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________________ शुभाशीष/श्रद्धांजलि साहित्य मनीषी की कीर्ति स्मृतियाँ रहता था। और आपने वर्णी जी के सपनों को साकार करने के लिए सारा जीवन लगा दिया ऐसे व्यक्तित्व के धनी के व्यक्तित्व मयी जीवन से हमें प्रेरणा लेना चाहिए। इसी भावना को लेकर हमने सागर समाज के प्रमुख लोगों को प्रेरणा दी, की ऐसे व्यक्तित्व को तो जन जन तक पहुंचाना चाहिये । समाज ने स्वीकार किया और उनके व्यक्तित्व को स्मृति ग्रंथ के रूप में प्रकाशित करने का निश्चय किया। मैं उन सभी श्रावकों एवं साधको को बहुत बहुत शुभआशीष के साथ यही भावना करता हूँ कि पंडित जी के व्यक्तित्व से प्रेरणा लेकर अपने जीवन को ज्ञान आराधना के साथ अपने आपको चारित्र की उपासना में लगाये और अपने आपको धन्य बनायें। अन्त में सभी को बहुत बहुत शुभआशीष जिन्होंने इस स्मृति ग्रंथ के कार्य में अपना सहयोग दिया। ॐ शांति मुनि अजितसागर शुभाशीष "पंडित श्री दयाचंद्र साहित्याचार्य' परिश्रमी अनुशासन प्रिय, निरीह, स्वाभिमानी, दृढ़प्रतिज्ञ विद्वान पण्डित थे। "विद्वानेव जानाति विद्धज्जन-परिश्रमं" मै जब श्री. दिगम्बर जैन संस्कृत विद्यालय में पढ़ता था तब आपका परिश्रम देखकर परिश्रम का पाठ सीखता था । समय पर क्लास में उपस्थित होना, विद्यार्थियों को उचित दंड देकर सुधारना आपका सहज स्वभाव था। आपके सभी भाई, पंडित और जैन धर्म के प्रभावक थें। आपने और आपके भाई पण्डित श्री माणिक चंद्र जी न्यायाचार्य ने मुझे विद्यार्थी अवस्था में मध्यमा से लेकर जैन दर्शनाचार्य तक अध्ययन कराया। जो चिरस्मरणीय है। मेरे लिए अध्ययन की प्रेरणा देने में आपका अद्वितीय सहयोग रहा जिससे मैं अब किसी के सहयोग बिना भी साहित्यिक कार्य | संपादित करता रहता हूँ। मेरे क्षुल्लक ऐलक से मुनि हो जाने के बाद आचार्य विद्यासागर जी (मेरे सर्वगुरू) जब मोराजी विद्यालय पधारे । तथा आपसे भेंट हुई, बड़ा हर्ष हुआ चर्चाये हुई दुबारा फिर आचार्य गुरूदेव का सागर में आगमन हुआ तथा मैं आहार के बहाने आपसे मिलने गया उस समय आप पूजा विषयक पी.एच.डी. कर रहे थे। उसको देखकर मैं हर्षित हुआ इतनी उम्र में भी इतना श्रम यह सीख मिली । एक बार जब मै श्री दिगम्बर जैन कलातिशय क्षेत्र आदिश्वर गिरी से दमोह नसिया जी के इंद्रध्वज विधान में आया तो आपको मंच पर भाषण का अवसर देकर सम्मान करवाया। ___ जब में रिछावर के इंद्रध्वज विधान के पश्चात् नेहानगर, मकरोनिया, वर्धमान कॉलोनी, शान्ति नगर 8. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012072
Book TitleDayachandji Sahityacharya Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Digambar Jain Sanskrit Mahavidyalaya Sagar
PublisherGanesh Digambar Jain Sanskrit Mahavidyalaya Sagar
Publication Year2008
Total Pages772
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size25 MB
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