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________________ शुभाशीष/श्रद्धांजलि साहित्य मनीषी की कीर्ति स्मृतियाँ अपार श्रद्धा के प्रतीक मेरे गुरु जी कोमलचंद जैन लेखनी देखनी भण्डार , सागर पूज्य पंडित डॉ. दयाचंद जी साहित्याचार्य प्राचार्य श्री गणेश दिगम्बर जैन संस्कृत महाविद्यालय वर्णी भवन सागर मेरे परम आदरणीय थे। आज भी विश्वास नहीं होता है कि वे हमारे बीच नहीं है, क्योंकि उनके महान गुणों का सदैव स्मरण होता रहेगा। उनका आदि, मध्य और अंत सदैव उपकारी तथा गुणानुरागी रहा है। उनके आज्ञाकारी शिष्य होने का मुझे भी गौरव प्राप्त हुआ है । वे समुद्र के समान गंभीर तथा हिमालय के समान ऊँचे तथा विमल विचारों को अपने हृदय में समाहित किये थे। समय पर विद्यालय में आना तथा समय से विद्यालय से घर जाना, उनका दैनिक अनुशासन पूर्ण जीवन समीचीन क्रिया का अंग था। वे "अणोरणीयान महतो महीयान' की कहावत को चरितार्थ किये थे। वे पुरानी पीढ़ी के मूर्धन्य विद्वानों की परम्परा के आदर्श स्तंभ थे। पूज्य वर्णी जी महाराज के शुभाशीष का जीवन भर पालन किया । पूज्य पिताश्री के संस्कारों की उन पर अमिट छाप थी। मुझे गुरु जी के साथ वर्ष 2005 में तिजारा जी क्षेत्र जाने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। पूज्य गुरु जी को श्रुत संवर्धन पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। उनकी सबसे छोटी सुपुत्री ब्र. किरण दीदी ने छाया की तरह अपने पिताजी की अंतिम समय तक सेवा की । उनके प्रति अपार श्रद्धा व्यक्त करता हुआ उनकी शांति एवं सद्गति की कामना करता हूँ स्मृति ग्रंथ प्रकाशक मंडल को साधुवाद देता हुआ उनके प्रयास का अभिनंदन करता हूँ किं बहुना नि:स्वार्थ सेवा भावी महेन्द्र कुमार जैन आयुर्वेदाचार्य मैं पंडित जी के शासन सानिध्य में 40-50 वर्ष रहा हूँ। एक समय मैं सागर से बाहर जाने की इच्छा से आपके पास पहुँचकर निवेदन किया, पंडित जी बड़े दयालु थे उन्होंने मुझे बहुत समझाया और आर्शीवाद देते रहे। उसी आशीर्वाद के साथ मैं अपनी श्रद्धा व्यक्त कर रहा हूँ। परम आदरणीय श्रद्धेय गुरु जी के अध्यापन समय के शिष्यों में डाक्टर, प्रोफेसर, इंजीनियर आई.ए.एस. इतिहास विद आदि को शिष्यत्व प्राप्त हुआ, आप नाम के अनुसार दयालु होते हुए अनुशासन प्रिय थे आपका जीवन बहुत ही सादा एवं वात्सल्य पूर्ण था। आप का स्नेह सभी की अपेक्षा 47 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012072
Book TitleDayachandji Sahityacharya Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Digambar Jain Sanskrit Mahavidyalaya Sagar
PublisherGanesh Digambar Jain Sanskrit Mahavidyalaya Sagar
Publication Year2008
Total Pages772
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size25 MB
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