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________________ आचार्य श्री यतीन्द्रसूरिजी का इतिहास - प्रेम ३३ इतिहास, लोकप्रवाद आदि जो भी ज्ञातव्य बातें उन्हें मिलीं, उनका विस्तार से वर्णन कर दिया है। साथ ही स्थान २ पर मूर्तियों के लेख व शिलालेख आदि भी दे दिये हैं । इससे उन पुस्तकों का महत्व बहुत बढ़ गया है। कई प्रसिद्ध प्राचीन व दर्शनीय स्थानों का विवरण तो बहुत ही प्रशंसनीय है । जो व्यक्ति उन स्थानों में नही गये हैं उनके लिये तो वह जानकारी बहुत काम की है ही, पर जो गये हैं उन्हों ने भी शायद उतनी जानकारी प्राप्त करने का प्रयत्न नहीं किया हो; इसलिये उनके लिये भी इन ग्रन्थों की उपयोगिता कम नहीं | मांडवगढ आदि कई स्थानों का वर्णन जब मैंने इन ग्रन्थों में पढा तो मुझे उन स्थानों को स्वयं जाकर देखने की उत्कट इच्छा हो गई । यही उनके लेख की सफलता है जिससे पढनेवाले को देखने के लिये उत्सुकता जाग उठे । खण्ड श्री कोरटाजी तीर्थ का इतिहास आप द्वारा लिखित सं. १९८७ में प्रकाशित हुआ । इतिहास के साधनों को संग्रह करने का प्रयत्न भी आप का विशेषरूप से उल्लेखनीय है । आपके संग्रहित जैन प्रतिमाओं के ३७४ लेखों का एक संग्रह श्री दौलतसिंह लोढा के द्वारा संपादित व अनुवादित सं. २००९ में प्रकाशित हुआ है । उसकी प्रस्तावना में लिखा है कि 'सं. २००४ में यतीन्द्रसूरिजी महाराज को थराद चातुर्मास के समय कार्तिक महिने में डबल नमुनियां हो गया और जीवन की आशा भी कम हो गई । ' उस परिस्थिति में भी आपने लोढाजी को उन शिलालेखों की दो कापियां देखने को दीं और कहा, मैं इतना अस्वस्थ और अशक्त हूँ कि शिलालेखों का अनुवाद, अनुक्रमणिका आदि करने में अपने को असमर्थ पाता हूँ ।" अतः आपकी इच्छा की पूर्ति लोढाजी ने की । इससे ऐतिहासिक साधनों को प्रकाशित करने में आप कितने उत्सुक व जागरूक रहे हैं, पता चलता है । 66 आप ही की प्रेरणा से प्राग्वाट जाति का इतिहास जैसा महत्वपूर्ण ग्रन्थ प्रकाशित हो सका । श्री दौलतसिंह लोढा स्वभावतः एक कवि हैं । पर इतिहास जैसे निरस विषय में उनको लगना पड़ा, यह आपकी प्रेरणा का प्रभाव है । पोरवाड जाति श्वेतांबर जैन समाज में बहुत ही गौरवशालिनी रही है । उसका इतिहास प्रकाशित किया जाना बहुत आवश्यक था। अभी आपकी प्रेरणा से ही महाकाय " राजेन्द्रसूरि स्मारक ग्रन्थ " प्रकाशित हुआ है। वह भी आपके ज्वलंत इतिहास - प्रेम का परिचायक है । इत्यलम् Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012074
Book TitleYatindrasuri Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherSaudharmbruhat Tapagacchiya Shwetambar Shree Sangh
Publication Year
Total Pages502
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size14 MB
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