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________________ शुभाशीष/श्रद्धांजलि साहित्य मनीषी की कीर्ति स्मृतियाँ पंडित जी के प्रति श्रद्धा सुमन डॉ. सुशील जैन मैनपुरी उ.प्र. परमादरणीय डॉ. पं. दयाचंद जी साहित्याचार्य का "स्मृति ग्रंथ" प्रकाशित हो रहा है यह जानकर प्रसन्नता हुई । शाहपुर में सन् 1915 में पं श्री भगवानदास एवं श्रीमती मथुराबाई की कुक्षि से जन्मे बालक पर पू. वर्णी जी का बहुत प्रभाव व संस्कार पड़े जिससे वह धर्म क्षेत्र में प्रविष्ट हुए सागर विद्यालय में स्वयं अध्ययन भी किया तथा बाद में वहाँ अध्ययन भी कराया, अन्त में उन्होंने अपने वेतन का त्याग करके 5-6 वर्ष संस्थान की निशुल्क सेवा की, ऐंसी निर्लोभिता का उदाहरण विरले लोगों में ही मिलता है। आज जब विद्वान भी पैसे के प्रभाव में आगम का अवर्ण वाद तक करने में नहीं हिचकते वहाँ आ. पंडित जी की निर्लोभिता एक आदर्श उदाहरण बनती है । पंडित जी बहुत ही भद्र परिणामी एवं सरलवृत्ति के थे। भौतिक वाद की चकाचौंध, दिखावा, झूठेदंभ, मायाचारी से वह सदैव दूर रहे। आगम का उन्हें अच्छा ज्ञान था । शास्त्रीय परम्परा का निर्वाह करने वाले विद्वानों में उनका प्रभावी योगदान था विभिन्न स्थानों में मिले उनके पुरस्कार इसी बात का परिज्ञान कराते है। गतवर्ष उनके स्वर्गवास से विद्वत जगत की अपूर्णनीय हानि हुई। स्मृतिग्रंथ के प्रकाशन से उनकी सेवाओं की स्मृतियों का इतिहास के लिए उपयोगी संग्रह होगा। परमादरणीय पंडित जी के प्रति अपनी विनयांजलि अर्पित करता हूँ। उनके प्रति सच्ची श्रद्धांजलि यही होगी कि हम उनके गुणों के प्रति अनुराग रखे। विनम्रता की साक्षात् प्रतिमूर्ति पं. दयाचंद जी डॉ. कपूर चंद जैन खतोली, उ.प्र. सागर जब जब जाना हुआ, मोराजी और वहाँ स्थापित पूज्य गणेश प्रसाद जी वर्णी की मूर्ति के दर्शन करने की भावना प्रबल होती रही, फलत: वर्णी जी के दर्शन की अनिवार्यता सी हो गई। मोराजी में ही पं. दयाचंद जी से पहली मुलाकात हुई उनकी विनम्रता और सहजता ने मुझे बहुत अधिक प्रभावित किया, फिर तो जब भी मोराजी जाना होता पंडित जी से चर्चा किये बिना आना नहीं होता। साहित्य, संस्कृति शिक्षा, समाज सभी पर चर्चाएँ होती, उनकी स्पष्ट वादिता अच्छी लगती। बिना लाग लपेट के अपनी बात कहना उनका अद्वितीय गुण था। 'जैन पूजा काव्य' पर उनकी पुस्तक अपना उदाहरण आप हैं। उसका भारतीय ज्ञानपीठ से प्रकाशित होना प्रामाणिकता का परिचायक है। अपनी 'प्राकृत एवं जैन विद्या' शोधसंदर्भ में हमने इसका उल्लेख किया है। पंडित जी की स्मृति में उनके शिष्य /प्रशिष्य | भक्त एक स्मृति ग्रंथ का प्रकाशन कर रहे हैं, यह सुखास्पद है। पंडित जी की कीर्ति कौमुदी "यावच्चदं दिवाकरौ" दिग दिगन्त व्यापिनी रहे, ऐसी मंगल भावना के साथ। (28 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012072
Book TitleDayachandji Sahityacharya Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Digambar Jain Sanskrit Mahavidyalaya Sagar
PublisherGanesh Digambar Jain Sanskrit Mahavidyalaya Sagar
Publication Year2008
Total Pages772
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size25 MB
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