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________________ शुभाशीष/श्रद्धांजलि साहित्य मनीषी की कीर्ति स्मृतियाँ समाज के कल्याणकारी पं.शिखरचंद जैन लक्ष्मीपुरा, सागर पूज्य आदरणीय गुरुवर श्री दयाचंद जी साहित्याचार्य जो कि संस्था में बहुत समय से प्राचार्य पद पर थे आप संस्था को सुचारू रूप से चला रहे थे, और आपके द्वारा पढ़ाये हुए बहुत छात्र विद्वान बनकर समाज को धार्मिक उपदेश देकर सभी को सत्मार्ग पर लगा रहे हैं। आप हमेशा कहते थे - “संस्थागते प्रबुद्ध मानवानां कल्याणं भवति" अर्थात् जिस पवित्र स्थान पर ज्ञानी मानव सुपर कल्याण के लिए परामर्श देते है , उनका ही जीवन सफल होता है। यह आपने कर दिखाया और हमेशा आप से जो भी आशीर्वाद लेता था उससे हमेशा कहते थे कि हमारी मंगलकामना है। हमेशा धर्म का प्रचार करते रहना इन्हीं भावनाओं के साथ गुरुवर के चरणों में हमारा नमन । विनयांजलि पं. ज्ञानचंद जैन गरोठ (मंदसौर) म.प्र. परमादरणीय डॉ. पं. दयाचंदजी साहित्याचार्य जी के प्रति लेखनी से जितना लिखा जावें उतना ही कम है। परम पूज्य पंडित जी साब से लगभग 14 वर्ष के संपर्क में पंडित जी साब की विद्वत्ता का जो कार्य देखने में आया वो निश्चित ही अद्वितीय है तथा हर कोई व्यक्ति इतनी वृद्धावस्था तक जैन शिक्षा से जुड़े रहकर इतना सफलतम कार्य नहीं कर सकता । साथ ही कार्यशैली अनुशासन बद्ध तथा नि:स्वार्थता की जाना सराहनीय भी है । तथा आगे आने वाली पीढ़ी के लिए उत्तम मार्ग दर्शन को भी प्रदर्शित करता है पयूषण पर्व में लगभग 50 वर्षो तक देश के महानतम विभिन्न शहरों में जाकर जैन धर्म की प्रभावना करना तथा वहाँ से सम्मानित प्राप्त राशि को महाविद्यालय के प्रति खर्च कर देना यह पूर्णतया नि:स्वार्थता का परिचायक है । तथा जीवन में अपनी लेखनी से समाज व राष्ट्र के लिए अच्छे ग्रन्थों का लेखन व प्रकाशन करवाना यह श्रुत सेवा का अनूठा उदाहरण है । ऐसे मनीषी लम्बी आयु पाकर उसका अवसान होना यह भी उनके सात्विक जीवन का परिचायक है। ऐसे विद्वान मनीषी के प्रति हमारी सच्ची श्रद्धांजलि यही होगी कि विद्वत्तजन श्रुत के आदर्शो को अपने जीवन में उतारें । व अपना जीवन उनके अनुसार चलायें । यही पंडित जी के प्रति हमारी विनयांजलि है। -51 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012072
Book TitleDayachandji Sahityacharya Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Digambar Jain Sanskrit Mahavidyalaya Sagar
PublisherGanesh Digambar Jain Sanskrit Mahavidyalaya Sagar
Publication Year2008
Total Pages772
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size25 MB
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