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________________ ओर जिन पर बलप्रयोग हुआ है, उन्होंने धूर्तता अथवा छल- भावनाओं से ओतप्रोत जातियों, राष्ट्रों, वर्गों तथा सम्प्रदायों कपट का आश्रय लिया है । इस प्रकार बलप्रयोग और छल- ने कब्जा कर लिया है। अतः आज हम यह विरोधाभास देखते कपट एक दूसरे के पूरक हो गये हैं। सामाजिक सम्बन्धों का हैं कि वस्तुओं की बहुलता होते हुए भी मनुष्य गरीब है और विश्लेषण करने पर ये दोनों एक ही व्यापार के दो रूप प्रकट आत्मप्रकाश के अनेक साधन होते हुए भी वह अंधकार से होते हैं । छल-कपट का आश्रय शोषित ही नहीं लेते हैं, शोषक घिरा है। भी अपने प्रभुत्व तथा शोषण का चक्र पूरा करने में, जहाँ बलप्रयोग से त्रुटि रह जाती है, वहाँ छल-कपट का आश्रय स्वप्न-भङ्ग लेते हैं। दासता का व्यक्तित्व की मूल प्रेरणा, स्वाधीनता से यह समस्या सारे संसार के सामने उपस्थित है, और विरोध है, जिसकी ग्राहम वैलेस ने बड़ी ही सुंदर व्याख्या यह इसके हल के लिये दार्शनिकों तथा राजनीतिज्ञों ने विविध कह कर की है कि सम्पूर्ण उन्नति के पथ पर सदा अग्रसर योजनायें प्रस्तुत की हैं । आज से ४२ वर्ष पहले, जब पिछले रहने, उत्तिष्ठ बनने की सतत भीतरी प्रेरणा, एक शब्द में महायुद्ध (१९१४-१८) का अंत हुआ था, उस समय संसार के स्वानुभति ही स्वाधीनता है। अतः दासता प्रतिरोध को जन्म विचारशील पुरुषों का ध्यान लोकतंत्रवाद, आत्मनिर्णय, अंतदेती है। प्रभगण प्रतिरोध की चूल ढीली कर के तथा प्रचार राष्ट्रीय सहयोग तथा न्याय, निरस्त्रीकरण तथा स्थायी शांति द्वारा जीवन का मान गिरा कर, तथा भय, लोभ, जड़ता, की स्थापना करने के उपाय खोज निकालने की ओर प्रवृत्त स्वार्थपरता आदि अधोमुखी प्रवृत्तियों को उभाड़ कर स्थिति हुआ था। उस समय की युग-भावना ने जैसे अमेरिका के की स्वीकृति कराने की चेष्टा करते हैं। इस प्रकार आज के प्रेसीडेंट वडरो विल्सन में अपनी वाणी पा ली थी, जिनकी सामाजिक सम्बन्धों के मूल में बलप्रयोग तथा छल-कपट आदर्शवादिता तथा वाग्मिता ने पूर्व तथा पश्चिम के लोगों व्याप्त हैं, जिससे आधुनिक समाजशास्त्री यह निष्कर्ष निकालते को समान रूप से आकर्षित किया था । परंतु २० ही वर्षों के हैं कि ये ही सभ्यता के मूलाधार हैं। भीतर सारे स्वप्न खंडित हो गये और वर्तमान युद्ध का श्री गणेश हुआ। स्वप्न-भंग का प्रधान कारण हमारी यह गलती आधुनिक युग की मूल समस्या है, जो राजनीति में बहुधा होती है कि हम राजनैतिक तथा यह आक्षेप सत्य है, विशेष रूप से आधुनिक युग के लिए आर्थिक क्षेत्र के रोगों के मूल कारणों का उपचार न करके, और अधिक सत्य है, जिसमें पिछले सौ वर्षों में दूरी का अन्त उनके लक्षणों का उपचार करने की चेष्टा करते हैं। राजनीति हो गया है, तथा भिन्न-भिन्न जातियाँ, संस्कृतियाँ तथा तथा कूटनीतिका वातावरण हमेशा जल्दबाजी तथा अशांति का विचार-दृष्टियाँ एक-दूसरे के निकट आगई हैं, ऐसी अवस्था रहता है। राजनीतिज्ञ बहुधा सतह की चीजों का निरीक्षण करके में नई व्यवस्था के लिये प्रयत्न होना अनिवार्य था, परंतु इन तथा ऊपरी शिकायतों का उपचार कर के संतुष्ट हो जाते हैं। प्रयत्नों के पीछे प्रायः वर्ग-विशेष का प्रभुत्व स्थापित करने यही १६१८-२० के संसार में घटित हुआ। फलतः पुरानी की भावना प्रधान रही है, जिसके कारण प्रसिद्ध वैज्ञानिक बीमारियाँ उभड़ आईं, अथवा जारी रहीं-शस्त्रीकरण में प्रतिऔर समाजशास्त्री बटैंड रसेल को कहना पड़ा है कि, बल- द्वन्द्विता चलती रही, गुप्त कूटनीति कायम रही, तथा उग्र प्रयोग राजनीति का मूलाधार है, जिस प्रकार शक्ति भौतिक राष्ट्रीयता, साम्राज्यवादिता, सबलों द्वारा निर्बलों का शोषण, विज्ञान का मूलाधार है। पिछले दो सौ वर्षों के इतिहास में जातिगत अहंकार तथा युद्धों का बोलबाला रहा। स्वप्न-भंग विज्ञान की प्रगति सबसे प्रधान रही है। उसने उत्पादन तथा का एक दुःखद परिणाम यहाँ विशेषरीति से उल्लेखनीय है। संगठन के नये यंत्र प्रदान किये हैं, जिससे संसार के सभी नर- इधर निराशाओं ने मनुष्य में सभी वातों का उपहास उड़ाने नारियों के लिये आनंद तथा सुख संस्कृति तथाज्ञान और शांति तथा उनमें दोष निकालने की एक विशेष प्रवृत्ति को जन्म तथा सुरक्षा के साधन सुलभ हो गये हैं। परंतु, अभी तक कुछ दिया है, जब कि इस समय उदात्त विचारों तथा अदम्य ही देशों में, और वहाँ भी कुछ ही वर्गों को ये साधन सुलभ हो उत्साह की पहले से भी अधिक आवश्यकता है। पश्चिमी राजसके हैं, सो भी बीच-बीच में युद्ध का व्यवधान पड़ता रहा है। नीति मौलिक पुनर्निर्माण से भय खाती है। मालूम पड़ता इसका कारण गूढ़ नहीं है। इसका मूल कारण यह है कि नये है कि उसने भविष्य के बारे में विश्वास खो दिया है। साधनों पर संघर्ष, घृणा, शोषण तथा पराजय की पुरातन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012073
Book TitleShantilal Vanmali Sheth Amrut Mahotsav Smarika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDalsukh Malvania
PublisherSohanlal Jain Vidya Prasarak Samiti
Publication Year
Total Pages148
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size22 MB
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