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________________ श्री यतीन्द्रसूरि अभिनंदन ग्रंथ विविध भाग लिया और अपनी वीरता और रणकौशल पर अनेक बार बहुमान प्राप्त किये । सहणपाल का पुत्र नाणा नाणा भी अपने पिता के सदश ही वीर और नीतिज्ञ था । दिल्ली के सिंहासन पर कैकयाद के पश्चात् खिलजियों की सत्ता स्थापित हुई। प्रथम खिलजी सम्राद अल्लाउद्दीन के दोनों पिता-पुत्र विश्वासपात्र मंत्रियों में रहे । अल्लाउद्दीन के हाथों जब जल्लालुद्दीन मारा गया तो इस वंश-कलह से ये बडी दुःखी हुये और राज्यसेवाओं से इन्होंने त्याग लेकर घर पर ही धार्मिक जीवन व्यतीत करना प्रारंभ किया । नाणा ने श्रीमद् जिनचन्द्रसूरि और विजयसेनसूरि की तत्त्वावधानता में श्री शत्रुञ्जय महातीर्थ की महान् संघयात्रा की और पूर्वजोंद्वारा अतुल द्रव्य का संघयात्रा एवं तीर्थ में व्यय करके उसने अक्षुण्ण कीर्तिं प्राप्त की। दुसाजु का सम्राट् गयासुद्दीन तुगलक का मन्त्री बना नाणा का पुत्र दुसाजु था । दिल्ली में खिलजी वंश की सत्ता के पश्चात् तुगलक वंश की सत्ता स्थापित हुई । सम्राट् गयासुद्दीन ने दुसाजु को वीर, न्यायी एवं प्रतिभासम्पन्न समझ कर उसको अपने मुख्य एवं विश्वासपात्र मंत्रियों में स्थान दिया । सम्राट दुसाजु से अति महत्व की मन्त्रणायें करता और उसकी सम्मति प्रायः मानता था । राजसभा में दुसाजु का अत्यन्त सम्मान था। दुसाजु का बीर एवं धर्मात्मा पुत्र बीका यह बड़ा वीर था और था बड़ा सज्जन । इसका अधिक समय जिनेश्वर देव की आराधना और धर्माचरण में व्यतीत होता था। वैसे यह रण में भी कभी-कभी भाग लेता था। सम्राट् गयासुद्दीन ने जब सपादलक्ष पर आक्रमण किया था, यह भी सम्राट के संग था। रण में बीका बडी वीरता से लडा था। सपादलक्ष का राजा अपने सात मित्र राजाओं की सहायता से रणभूमि में दिल्ली सम्राट् के विरुद्ध उतरा थाः परन्त वह अन्त में परास्त ही हआ और उसने बादशाह की आधीनता स्वीकार की। बीका दुर्भिक्ष और अन्नकष्ट के समय निर्धन एवं अन्नहीनों को अन्न दिया करता था। बीका का पुत्र झांझण का दिल्ली त्याग कर माण्डवगढ़ में मन्त्री बनना तुगलक वंश की सत्ता के अस्त होने पर दिल्ली और दिल्लीराज्य की दशा शोचनीय बनती गई। फलतः दिल्ली से योग्य एवं श्रीमंत पुरुष और वंश धीरे-धीरे अन्यत्र चले गये। बीका का पुत्र झांझण भी दिल्ली का त्याग कर के राजस्थान में चला गया। उन दिनों में राजस्थान के मरुप्रदेश में नाडूलाई के राजा प्रसिद्ध और पराक्रमी माने जाते थे। झांझण नाडूलाई के राजा गोपीनाथ की सभा में उपस्थित हुआ और राजा का प्रमुख मन्त्री बना। दिल्ली का मन्त्री नाडूलाई जैसे सामन्तराज का मंत्री कैसे बना रह सकता था। कुछ समय में ही गोपीनाथ और झांझण में अन Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012074
Book TitleYatindrasuri Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherSaudharmbruhat Tapagacchiya Shwetambar Shree Sangh
Publication Year
Total Pages502
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size14 MB
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