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________________ - विषय खंड स्याद्वाद की सैद्धान्तिकता - जब मोक्ष ही सिद्ध न हुआ तो बंध ही क्या बाकी बचा रह सकता है ! इस प्रकार संसार में पुण्य-बाप, बन्ध-मोक्ष, सुख-दुःख ही नहीं होगा तो संसार ही क्या ? संसार रहेगा ही क्यों ? संसार शब्द ही परिवर्तन का द्योतक है। सृ सरकने धातु से बना । संसरतीति संसार यह संसार शब्द की व्युत्पत्ति ही परिवर्तनमय संसार का दिग्दर्शन कराती है । अरहट्टघटिका की भाँति परिवर्तनचक्र संसार का चालू है । कोई जन्मता है तो कोई मरता है । आज राजा तो कल रंक । आज गरीब कल अमीर । आज दुःखी कल सुखी । सूर्य दिन में तीन दिशा बदलता है । मानव एक जीवन में तीन रूप बनता है । बालक, बुढा, नवयुवान । इसी सत्य को समन्तभन्द्राचाय इस प्रकार बताते हैं भावेषु नित्येषु विकारहानेर्न कारकव्यापृतकार्ययुक्तिः । न बन्धभौगो न च तब्दिमोक्षः समस्तदोषं मतमन्यदीयम् ॥ अतःसिद्ध है कि दार्शनिक क्षेत्र में एकान्त नित्य और एकान्त अनित्य दोनों पक्ष युक्ति युक्त नहीं है। सत्य को सम्यकरीत्या समझने का उपाय स्याद्वाद मानव यदि सत्य समझना चाहता है तो विना स्याद्वाद के दूसरा मार्ग नहीं । उसे स्याद्वाद का सहारा लेना ही होगा । इसी के आधार वह सत्य को हृदयंगम कर सकता है । एक उदाहरण ही एक मानव एक लकीर को देख कहता है यह छोटी है। दूसरा उसी को बेठी कहता । किन्तु स्याद्वादवादी दोनों के सामने एक छोटी बड़ी दो लकीर खींचकर दोनों का समाधान करदेता है । अस्तु कहने का तात्पर्य यही कि आखीर स्याद्वाद ही मानव को सरल उपाय से सत्य बता सकता है । नयप्रमाण आदि भी इसी स्याद्वाद में समाता हैं। इसके विषय में जितना भी लिखा जाय कम होगा । इसके सभी स्वतन्त्र ग्रन्थ ही तैय्यार हो जाय । अतः अमृतचन्द्र स्याद्वाद के मार्मिक विद्वान् ने इसीको प्रणाम करते लिखा हैं । परमागस्य बीज निषिध्य जात्यंधसिन्धुरविधानम् सकलनयविलासितानाम्, विरोधमथनं नमाम्यनेकान्तम् -पुरुषार्थ मिध्युपाय २ Jain Educationa International For Personal and Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012074
Book TitleYatindrasuri Abhinandan Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKalyanvijay Gani
PublisherSaudharmbruhat Tapagacchiya Shwetambar Shree Sangh
Publication Year
Total Pages502
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size14 MB
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