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________________ विषय खंड मन्त्री मण्डन और उसका गौरवशाली वंश आंबड़ बचपन से ही नटखट था और शस्त्रास्त्रों के अभ्यास एवं प्रयोगों में अधिक रुचि रखता था। वह १५-१६ वर्ष की वय में ही एक निपुण योद्धा गिना जाने लगा। राजस्थान में उसकी वीरता और रणकौशलता की चर्चा दूर-दूर फैलने लगी। जालोर में उस समय परमार वीशलदेव राज्य कर रहा था । अजमेरसम्राट् सोमेश्वर की राजसभा में भी आंबड की प्रसिद्धि पहुँची । सम्राट् सोमेश्वर ने जालोर से आंबड को निमंत्रित किया और उसकी वीरता पर एवं साहस पर मुग्ध होकर उसने उसको अपनी सैन्य में दण्डनायक के स्थान पर नियुक्त किया । कुछ कारणों पर परमार वीशलदेव और सम्राट् सोमेश्वर में विद्वेश उत्पन्न हो गया । फलस्वरूप सोमेश्वर ने जालोर पर आक्रमण किया। दण्डनायक आंबड भी इस युद्ध में सम्राट् के संग था। वीशलदेव पराजिब हुआ। परन्तु वह लडा बडी वीरता से था और सत्य की दृष्टि से उसका अपराध भी कुछ नहीं था। युद्ध स्थगित हो जाने पर सोमेश्वर को प्रसन्न देखकर दण्डनायक आंबड ने उसके समक्ष वीशलदेव के गुण और वीरता की बड़ी प्रशंसा की। इस प्रकार आंबड के कहने पर सोमेश्वर ने जालोर राज्य पुनः वीशलदेव को लौटा दिया और वीशलदेव को अपने सामन्त-मण्डल में प्रमुख स्थान प्रदान किया । आंबड़ द्वारा पुत्र सहणपाल को देशनिश्कासन का दण्ड आंबड के पाल्हा और सहणपाल नामक दो पुत्र थे। इन दोनों पुत्रो के साथ वह अजमेर में रहता था। दोनों पुत्र धनुर्विद्या सीखते थे। एक दिवस धनुर्विद्या के अभ्यास के समय सहणपाल का तीर सहसा एक निर्दोष मनुष्य को लग गया और वह विक्षत होकर गिर पड़ा। यह दुर्घटना- समाचार जब आंबड़ के कर्णों में पड़े; वह अत्यन्त क्रोधित हुआ और सहणपाल को बुलवा कर तुरंत उसको देशनिश्कासन का दंड दिया और अविलम्ब अजमेर छोड़ देने की आशा दी। मित्र एवं परिचित व्यक्तियों ने आंबड का क्रोध शान्त करने और दण्ड को कम कराने का भरशक प्रयत्न किया, परन्तु कठोर हृदय आंबड द्रवित नहीं हुआ। यहां विचारना इतना ही है कि वह कितना न्यायी था कि अपने प्राणों से प्रिय पुत्र को भी अपराध पर भारी से भारी दण्ड दे सकता था। जिसका हृदय पुत्र के लिये भी द्रवित न हो वह रणाङ्गण में तो कैसा तेजस्वी वीर होगा यह सहज अनुमान किया जा सकता है। सहणपाल का दिल्ली सम्राट् अल्तमस की सेना में सैनापति बनना पिता द्वारा तिरस्कृत होकर सहणपाल अजमेर का त्याग कर शीघ्र दिल्ली पहूँचा । दिल्ली के सिंहासन पर उस समय गुलामवंशीय सम्राट् अल्तमस था । वह वीरों का स्वागत करता था और उनको शाही सैन्य में योग्य स्थानों पर नियुक्त करता था। सहणपाल ने सम्राट् से भेंट की और अपने तिरस्कृत हो कर आने की सर्व कथा कह सुनाई । सम्राट ने सहणपाल को निर्भीक योद्धा एवं सत्यभाषी समझकर उसको शाही सैन्य में एक सैनानायक का पद प्रदान किया । सहणपाल गुलामवंश के अन्तिम बादशाह कैकबाद के शासनकाल तक दिल्ली सम्राटों की सेवा करता रहा । अनेक युद्धों में उसने For Personal and Private Use Only Jain Educationa International www.jainelibrary.org
SR No.012074
Book TitleYatindrasuri Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherSaudharmbruhat Tapagacchiya Shwetambar Shree Sangh
Publication Year
Total Pages502
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size14 MB
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