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________________ इतिहास-प्रेमी गुरुवर्य श्रीमद् विजययतीन्द्रसूरीश्वरजी महाराज (दौलतसिंह लोढा ' अरविंद' बी. ए. सरस्वती विहार, भीलवाड़ा ) यह युग क्रांति एवं जाग्रति का है। जीवन के हर अंग में जो जागरण देखा जा रहा है, वह किसी एक व्यक्ति के श्रम का परिणाम नहीं है। भारत के जितने धर्म हैं और जितने समाज हैं उन सब में इस युग में कोई-न-कोई विशिष्ठ व्यक्ति कुछ अपनी बली, त्याग, तपस्या, सद्भावना, सेवा के आधार पर नवजीवन, नवचेतना नवभाव-विचार एवं नव कार्य-दिशा प्रगटा गया है। यही कारण है कि समूचा भारत आज जाग्रत सा प्रतीत धर्म के नाम पर भारत में जैन, हिन्दू, बौद्ध, मुसलमान, सिक्ख, इसाई आदि वर्ग प्रसिद्ध हैं और येही समाजों के नाम से भी । जैन वर्ग में इस समय श्वेताम्बर और दिगम्बर पक्ष भी कई उपवर्गों में विभाजित हैं । श्वेताम्बरपक्ष-मूर्तिपूजक, स्थानक और तेरहपंथ में बटा हुआ है । श्वे० मूर्तिपूजक पक्ष स्थूलदृष्टि से चार स्तुति और तीन स्तुति इन दो वर्गों में विद्यमान है । तीनस्तुति का पुनरोद्धार अथवा पुनः प्रचार विश्वविख्यात्, विद्वदमणि, 'अभिधान-राजेन्द्र कोष' के कर्ता श्रीमद् विजयराजेन्द्रसूरिजी महाराज ने किया। उनके पट्ट पर आचार्य श्रीमद् धनचन्द्रसूरिजी, श्रीमद भूपेन्द्रसूरिजी महाराज क्रमशः विराजमान हुये । वर्तमान में आप विराजमान हैं। आपका 'हीरक-जयन्ती-उत्सव' मनाया जा रहा है। यह आपकी शासनसेवा काही मूल्य एवं समादर है। आपका कुछ वंश-परिचय देता हुआ पाठकों को आपकी विशिष्ठ सेवा एवं गुणों का परिचय कराऊंगा। वंश-परिचय-मरुप्रदेश की प्राचीन एवं ऐतिहासिक नगरी भिन्नमाल से लगभग ४००-४५० वर्ष पूर्व काश्यपगोत्रीय वीरवर जैसपाल ने निकलकर अवध-प्रान्त के रायबरेली प्रगणामें जैसवालपुर नगर वसाकर अपने राज्य की स्थापना की। राजा जैसपाल से आठवीं पीढी में राजा अमरपाल यवनों से परास्त हुये और वे राज्य का त्याग करके धौलपुर नगर में आकर बसे । उनके प्रपौत्र व्रजलालजी आपके पिताश्री थे। आपकी माताश्री का नाम चम्पाकुंवर था। आपके दो भ्राता और दो बहिने थीं। घर समृद्ध था और श्री ब्रजलालजी धौलपुरनरेश के कृपापात्र कर्मचारी थे। उनको रायसाहब की उपाधि प्राप्त थी। आप छोटी ही आयुके थे कि आपकी माता का और कुछ ही समय पश्चात् भ्राता किशोरीलाल का स्वर्गवास हो गया । श्रीवजलालजी को जीवन से औदासीन्य हो गया और वे बच्चों को लेकर भोपाल आ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012074
Book TitleYatindrasuri Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherSaudharmbruhat Tapagacchiya Shwetambar Shree Sangh
Publication Year
Total Pages502
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size14 MB
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