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________________ श्री यतीन्द्रसूरि अभिनंदन ग्रंथ विविध शाखायें भी आचार्यों के नाम से प्रसिद्ध हुई जो परम्परानुसार 'कुल' कहलाने चाहिये थे । बहुत वर्षों बाद तो कुल भी गच्छ के नाम से प्रसिद्धि में आगये । १४० गुजरात एवं राजपूताने [ विशेषतः सीरोही व मारवाड राज्य ] में क्रमशः जैनधर्म का प्रभाव बढ़ने लगा और वहाँ के बहुत से स्थानों में चैत्यों का निर्माण हुआ व उनमें चैत्यवासी आचार्य स्थायी रूप से रहने लगे। तब से उन स्थानों के नाम से भी अनेक गच्छों का प्रादुर्भाव हुआ । जिनमें कुछेक गच्छों की परम्परा तो कई शताब्दियों तक चलती गई और उनमें अनेक विद्वान् व प्रभावक आचार्य हुए। कई छ बहुत ही कम प्रसिद्धि में आये व शीघ्र ही नामशेष होगये । जैन गच्छों के इतिवृत्त को जानने के मुख्य साधन उन उन गछों की पट्टावलियां, ग्रन्थ- प्रशस्तियाँ व अभिलेख ही हैं । इनमें से पट्टावलियां तो बहुत थोडे से गच्छों की ही मिलती हैं और उनमें कई तो आचार्यपरम्परा की नामावलि ही हैं । ग्रन्थप्रशस्तियां (ग्रन्थरचना व प्रतिलेखन ) व अभिलेख अधिकांश तो साधारण होती हैं जिनमें ग्रन्थनिर्माता व प्रतिलिखनेवाले की गुरु-परम्परा के २।४ नाम ही पाये जाते हैं । जैन गच्छों का इतिहास जैन धर्म के इतिहास का एक महत्वपूर्ण अध्याय है । पर अभी तक इस ओर बहुत ही कम कार्य हुआ है । आ. बुद्धिसागरसूरिजी ने ३२ वर्ष पूर्व 'जैन गच्छ मत प्रबंध' नामक ग्रन्थ आध्यात्म ग्रन्थ प्रसारक मंडल, पादरा से प्रकाशित किया था । उसके पश्चात् कई गच्छों की पट्टावलियां तो प्रकाश में आई हैं पर समस्त गच्छों का परिचयात्मक कोई लेख भी प्रकाशीत हुआ, मेरी जानकारी में नहीं है । इसीलिये अधिकारी न होते हुए भी यत्किंचित परिचय प्रकाशित करने की मुझे अन्तःप्रेरणा हुई और उसीका मूर्त्तरूप प्रस्तुत निबंध है । इसमें गच्छों का विस्तृत इतिहास देना संभव नहीं है, पर उनके सम्बन्ध में जो कुछ जानकारी प्राप्त हुई है उसको निर्देश मात्र कर उपलब्ध साधनों का सार संक्षेप में पाठकों तक पहुँचा देना ही मेरा उद्देश्य है। जैन समाज में इतिहासप्रेमी विद्वान बहुत कम हैं और फिर अन्वेषणकार्य करने वाले तो १५ लाख में १५ व्यतियों का नाम भी मुश्किल से लिया जा सकता है । अतः मेरे इस प्रयास से प्रेरणा लेकर कोई विद्वान इस क्षेत्र में विशेष अनुसन्धान कर प्रकाश डालेंगे, ऐसी आशा तो कम है। फिर जिस प्रकार मैंने अपने अन्य लेखों में विविध विषयों की ओर ध्यान आकर्षित किया है इस लेखद्वारा उस सूची में और एक विषय की अभिवृद्धिभर कर देता हूँ । आशा है भावी इतिहासलेखकों को यह प्रयत्न कुछ सहायक हो सकेगा । वैसे तो गच्छों की संख्या मुनि ज्ञानसुंदरजी ( देवगुप्तसूरि ) ने ३१० तक बतलाई है । पर उनमें कुछ तो शाखाभेद हैं, कुछ पाठान्तर से नामादि होंगे । अतः मैंने जो सूची करीब १२५/१५० नामों की तैयार की है वह प्रतिमालेखों और ग्रन्थों की रचना एवं लेखन - प्रशस्तियों में जिन गच्छों का नाम आता है उन्हीं के आधार से Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012074
Book TitleYatindrasuri Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherSaudharmbruhat Tapagacchiya Shwetambar Shree Sangh
Publication Year
Total Pages502
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size14 MB
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