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________________ शुभाशीष/श्रद्धांजलि साहित्य मनीषी की कीर्ति स्मृतियाँ द्वारा किसी भी प्रकार की समस्या आने पर उसका समाधान आदरणीय पंडित श्री द्वारा तुरंत सहजता से प्राप्त होता था । पंडित जी द्वारा जैन पूजा काव्य नामक ग्रंथ लिखा गया, जिस ग्रंथ पर ही उन्हें डाक्टर की उपाधि प्राप्त हुई । वह ग्रंथ आगे आने वाले समय में समाज के लिए तथा विद्वानों के लिए मार्ग दर्शक बनेगा ऐसी मेरी भावना है। उन्होंने अपने जीवन भर की पूरी साधना के द्वारा उस ग्रंथ की रचना की है। उनके संबंध में उक्त कहावत सार्थक होती है। सादा जीवन उच्च विचार , ये दोनों उन्नति के द्वार । उन्होंने इस कहावत के आधार पर अपने जीवन को संचालित किया है। वे यदि विद्यार्थी को दण्ड दिया करते थे तो उनका भाव उस दण्ड में यह छिपा रहता था कि यह विद्यार्थी आगे चलकर समाज में समस्त धार्मिक क्रिया कलापों के करने में सक्षम बने, तथा अपनी समाज और धर्म की उन्नति में सहायक भविष्य में सहायक बने । उननें क्षमा की भावना को अपने जीवन में उतारा था। उन्होंने अपने जीवन भर श्री गणेश दिगम्बर जैन संस्कृत महाविद्यालय, सागर (म.प्र.) में कार्य किया । अपने जीवन के अंतिम क्षण तक, जब उनका जीवन पूर्ण स्वस्थ नहीं था फिर भी विद्यार्थियों के लिये पढाया है ऐसे व्यक्ति बहुत कम हुआ करते हैं। जो विद्यालय से प्राचार्य पद छोड़ने के बाद पढ़ाते रहे। इन्हीं की प्रेरणा पाकर मैंने विद्यालय में पढ़ाने का कार्य किया और आज भी सामाजिक कार्य के साथ अभी पढ़ा रहा हूँ। ऐसे व्यक्तित्व के लिए मैं नमन करता हुआ अपनी विनयांजलि समर्पित करता हूँ समय के सदुपयोग की शिक्षा हमें पूज्य पंडित जी के जीवन से मिली। संदीप शास्त्री, एम.बी.ए. जबलपुर माँ सरस्वती के पुत्र पूज्य पंडित श्री डॉ. दयाचंद जी साहित्याचार्य का जीवन एक आदर्श जीवन रहा है। उनके जीवन चरित्र से हमें अनेक शिक्षाएँ मिलती है पूज्य पंडित जी के सैकड़ों शिष्यों में से मैं एक हूँ| उनके जीवन से हमने समय के सदुपयोग की शिक्षा ग्रहण की है तथा उन्हीं की शिक्षा का फल है कि मुझे हर कदम पर सफलता मिली है। पूज्य पंडित जी के साथ एक बार पर्युषण में रायपुर गया था। तब पूज्य पंडित जी की पूरी दैनिकचर्या को मैंने देखा । पूज्य पंडित जी समय के एक - एक पल का उपयोग करते थे। मैंने 10 दिन तक उनके साथ उनकी दिनचर्या का अवलोकन किया। तथा समय की कीमत को पहचाना यही कारण है कि मैं आज सफलता के चरम पर हूँ। अत: पूज्य पंडित जी की शिक्षा हमारे जीवन के लिए एक सफल मंत्र सिद्धी की तरह सिद्ध हुई। किसी ने कहा ही है कि गुरुर्ब्रह्मा गुरु विष्णु गुरु र्देवो महेश्वरा । गुरुः साक्षात् परब्रह्म तस्मै: श्री गुरुवे नमः ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012072
Book TitleDayachandji Sahityacharya Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Digambar Jain Sanskrit Mahavidyalaya Sagar
PublisherGanesh Digambar Jain Sanskrit Mahavidyalaya Sagar
Publication Year2008
Total Pages772
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size25 MB
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