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________________ शुभाशीष/श्रद्धांजलि साहित्य मनीषी की कीर्ति स्मृतियाँ उदार हृदय पंडित जी डॉ. नरेन्द्र कुमार जैन गाजियाबाद सरल, सौम्य, सहृदय और सरस्वती के वरदपुत्र साहित्य मनीषी स्व. पं. डॉ. दयाचंद जी साहित्याचार्य का मुझे सदैव आशीर्वाद प्राप्त रहा है। उन्होंने श्री गणेश वर्णी दि. जैन सं. महाविद्यालय सागर में रहकर कर्मठ प्राध्यापक और प्राचार्य के रूप में जो अपनी महनीय सेवाएँ प्रदान की हैं, उनका मूल्य समाज कभी नहीं चुका सकता । निश्चितरूप से उनका वह योगदान इतिहास के पृष्ठों में अमर रहेगा, पंडित जी ने पर्युषण पर्व एवं अन्य अवसरों पर अपने व्याख्यानों द्वारा समाज को धर्म की ओर अभिमुख करने में भी महत्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह किया है। जैन विद्या के क्षेत्र में धर्म दर्शन व्याकरण काव्य और साहित्य जैसे विषयों पर अनेक शोध आलेख तथा जैन पूजा काव्य एक चिंतन, भगवान महावीर मुक्तक स्तवन, पूज्य वर्णी जी का संक्षिप्त परिचय, धर्म राजनीति में समन्वय और विश्वतत्व प्रकाशक स्याद्वाद आदि कृतियाँ एवं अनेक शोधपरक उनके आलेख प्रशंसनीय है। यही कारण है कि जैन समाज ने आपकी इन्हीं सेवाओं, जिनवाणी की उपासना, जिनधर्मानुकूल आचरण तथा अगाध पाण्डित्य आदि से अभिभूत होकर आपको धर्म दिवाकर, साहित्यभूषण आदि अनेक उपाधियों से अलंकृत किया है। मुझे स्मरण है, सन् 1977 में मैं जब व्यक्तिगत कार्य से सागर गया था, उस समय मैंने उनसे स्याद्वाद महाविद्यालय वाराणसी की खराब हो रही स्थिति के संबंध में चर्चा की थी। पंडित जी ने मुझे सुझाव दिया था कि मैं वाराणसी छोड़कर अन्यत्र अध्ययन के लिए चला जाऊँ मैंने कहा पंडित जी कहीं के लिए आप संस्तुति कर दीजिए मैं चला जाता हूँ उन्होंने कहा ऐसी स्थिति में मेरी कौन सुनेगा, जब बड़े पंडित जी तुमसे नाराज हो । हाँ, ऐसा करो सागर आ जाओ और सागर विश्वविद्यालय से पीएच.डी कर लो, हम तुम्हारा पूर्ण सहयोग करेंगे । इस तरह पं. जी उदार, सहयोगी एवं सहृदय होने के साथ स्वाभिमानी भी थे। आज पंडित जी हमारे सामने नहीं है लेकिन उनके कार्य हमारे सामने है जो उन्हें सदैव अमर बनाये रखेंगे |हार्दिक नमन पूर्वक हम उन्हें अपने श्रद्धा सुमन अर्पित करते है। श्रद्धापूर्ण श्रृद्धांजलि डॉ. संजीव सराफ काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी (उ.प्र.) ___पंडित डॉ. दयाचंद जी साहित्याचार्य आज हमारे समक्ष नहीं हैं फिर भी उनकी पवित्र वाणी से ज्ञान की किरणें दीपशिखा की भांति बराबर प्रवाहित हो रही हैं। मैं पंडित जी के श्री चरणों में श्रद्धांजलि समर्पित करता हुआ कोटिशः नमन करता हूँ। -30 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012072
Book TitleDayachandji Sahityacharya Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Digambar Jain Sanskrit Mahavidyalaya Sagar
PublisherGanesh Digambar Jain Sanskrit Mahavidyalaya Sagar
Publication Year2008
Total Pages772
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size25 MB
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