्ञानोदय ग्रन्थमाला सम्यग्ज्ञान दीपिका - ऐलक श्री सुखसागरजी महाराज परम पूज्य गणिनी आर्यिकारत्न श्री ज्ञानमती माताजी एक सम्यक्ज्ञान दीपिका हैं, जिसके द्वारा स्व-पर दोनों प्रकाशित हो रहे हैं। उनके हृदय में कूट-कूट के वात्सल्य भरा हुआ है, जो भी उनकी शरण में जाता है, वह अपने आपको भाग्यशाली मानता है और वह आपके सान्निध्य में रहकर ज्ञानामृत का पान करता है तथा उसका मोक्ष-मार्ग प्रशस्त होता है। इतना ही नहीं, आर्यिकाश्री का प्रभाव दिगम्बर जैन समाज पर पड़ा, इसके साथ ही कई राष्ट्रीय गणमान्य नेताओं एवं जैनेतर समाज पर भी प्रभाव पड़ा, जिसके फलस्वरूप जैन धर्म की अद्भुत प्रभावना हुई; अतः माताजी को धर्म प्रभाविका कहने में अन्योक्ति नहीं होगी। ऐसी महान् विभूति का स्वास्थ्य शिथिल रहते हुए भी वे जैन शासन की उन्नति के लिए महान् से महान् कार्य करने में तत्पर रहती हैं। पूज्य माताजी समय का सदैव सदुपयोग करती रहती हैं। उन्होंने जैन समाज का महान् उपकार किया है, जिसको कभी भुलाया नहीं जा सकता है। जगत् वन्दनीया आर्यिकाश्री ने हस्तिनापुर में जम्बूद्वीप का निर्माण करवाकर एक आकर्षण का केन्द्र बनवा दिया, जो कि जैन धर्म के इतिहास में स्वर्ण अक्षरों में लिखा जायेगा। ___ जम्बूद्वीप निर्माण की पावन प्रेरिका, गणिनी आर्यिकारत्न श्री ज्ञानमती अभिवंदन ग्रंथ प्रकाशन किया जाना अत्यंत समयोपयोगी और आर्यिकाश्री के प्रति कृतज्ञता ज्ञापन का महान कार्य है। मैं भी आर्यिकाश्री के पादमूल में अपनी विनयांजलि अर्पण कर अपनी ओर से कृतज्ञता ज्ञापन कर अपने आपको कृतकृत्य मानता हूँ। श्री जगत् माता (महामाता) -क्षुल्लक श्री शीलसागरजी चरणों में शत-शत वंदन। संसार में अनेक माताएँ हुई हैं और होती रहेंगी और हो रही हैं। एक माता जिसकी सन्तान इस धरातल पर जन्म लेकर जैसे-तैसे भरण-पोषण कर जीवन निर्वाह कर मरण को प्राप्त हो जाती है। दूसरी वह माता है जिसका पुत्र कुछ सामाजिक कार्य करता हुआ जीवन पूरा कर लेता है। तीसरी वह माता है जिसे देश माता अथवा राजमाता कहा जाता है, जिसका पुत्र देश उद्धार कर जनकल्याण की भावना रखता हुआ अपने कर्त्तव्य को निभाता है। चौथी वह माता है जो अपने पुत्रों के समान लौकिक ज्ञान देकर अपने शिष्य को इस योग्य बना देती है कि वह अपने जीवनकाल में अच्छा व्यापार करके अथवा अच्छी नौकरी प्राप्त कर सुखपूर्वक जीवन व्यतीत कर लेता है, परन्तु ज्ञानमती माताजी उससे भी बढ़कर श्रेष्ठ माता, महामाता या जगत्माता हैं। हम कहें जिनके उपदेश द्वारा अनेक भव्यजीवों को सद्बोध प्राप्त होता है, जिनके द्वारा वह शिष्य अथवा भव्य आत्मा अपने आत्मकल्याण के पथ पर कदम बढ़ा लेता है और अपना आत्मविकास करता हुआ अणुव्रती, महाव्रती बनकर एक दिन अविनाशी सुख प्राप्त कर लेता है। उन सर्वश्रेष्ठ माताओं में वर्तमान में परमपूज्य गणिनी आर्यिकारत्न १०५ श्री ज्ञानमती माताजी हैं, जिनके दर्शन तथा उपदेश प्रथम बार मैंने अजमेर (राज.) में वर्षायोग के समय में सुना था। वह वैराग्यमय उपदेश आज भी मेरे मन-मस्तिष्क में समाया हुआ है, जिसका असर मेरी आत्मा में उस समय जो हुआ था, उसे लिखा या कहा नहीं जा सकता। उस समय मैं श्री महावीरजी, पद्मपुरा के दर्शन करता हुआ अजमेर में परिवार के साथ आया था। उपदेश के बाद क्षण भर के लिए ऐसा लगा कि ये गृहस्थ जीवन निस्सार है। जब-जब भी इस प्रकार का उपदेश मिलता अथवा जहाँ-जहाँ पर भी साधुओं के दर्शन, वैयावृत्ति, आहारदान का लाभ होता, तब-तब वह वैराग्यमय भावना प्रबल होने लगती। करीब बारह वर्ष के भीतर साधु सत्संगति का लाभ होते-होते एक दिन वह आया कि हम इस त्याग मार्ग में आ गये। सारांश यह है कि ऐसे ही सद्गुरुओं के उपदेशों से अनेक आत्माएँ मोक्ष के मार्ग में चल पड़ती हैं। जिसकी साक्षी हमारे पुराणों में है तथा प्रत्यक्ष में भी वर्तमान में करीब पाँच सौ से अधिक पिच्छिधारी देश के कोने-कोने में स्व-पर का कल्याण कर रहे हैं। जो शताब्दी के महान् आचार्य चारित्र चक्रवर्ती शान्तिसागरजी (दक्षिण) की देन है। ऐसे उन महान् गुरुओं की महिमा का बखान हम साधारण प्राणी क्या कर सकते हैं। फिर भी हमारे द्वारा जो कुछ लिखा गया है वह सूर्य को दीपक दिखाने के समान है, जो कुछ भी लिखा गया है, वह केवल भावभक्ति है। पूज्य माताजी को शत-शत वन्दामि । Jain Educationa international For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012075
Book TitleAryikaratna Gyanmati Abhivandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRavindra Jain
PublisherDigambar Jain Trilok Shodh Sansthan
Publication Year1992
Total Pages822
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size26 MB
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