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________________ मेरे जीवनादर्श शान्ति-यात्रा (जीवन-झांकी) -शान्तिलाल वनमाली शेठ अहिंसा-त्रिमूर्ति कुटुम्ब-यात्रा-१९११ से १६१८ पुरुषार्थी पितामह पूज्य श्री पुरुषोत्तमदास रायचंद शेठ वावड़ी स्टेशन नौकरी करने आये और यहीं के वाशिंदे हो गये । अपनी सूझबूझ और कार्यकुशलता से नौकर से शेठ बन गये और अपनी गाढ़ी कमाई से महादेव शेरी, जेतपुर में अपने मकान एवं दुकान खरीदकर वहाँ रहने लगे। दादीमा मोंघीमा अपंग लेकिन कुटुंबवत्सला थीं। उनके दो पुत्र-मेरे पूज्य पिताश्री वनमालीदास और चाचा हीराचंद-जो विक्षिप्त होने पर भी-बड़े ही स्नेहशील थे। मेरी ऊजमबा नामक भुआ भी थी। उनका विशाल परिवार जेतपुर में ही रहता है। पूज्य मातुश्री मणिबाई की कुक्षी से मेरा जन्म जेतपुरमें दिनांक २१-५-१९११ में हुआ। मेरे बड़े भाई जेसुखलाल-जिनकी परिश्रमशीलता और प्रामाणिकता की छाप आज भी मेरे जीवन पर अंकित है और प्रभुदास तथा वल्लभदास-दो छोटे भाई-जो एक जेतपुरमें और सबसे छोटा अंधेरी बंबई में रहते हैं। मेरी प्रिय बहिन लीलावंती-जिनका देहावसान हो गया है। लेकिन मेरा प्रिय भानजा-नगीनदास-मेरी प्रिय बहिन के स्नेह को तरोताजा रखता है। छोटी बहन गुलाबबेन सपरिवार धोराजी रहती है । मेरा एक भाई सौभाग्यचंद बचपन में ही चल बसा लेकिन उसकी स्नेहस्मृति आज भी ताजी है। मेरी बाल्यावस्था में पू० दादाजी, पूज्य मातापिता और बड़े भाई के जो सुसंस्कार पड़े हैं वे ही मेरे जीवन की मूल्यवान धरोहर है। परिश्रमशीलता, धार्मिकता, प्रामाणिकता और सहृदयताये गुण मेरे जीवन-विकास के साधन बन गये हैं। मेरी कुटुम्ब-यात्रा की यही संक्षिप्त जीवनगाथा है। विद्या-यात्रा-१९१८ से १९२६ जेतपुर में गुजराती-शाला और कमरीबाई हाईस्कूल में माध्यमिक शिक्षण । हेडमास्टर श्री कथरेचा की नियमितता व शिष्टता, श्री वसंतराय की अनुशासनप्रियता और श्री वी०सी० मेहता साहब की विवेकबुद्धि को वंदना । विद्या के क्षेत्र में मेरी विचक्षणता और विलक्षणता-यह मेरी विशेषता थी। १५ वर्ष की उम्र में जैन ट्रेनिंग कॉलेज बीकानेर के लिए प्रस्थान । अच्छी व्यवस्था। १५ सहाध्यायियों में अपूर्व स्नेहभाव।स्व. वा.मो. शाह की अध्यक्षता में कॉन्फरन्स का अधिवेशन। वा.मो. शाह की जैन संस्कृति, साहित्य, समाज के उत्थान की तमन्ना से प्रभावित। बालनाटक में पुरस्कृत। पू. भैरोदानजी सेठिया की अपूर्व धर्म-प्रवृत्ति पूज्य श्री जवाहिराचार्य के दर्शन । थोकड़ों के ज्ञानकी कंठस्थ प्रथा। राजा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012073
Book TitleShantilal Vanmali Sheth Amrut Mahotsav Smarika
Original Sutra AuthorN/A
AuthorDalsukh Malvania
PublisherSohanlal Jain Vidya Prasarak Samiti
Publication Year
Total Pages148
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size22 MB
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