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________________ शुभाशीष/श्रद्धांजलि साहित्य मनीषी की कीर्ति स्मृतियाँ आशीर्वाद पंडित श्री दयाचंद्र जी साहित्याचार्य का नाम विद्वानों की अग्रिम पंक्ति में बड़े सम्मान के साथ लिया जाता है। पंडित जी साब की सहृदयता, निरभिमानता, सहजता, सरलता सभी के लिए अनुकरणीय है। आदरणीय पंडित जी साब ने साहित्य के क्षेत्र में निस्वार्थ भाव से आजीवन वर्णी संस्कृत महाविद्यालय में प्राचार्य पद को सुशोभित किया। ___पंडित जी साब की विद्वता एवं साहित्य के प्रति रूझान को देखते हुए 'श्रुत संवर्द्धन संस्थान मेरठ द्वारा सम्मानित किया गया।' आदरणीय पंडित जी साब के बचपन से ही परिवारिक, धार्मिक संस्कार होने से सभी भाईयों को मां जिनवाणी की सेवा करने का गौरव प्राप्त हुआ है। क्षुल्लक अवस्था में आपके ही बड़े भाई पंडित श्रुतसागर न्यायतीर्थ के द्वारा श्लोकवार्तिक अष्टसहस्री जैसे न्यायग्रंथों के पठन-पाठन का सहयोग मिला। इसी तरह सामान्य जनों को भी जिनवाणी मां की सेवा करते हुए अध्यात्म ग्रंथों के गूढ रहस्यों को समझना चाहिए। उपाध्याय ज्ञानसागर शिक्षक श्रेष्ठ प्राचार्य श्री दयाचंद जी शास्त्री के स्मृति ग्रन्थ पर बहुत बहुत आशीर्वाद ___एक अध्यापक का संतोष संपदा से मिलने वाला संतोष कभी नहीं होता । उसकी खुशियाँ सद्विचारों को अनंतता की यात्रा में सक्रिय कर देने में सन्निहित होती हैं। वह जानता है कि दो वस्तुएँ कभी नहीं मरती - चिन्तन और चरित्र | शिक्षक श्रेष्ठ पंडित श्री दयाचंद जी इन्हीं दो के लिए जीते रहे। पंडित जी साब का जीवन सदैव सादा साफ-सुथरा कंचन नीर रहा है । सहिष्णुता और क्षमा आपके चरित्र के दो महत्व के गुण है। गमकश आप ऐसे रहे है कि गम को कभी गम माना ही नहीं। प्रतिकूलताओं का स्वागत करते हुए विकास यात्रा पर रहे । आपकी हावी सीमित साधनों मे आनंद पूर्वक जीने की रही। ___ जहाँ तक क्षुल्लक पंडित गणेश प्रसादवी संस्कृत महाविद्यालय में पढ़ाना, प्राचार्य पद पर आसीन रहे निर्देशन देना व समाज सेवा का प्रश्न है पंडित जी का मानदण्ड पैसा पर कभी नहीं रहा। आपकी मान्यता थी कि समाज से पैसा ऐंठ कर सेवा करने से सेवा की महत्ता घट जाती है और उसके वे परिणाम नहीं निकलते जो निकलने चाहिए । इसीलिए आजीविका के अतिरिक्त अन्य किसी सामाजिक कार्य को पैसे की निसेनी बनाने से आप • बराबर इंकार करते रहे। आप पर कबीर की पेट समाता लेय तथा तुलसी की जथालाभ संतोष जैसी उक्तियाँ सटीक चरितार्थ होती है। हाथ हाथ से परे आपका जीवन सब्र और सकून का असीम-अनंत दरिया रहा है। आपने एक आदर्श और समर्पित शिक्षक के रूप में सारी उम्र जिया है। अस्तु आप पर जफर का एक शेर खरा उतरता है। इस जमाने में न आते हों जिसे मक्रो-फरेफ। सच तो यह है कि जफर कहिये वली ऐसे को। इन्ही भावनाओं के साथ आपको बहुत बहुत आशीर्वाद । उपाध्याय-गुप्तिसागर (3. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012072
Book TitleDayachandji Sahityacharya Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Digambar Jain Sanskrit Mahavidyalaya Sagar
PublisherGanesh Digambar Jain Sanskrit Mahavidyalaya Sagar
Publication Year2008
Total Pages772
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size25 MB
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