SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 761
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ दिवंगत विद्वानों के जीवन परिचय साहित्य मनीषी की कीर्ति स्मृतियाँ सागर) आदि उपस्थित रहे । इस प्रकार से पंडित जी का ध्यान अपने नश्वर शरीर से हटकर वीतरागता की चर्चा में रहता था और उनका वातावरण वीतराग मय आचार्यश्री के संरक्षण के कारण हो गया था। पंडित जी के जीवन के अंतिम दिन, सावन सुदी 14 को शाम को, आचार्यश्री अपने संघस्थ मुनियों सहित पंडित जी के पास आये और उन्होंने यह कहा “पंडित जी तुम पास हो गये हो, अब मेरिट बनाने की आवश्यकता है।" आचार्यश्री को उस समय यह आभास हो गया था कि पंडित जी का यह अंतिम दिवस है अत: आचार्यश्री पंडित जी को लगभग आधा घण्टा तक अपना संबोधन देते रहे और अपने संघ के मुनि पूज्य श्री समाधि सागर एवं छुल्लक तथा ब्रह्मचारियों को पंडित जी की वैयावृति में नियुक्त कर दिया। पंडित जी के अंतिम समय ही रात्रि में उपस्थित व्यक्तियों ने बारी बारी से णमोकार मंत्र,समाधि मरण और वैराग्य भावना का पाठ, आत्म संबोधन सहित, सतत् रूप से सुनाया। उपस्थित व्यक्तियों, पंडित जी के पुत्र कमल कुमार, सुरेन्द्र कुमार, महेन्द्र कुमार भी उपस्थित थे अर्द्ध रात्रि के समय, इस धार्मिक वातावरण में पंडित जी से पूछा गया कि "आप मंत्र सुन रहे हो" तो उन्होंने सिर हिलाकर अपनी स्वीकृति दी और उन्होंने शांति पूर्वक अपना नश्वर शरीर त्याग दिया । इसकी सूचना, तुरंत ही आचार्यश्री को दी गई। वे उस समय जाग रहे थे। उन्होंने मुस्कराकर अपना सिर हिला दिया। पंडित जी की समाधि का समाचार पपौराजी तथा टीकमगढ़ शहर में तुरंत ही फैल गया, वहाँ की जैन समाज ने अपना कारोबार बंद रखा तथा काफी संख्या में जैन समाज पंडित जी के दर्शन करने और अंतिम संस्कार में सम्मानित होने के लिए एकत्रित हो गये। उन्होंने एक विमान बनाया और पंडित जी के पार्थिव शरीर को उस में बैठाकर, पपौराजी के क्षेत्र से लगी हुई खाली बीरान जगह पर धार्मिक रीति से दाह संस्कार किया गया । इसमें ब्रह्मचारियों ने सक्रिय भाग लिया। इस अंतिम यात्रा में लगभग एक हजार व्यक्ति सम्मिलित हुये थे । वृश्य अपूर्व था। सभी के अश्रुपूरित श्रद्धा के आँसू थे। वहाँ स्मारक के रूप में एक चबूतरा बना दिया गया है। इस प्रकार पंडित जी ने आचार्य श्री के संरक्षण में सल्लेखना व्रत का पालन करते हुये शांति से विदा हो गये। उपस्थित जन समूह ने समाधि स्थल पर जाकर अपनी श्रद्धांजली दी। यह रक्षाबंधन के पर्व का दिन था । दोपहर को आचार्यश्री के प्रवचन हुये । प्रवचन के अंत में आचार्यश्री ने पंडित जी के आत्मोसर्ग की विशेष चर्चा की और प्रशंसा करते हुये कहा कि “पंडित जी जैसा समाधि मरण विरले ही जीवों को होता है ।" ऐसे व्यक्ति को अधिक से अधिक 6-7 भवों के पश्चात् मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है इसके पश्चात् भी आचार्यश्री पंडित जी के समाधि की चर्चा प्रसंग आने पर कर लेते है। इस प्रकार पंडित जी अपने आत्म पुरुषार्थ और तीव्र पुण्य कर्मोदय के कारण, प्रथम - निर्धन परिवार से संपन्न परिवार, द्वितीय - संपन्न परिवार से पंडित, तृतीय - पंडित से दशवीं प्रतिभाधारी ब्रह्मचारी एवं अंत में सल्लेखना व्रत के साथ समाधि की सफल यात्रा कर अपने मानव जीवन को सफल बनाया। हम लोग भी उनके पद चिन्हों पर चलकर अपना जीवन सफल बनाने की भावना भाते है। ओम शांति। 656 - Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012072
Book TitleDayachandji Sahityacharya Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Digambar Jain Sanskrit Mahavidyalaya Sagar
PublisherGanesh Digambar Jain Sanskrit Mahavidyalaya Sagar
Publication Year2008
Total Pages772
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size25 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy