SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 499
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३७८ श्री यतीन्द्रसूरि अभिनंदन ग्रंथ विविध गुरुदेव श्री मालवा में पधारे तवही से आपने श्री संघ के सन्मुख एकही बात रक्खी थी। आप यदि मुझे प्रसन्न देखना चाहते हैं तो अपनी समाज के लिये एक आदर्श "गुरुकुळ" स्थापित करें । गुरुदेव श्री के इस वचन को लेकर मैं श्री संघ के सम्मुख गया। कई महानुभावों ने इस महत्वपूर्ण कार्य में सहयोग दिया और गुरुकुळ भी प्रारम्भ कर दिया गया। परन्तु मेरा दुर्भाग्य था कि मैं वह कार्य पूर्ण न कर पाया और बीच में ही मुझे उसे छोड़ना पड़ा। ऐसा क्यों हुआ? इसका मूळ कारण समाज के लोगों का आन्तरिक वैर था और वही वैर इस वस्तु को डस गया है। यदि पुनः समाज मुझे सम्पूर्ण जिम्मेदारी के साथ इस कार्य को सोपता है तो मैं समाज के सन्मुख यह विश्वास दिलाता हूँ कि केवळ अपना कौटाम्बिक खर्च लेकर पूर्ण इमानदारी से इस समाज के कार्य को करने को तैयार हूँ। क्योंकि यह कार्य मैंने अपनी भावना से उठाया था और आज भी इस कार्य पर मेरा आन्तरिक स्नेह है। अन्त में पूज्य गुरुदेव श्री को वंदन कर चिरायु होने की शुभ कामना प्रकट करता हूँ। तत्पश्चात् ! जिन-जिम महानुभावों के संदेश आये थे वे पढ़कर सुनाये गये ! पूज्य श्री विद्या-विजयजी ने कहा कि गुरुदेव श्रीने इस अवसर पर एक शिक्षा-फंड खोलने की योजना रखी और समाज को बतलाया कि आप पूज्यवर आचार्य प्रवर का “हीरक जयंति" " महोत्सव मनाने आये हैं । ऐसे अवसर पर एक ऐसी योजना निर्माण करते जाइये जिससे समाज उत्थान का कोई कार्य हो सके । हम पू. गुरुदेव श्री का दीक्षा पर्याय ६० वर्ष का पूर्ण होने पर ही यह हीरक जयंति महोत्सव मना रहे हैं । अब गुरुदेव श्री का ६१ वे वर्ष में प्रवेश होगा अतएव समाज का प्रत्येक विचारवान व्यक्ति यदि ६१) रुपये की धन-राशि इस विधाफंड में दान देगा तो एक बहुत बड़ी धन-राशि सहजही समाज के शिक्षा-क्षेत्र के लिये प्राप्त हो जावेगी। कई महानुभावों ने उसी समय उस योजना में दान दिया। पश्चात् इन्दौर निवासी पं. श्री जुहारमलजी जैन न्याय, काब्यतीर्थ को अ भा. राजेन्द्र जैन समाज की ओर से श्री अभिधान राजेन्द्र कोष इस उत्सव के उपलक्ष में भेंट किया गया ! जो त्रिस्तुतिक समाज में संस्कृत, प्राकृत और सैद्धान्तिक प्रकाण्ड पण्डित हैं । गुरुदेव श्री का संदेश --- -- ... महानुभावो ! आज आप सब एकत्रित होकर जो मेरा सन्मान कर रहे हैं यह मेरा सम्मान नहीं, अपितु जिन-शासन का सन्मान है । जिन-जिन महान् आत्माओं ने जिन-शासन की सेवाएं की हैं वे सन्मान के पात्र तो हैं ही, परन्तु उनका सञ्चा सन्मान तो उनका अनुयायी समाज धर्म-कर्म में सुदृढ़ रहे, चारित्र सम्पन्नही, अपना आदर्शवाद स्थापित रखे और भगवान् महावीर के शासन को दिपावे यही संतों का सच्चा सन्मान है। . Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012074
Book TitleYatindrasuri Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherSaudharmbruhat Tapagacchiya Shwetambar Shree Sangh
Publication Year
Total Pages502
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy