SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 380
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ विषय खंड सम्राट अकबर का अहिंसा प्रेम २५९ - - - - - - - इससे पहले शुभ चिन्तक तपस्वी जिनचन्द्रसूरि खरतर गच्छ हमारी सेवा मेरहता था । जब उसकी भगवद भक्ति प्रकट हुइ तब हमने उसको अपनी बडी बादशाही की महेरबानीयों में मिला लिया उसने प्रार्थना की कि इससे पहले ही हीरविजय सूरि ने सेवा में उपस्थित होने का गौरव प्रापत किया है और हरसाल बारह दिन मांगे थे। जिनमें बादशाही मुलको में कोई जीव मारा न जावे ओरकोइ आदमी किसी पक्षी मछली ओर उन जेसे जीवोको नस्ट न करे उसकी प्रार्थना स्वीकार हो गई थी अब में भी आशा करता हूँ कि एकस्पताहा का वेसाही हुवम इस शुभचिन्तक के लिये हो जाय इस लिये हमने अपनी आम दया से हुकम परमादिया कि आशाढ शुक्ल पक्ष कि नवमी से पूर्णमाशि तक शाल मे कोई जीव मारा न जाय और न कोई आदमी किसी जीव को सतावे असल बात तो यह है कि जब खुदा ने आदमी के वासते भांति भांति के पदार्थ उपजाये हे तब वह कभी किसी जानवर को दुःख न दे और अपने पेट को पशुओं कि क्बर न बनावे परन्तु कुछ हेतुओं से अगले बुद्धिमानों ने वेसी तजबीज की हे इनदिनों आचार्य जिनसिंह सूरि उर्प मानसिंह ने अर्ज कराइ के पहले जो उपर लिखे नुसार हुकम हवा था। वह खो गया है इस लिये हमने उस परमान के अनुसार नया परमान इनायत किया है। चाहिये कि जैसा लेख दिया गया है वैसाही इस आशा का पालन किया जाय इस विषय में बहुत बडी कोसिस और ताकीद समज कर इसके नियमों में उलट पेर न होने दे ता. ३१ खुरदाद इलाही सन ४६" उपरोक्त फरमान बतलाता है कि सम्राट् के हृदय में सुरिजी महाराज के उपदेश से कितना अहिंसा के प्रति प्रेम हो गया था। फरमान में जो शब्द पेटको क्बर बनाने बाबत है वे मांसाहारियों के लिये कितने शिक्षाप्रद व कितने उच्च विचारों को प्रगट करते हैं । इसके अतिरिक्त सुरिजी महाराज के शिष्यों के उपदेश से काश्मीर चढ़ाई में रास्ते में जहां - जहां तलाव, नदी आई उसमें जलचर जीव न मारे जावे - ऐसे हुक्म करवाये गये हैं। फरमान की असली नकल हमारे सामने नहीं है । ऐसा लगता है कि सेठिया जी के लेख में फरमान के शब्दों की नकल बराबर नहीं है -सम्पादक Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012074
Book TitleYatindrasuri Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherSaudharmbruhat Tapagacchiya Shwetambar Shree Sangh
Publication Year
Total Pages502
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size14 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy