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________________ शुभाशीष/श्रद्धांजलि साहित्य मनीषी की कीर्ति स्मृतियाँ हिमालय सा हृदय पं. भागचंद शास्त्री घरियावाद जिला उदयपुर (राज.) आदरणीय पंडित जी विशाल हृदय वाले निर्भीक थे। उनमें सागर सी गंभीरता, हिमालय सा हृदय, लौ पिण्ड सी दृढ़ता थी, किसी भी प्रकार का प्रलोभन उन्हें अपने मार्ग से परिच्यवन का हेतु नहीं बन पाता। आपको समाज से अनेक बार सम्मानित किया गया था। जो जिनवाणी की नि:स्पृह उपासना का फल है । पंडित जी ने अपनी मधुर परन्तु संयमी वाणी के माध्यम से समाज को सुसंस्कारित करने में योगदान दिया है। पंडित जी योग्य विद्वान थे और योग्यता का आदर होना चाहिए। मैं शुद्ध हृदय से उनका अभिनंदन करता हूँ । पंडित जी सा. “सादा जीवन उच्च विचार" ही पंडित जी के जीवन का चरितार्थ है। पंडित जी द्वारा विहित जिन शासन की प्रभावना और श्रुत सेवा चिरस्मरणीय रहेगी। भद्रभूयात वर्धतां जिनशासनम्। सरलता की प्रतिमूर्ति पं. विनोद कुमार सनत कुमार जैन __ प्रतिष्ठाचार्य, रजवांस परम्परागत विद्वानों की श्रृंखला में पं. प्रवर श्री दयाचंद्र जी साहित्याचार्य जी अग्रणी विद्वान रहे है। आपको क्रोध, मान,माया लोभ ने प्रभावित नहीं किया था सरलता, सहजता, निरलोभिता आपके विशेष गुण थे आपने पूजा साहित्य पर विशेष कार्य कर नये-नये रहस्योद्घाटन किये है आपके प्रवचन सरल, सुबोध एवं आगम के संदर्भो से ओत-प्रोत रहते थे अनेक बार आपको प्रवचनों के लिए आमंत्रित कर हमने आपके ज्ञान सरोवर में अवगाहन करने का सुयोग प्राप्त किया था। आपने जैनागम, साहित्य,समाज एवं राष्ट्र की सेवा अभिवृद्धि एवं प्रचार-प्रसार में जो योगदान दिया है उसे युगो-युगों तक स्मरण किया जायेगा। आपकी यश: कीर्ति युवाओं में प्रेरणा एवं उत्साह का संचार करेगी ऐसी मंगलकामना । 43 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012072
Book TitleDayachandji Sahityacharya Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Digambar Jain Sanskrit Mahavidyalaya Sagar
PublisherGanesh Digambar Jain Sanskrit Mahavidyalaya Sagar
Publication Year2008
Total Pages772
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size25 MB
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