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________________ आगम संबंधी लेख साहित्य मनीषी की कीर्ति स्मृतियाँ आगम की दृष्टि में सम्मेद शिखर डॉ. नेमिचंद्र जैन, खुरई प्रास्ताविक : वर्तमान हुंडावसर्पिणी के इस पंचम काल में तीर्थंकरों का अभाव है। संसार के दु:खी प्राणियों को दुःख से छूटने का मार्ग बताने वाले आचार्यों द्वारा प्रणीत आगम ग्रन्थ ही हैं। आगम ग्रन्थ जहाँ प्राणियों को जीवन में करणीय अकरणीय कार्यो का उल्लेख करते हैं वही उनमें प्राचीन इतिहास भी दृष्टिगोचर होता है। आगम ज्ञान के अपरिमित भण्डार हैं । आगम तीर्थकर भगवंतों की दिव्य ध्वनि के सारभूत ग्रन्थ है। आगम ग्रन्थों से ही ज्ञात होता है कि भूतकाल में 24 तीर्थंकर हुए थे। वर्तमान काल में भी तीर्थकर 24 ही हुए है और भविष्यत् काल में भी 24 तीर्थंकर होंगे जो वर्तमान तीर्थंकरों की तरह वीतरागी सर्वज्ञ और हितोपदेशी ही होंगे । आगम ग्रन्थों में - (1) आचार्य यतिवृषभ द्वारा रचित, तिलोयपण्णत्ती आचार्य जिनसेन एवं गुणभद्र द्वारा रचित आदिपुराण, उत्तरपुराण जिनसेन द्वितीय द्वारा रचित हरिवंशपुराण, रविषेणाचार्य द्वारा रचित पद्मपुराण ऐसे हैं जिनमें तीर्थंकरों के साथ - साथ अन्य महापुरुष के चरित्र, उनके जन्मस्थान, तपोस्थान उपदेश स्थान एवं निर्वाण स्थानों का पूर्णत: परिचय प्राप्त होता है वर्तमान कालीन 24 तीर्थंकरों में से 20 तीर्थंकरों का मोक्ष प्राप्ति स्थान सम्मेद शिखर है । यह परम पवित्र शाश्वत तीर्थ के रूप में विख्यात है। तीर्थ - महत्व: सम्मेदशिखर एक पवित्र तीर्थस्थान है । तीर्थ वह स्थान होता है जहाँ से जीवन की समस्त विरूपतायें अधार्मिक प्रवृत्तियाँ दूर होकर मानव को चरमशांति का संदेश प्राप्त होता है। तीर्थ में युगों का धार्मिक वैभव छिपा होता है । ऐतिहासिक वैभव का ज्ञान तीर्थों से ही होता है । ये हृदय की प्रकाण्डनिष्ठा के जीवित प्राण है। इनकी झलक चेतना का वह विकम्पन है जो दानव को मानव, सरागी को विरागी, बनाने में सक्षम है। ये अहिंसा और सत्य का मौन भाषा में उपदेश दे मानव को सुमार्ग पर ले जाते है। उनकी अखण्ड शान्ति, मोहक प्राकृतिक दृश्य, अणु अणु में व्याप्त सरलता सहज ही दर्शक को अपनी ओर आकृष्ट करती है । गगनचुम्बी पर्वतों की चोटियों पर निर्मित जिनालय प्रत्येक भावुक के हृदय को झंकृत करने में समर्थ हैं अत: आचार्य जिनसेन लिखते हैं - साराब्धेरपारस्य तरणे - तीर्थमिष्यते। अवस्थान : सम्मेदशिखर एक सिद्ध क्षेत्र हैं। यहाँ से असंख्यात भव्यों ने मोक्ष प्राप्त किया है । यह हजारीबाग (झारखण्ड प्रांत) से 27 कि.मी. तथा ईशरीबाजार अर्थात् पार्श्वनाथ - स्टेशन से 22 कि.मी दूर है। इसकी तलहटी को मधुवन कहा जाता है । इस पर्वत राज की उच्च चोटियाँ प्राकृतिक और सांस्कृतिक गरिमा का गान गा रहीं हैं। हमारे आगम संदेश देते है कि भूतकाल के 24 तीर्थंकरों ने इसी पर्वत से मोक्ष प्राप्त किया -608 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012072
Book TitleDayachandji Sahityacharya Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Digambar Jain Sanskrit Mahavidyalaya Sagar
PublisherGanesh Digambar Jain Sanskrit Mahavidyalaya Sagar
Publication Year2008
Total Pages772
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size25 MB
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