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________________ विषय खंड श्री नमस्कार महामंत्र ६७ श्री अरिहंत भगवान के स्वरूप का विशेष विवरण श्री आवश्यक सूत्र श्री विशेषावश्यक भाष्य और श्री वीतराग स्तोत्र आदि से जानना चाहिये । अरिहंत के नाम -- अर्हन् जिनः पारगतस्त्रिकालविद् क्षीणाष्टकर्मा परमेष्ठयधीश्वरः ॥ शम्भुः स्वयम्भूर्भगवान् जगत्प्रभुस्तीर्थङ्करस्तीर्थकरो जिनेश्वरः ॥ २४ ॥ स्याद्वाद्यमयदसार्वाः सर्वज्ञः सर्वदर्शि केवलिनौ । देवाधिदेवबोधिद पुरुषोत्तमवीतरागाप्ताः ॥ २५ ॥ अईन्, जिन, पारगत, त्रिकालविद्, क्षीणाष्टकर्मा, परमेष्ठि, अधीश्वर, शम्भु, स्वयंभू, भगवान, जगत्प्रभु, तीर्थकर, तीर्थकर, जिनेश्वर, स्याद्वादि, अभयद, सार्व, सर्वश, सर्वदर्शी, केवली, देवाधिदेव, बोधिद, पुरुषोत्तम, वीतराग और आप्त । ऐसे परम महिमावन्त श्री अरिहंत भगवान की महिमा का गान करते हुये जैनाचार्यवर्य श्रीमद् राजेन्द्र सूरीश्वरजी महाराज ने श्री सिद्धचक्र पूजा में लिखा है कितित्थयरं नाम पसिद्धिजायं, णरामरेहिं पणयं हि पायें । संपुण्णनाणं पयडं विसुद्धं, नमामि सोहं अरिहन्तबुद्धं ॥ १ ॥ ( तीर्थंकर नाम्ना प्रसिध्दि प्राप्तं नरामरैः यस्य प्रणतं हि पादम् । सम्पूर्णज्ञान युक्तं विशुद्धं नमाभि सोऽहमरिहन्तं बुद्धम् ॥ ) तीर्थंकर इस नाम से जो प्रसिध्दि को प्राप्त हुवे हैं, जिन के चरण कमलों को मनुष्य और देवता प्रणाम करते हैं । जो सम्पूर्ण ज्ञानी हैं, स्वयं विशुध्द है, वे ही अरिहन्त बुध्द हैं। उन्हों को मैं नमस्कार करता हूँ । 'सिद्ध : ध्यातं सितं येन पुराण कर्म यो वा गतो निर्वृत्ति सोधमूर्ध्नि ख्यातोनुशास्ता परिनिष्ठितार्थो, यः सोऽस्तु सिध्दः कृतमंगलो मे ॥ जिसने बहुत भवों के परिभ्रमण से बांधे हुवे पुराने कर्मों को भस्मीभूत किये हैं, लशकाद्धिते सूत्र से ककार का लोप होने पर सिध् + त् १ सिधू धातु से निष्ठा " | ३ |२| १०२ | सूत्र से क्त प्रत्यय आने पर सिध् + क्त बना । | ११६|| सूत्र से ककार की इत् संज्ञा तथा तस्य लोप: " रहा झषस्तथोर्घोषः " |८|२|४०| सूत्र से तकार का धकार तथा झलां जश् झशि " १८/४/५३ | सूत्र से सिध् के धकार का दकार तथा सब को मिलाने पर सिद्ध ऐसा रूप बनता हैं । सिद्ध शब्द से शक्तार्थवणड् नमः स्वस्ति स्वाहा स्वाधाभिः " | २|२| २५ | सूत्र से नमः के योग में चतुर्थ विभक्ति होती हैं । अतः चतुर्थी का भ्यस प्रत्यय आया और चतुर्थ्याः षष्टीः | ८|३|१३१ | से भ्यस् के स्थान पर आम भादा सिद्ध + आम जस् शस् ङसित्तो दो द्वामि दीर्घः | ८|३|१२| सूत्र से अजन्तांग को दीर्घ तथा टा भामोर्णः सूत्र से भक्कार का णकार तथा मोनुस्वारः | ८ |१| २३ | से मकार का अमुस्वार होने पर सिद्धरूण सिद्धाणं बनता है। 1 Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012074
Book TitleYatindrasuri Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherSaudharmbruhat Tapagacchiya Shwetambar Shree Sangh
Publication Year
Total Pages502
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size14 MB
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