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________________ दिवंगत विद्वानों के जीवन परिचय साहित्य मनीषी की कीर्ति स्मृतियाँ स्व. पं. धरम चंद्र शास्त्री (शाहपुर) जीवन परिचय पं. अमर चन्द्र शास्त्री, शाहपुर आप पं. भगवान दास जी भायजी के चतुर्थ सुपुत्र हैं आपकी जन्म नगरी, शाहपुर (मगरोन) है । आपका जन्म संवत् 2076 में हुआ था। आपने शाहपुर में ही शास्त्री तक अध्ययन किया है। और सन् 1945 में शाहपुर में पूज्य गणेश प्रसाद वर्णी द्वारा विद्यालय की स्थापना हुई थी। उसमें अध्यापन का कार्य किया है सन् 1962 तक विद्यालय चला है, यहाँ से निकले जैन जैनेतर विद्यार्थी बाहर सर्विस एवं अन्य कार्य में संलग्न है। शाहपुर विद्यालय की प्रशंसा करते हैं। पं. धर्मचंद्र जी धर्म कार्य में अग्रसर रहते थे, रात्रि में धर्म प्रवचन करते थे, उपदेश देते थे। हमारे (छोटे भाई) साथ विधान में पंचकल्याण प्रतिष्ठा में बाहर भी जाते थे, साथ में सहयोग भी करते थे। प्रवचन शैली सरल व मधुर थी, जिससे समाज भी बहुत प्रभावित होती थी। धर्मचंद्र जी ने पिताजी के गीतों का अभ्यास भी किया था, हारमोनियम बजाते थे। संगीत में पूजन कराते थे, रात्रि में आरती संगीत के साथ गीत गाते थे, नाटक आदि में संगीत चलाते थे। संगीत में बहुत रूचि थी, विधान आदि में गीत गाकर जन-जन को मोहित करते थे। उनमें दो गुण प्रधान थे। प्रथम है गुणी जनों का समागम मिलने पर अधिक प्रसन्न होते थे। द्वितीय है अपने को हमेशा लघु मानते थे और दूसरों से कहते थे कि आप के सामने हम कुछ नहीं है आप तो महान है, ऐसे गुणी बहुत कम लोग होते है, यह दोनों गुण उच्च गोत्र के कारण हैं। हम पाँचों भाई एकत्र होते थे तब समाज पाँच पांडव कहती थी और मंदिर जी में सबके प्रवचन होते थे। पं. धर्मचन्द्र जी की पत्नि का नाम फूलाबाई था इनका जन्म कर्रापुर का था । इनकी शिक्षा 10 वीं तक थी । आपको धर्म में बहुत रूचि थी। नित्य प्रति पूजन करती थीं आपके अष्टम प्रतिमा के व्रत थे। पं. धर्मचन्द्र जी प्रथम तो स्वयं की खेती का व्यवसाय करते थे उसी से घर खर्च चलता था संवत् 1989 में पिताजी ने एक छोटी सी किराने की दुकान करा दी थी। उस समय बहुत सस्ता समय था, तभी पूज्य वर्णी जी का आगमन हुआ। वर्णी जी दुकान की दशा देखकर बोले- हम सागर से किसी से सामान दिला देवेगे, तब हम दोनों भाईयों ने कहा कि हम धीरे-धीरे बढ़ेंगे, शीघ्र बढ़ना नहीं चाहते, शायद कर्ज हो जावे तो क्या करेंगे । इस प्रकार धार्मिक जीवन बिताते रहे, और धर्म साधन करते रहे। आपके तीन पुत्र है। 1. अभय कुमार, 2. भानुकुमार, 3. राजेन्द्र कुमार तीनों को बी.ए.तक सागर पढ़ने को भेजा । पुनः शाहपुर आ गये । इसी दुकान को बड़े रूप में बना लिया था। 1. अभय कुमार के पाँच सुपुत्री व एक पुत्र है। -661 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012072
Book TitleDayachandji Sahityacharya Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Digambar Jain Sanskrit Mahavidyalaya Sagar
PublisherGanesh Digambar Jain Sanskrit Mahavidyalaya Sagar
Publication Year2008
Total Pages772
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size25 MB
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