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________________ दिवंगत विद्वानों के जीवन परिचय साहित्य मनीषी की कीर्ति स्मृतियाँ नियुक्ति देने की कृपा करें किन्तु कमेटी ने कहा यहाँ अध्यापक की जगह खाली नहीं है। पूज्य वर्णीजी महाराज को जब ज्ञात हुआ कि पं. दयाचन्द्र अब सिवनी (म.प्र.) में जैन पाठशालाएँ पढ़ाने 55 रुपया मासिक पर जा रहे है तथा सामान तैयार हो गया तब वर्णी जी ने समाज को समझाया कि विद्वान बनाना बड़ा कठिन है तथा ऐसे कुशाग्र बुद्धि विद्वान का मिलना सबसे कठिन है। समाज ने पूज्य वर्णी जी की बात तथा 35 रुपया मासिक वेतन पर पढ़ाने लगे। बाद में 55 रुपया हुए तथा वर्ष 1923 से 1971 तक लगभग 48 वर्ष की दीर्घकालीन सेवाओं के बाद अपने स्वास्थ्य के कारण स्वेच्छा से प्राचार्य पद से सेवा निवृत्ति लेकर कुशल धार्मिक जीवनयापन कर इस महाविद्यालय को अपना मार्ग दर्शन देकर अपना उत्तरदायित्व स्वनामधन्य सरस्वती के अमर संवाहक सारस्वत पुत्र पं. पन्ना लाल जी साहित्याचार्य को सौंपकर अपना श्रावक कुलोत्पन्न मर्यादित जीवन व्यतीत करने लगे । धन्य है ऐसे सरस्वती पुत्र | मात्र 263 रुपया वेतन पाकर वे स्वेच्छा से सेवा निवृत्त हुए । स्मरणीय आदर्श व्यक्तित्व एवं समापन बेला : पूज्य पं. स्व. दयाचन्द्र जी सिद्धांत न्यायातीर्थ का समर्पित अध्यापक एवं प्राचार्यकाल एक समर्पण का अनोखा अविस्मरणीय बिन्दु है । वे यथानाम तथा गुण वाले दया के सिन्धु तथा चन्द्र याने विरली प्रतिभाओं में से एक थे सेवा काल में प्रातः नित्यमय पूजन, स्वाध्याय तथा भोजन से निवृत्ति होकर ठीक 10:30 से 4:30 महाविद्यालय में रहकर जैन धर्म दर्शन न्याय विषयों को छात्रगम्य सरलतम शैली में पढ़ाकर कंठस्य कराने में वे जितने सिद्धहस्त थे अन्यत्र ऐसा मिलना संभव नहीं है। वे आज भी वर्तमान एवं पूर्व शिष्य परम्परा के आदर्श है। वे अत्यंत दयालु थे । छात्रों पर बैत उठता जरूर था किन्तु उनकी आसन की गद्दी पर ठहर जाता था । वे देवशास्त्र गुरु के परम भक्त थे । पुण्यतिथि :- पं. जी का अवसान 24 जून 1974 को रात्रि में ब्रह्ममुहूर्त में ऐसी दशा में हुआ जिसे हम स्वाध्याय की पावन स्थिर दशा कह सकते है। सौम्य, गंभीर, उपदेशक, ध्यान अवस्था में बिना किसी बीमारी के हुआ। सारा सागर जैन समाज शोक सागर में डूब गया उनकी श्रृद्धांजलि सभा में जो उद्गार प्रगट हुए थे वे पू. वर्णी जी महाराज के प्रतिनिधि शिष्य के रूप में हुए थे । वे आज भी माँ जिनवाणी के शाश्वत अमर पुत्रों में हम सबके आदर्श है। समापन तथ्यपूर्ण कथ्य :- यद्यपि पं. दयाचंद्र जी की लेखनी से लिखित कोई कृति नहीं है तथापि पू. वर्णी महाराज द्वारा पं. जी को प्रेषित धार्मिक पत्र उनकी विद्वता तथा नीतिपूर्ण व्यक्तित्व के अविस्मरणीय आलेख है । प्रातः तथा रात्रिकालीन प्रवचन श्री पठा दि. जैन मंदिर सागर में आजीवन करते रहे । पू. विद्यासागर जी महाराज के ससंघ सानिध्य में वर्ष 1993 में वर्णी संस्कृत महाविद्यालय के पुराने छात्रावास hat आधुनिक बनाकर स्व. दयाचंद्र सिद्धांत शास्त्री स्मृति भवन का नाम रखा जाना पू. आचार्य श्री का उनके प्रति शाश्वत सरस्वती पुत्र प्रेम का ही परिचायक है। "गागर में सागर" भर देने की अनुपम सरलम शैली के वे देश स्तर के विद्वान शिरोमणि थे। उनकी पूर्ति होना संभव नहीं है। नीतिकारों ने ठीक ही कहा है : " जयंती ते सुकृतिन : रससिद्ध विदुषांवराः । नास्ति येषां यशः काये, जरा मरणजंभयम् ॥” 653 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012072
Book TitleDayachandji Sahityacharya Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Digambar Jain Sanskrit Mahavidyalaya Sagar
PublisherGanesh Digambar Jain Sanskrit Mahavidyalaya Sagar
Publication Year2008
Total Pages772
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size25 MB
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