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________________ कृतित्व/हिन्दी साहित्य मनीषी की कीर्ति स्मृतियाँ रहा सफलता दूर रही। तीसरी बार वर्णी जी ने वहाँ एक धार्मिक उत्सव कराया । सभा में जैन एवं जैनेतर प्रमुख व्यक्तियों को समाज संगठन-अनुशासन और स्थितिकरण तथा सुधार के विषय में प्रभाव पूर्ण सम्बोधित किया। उनके ओजस्वी भाषण को सुनकर विरोधी कट्टर पन्थी मुखियों के भी हृदय द्रवित हो गए। वे सचेत हुए और शीघ्र ही अपने निर्णय के विचार वर्णी जी के समक्ष रखने लगे। महाराज की सम्मति से मोदी जी ने तत्काल मन्दिर तीर्थक्षेत्र और विद्यालय के लिए ग्यारह हजार के दान की घोषणा की। समाज ने उन बहिष्कृत बन्धुओं को हार्दिक स्नेह प्रदान कर, सम्मानित किया। सभी ने मिलकर भगवत्पूजन किया । दूसरे दिन ही समाज को प्रीतिभोज श्री मोदी जी की ओर से दिया गया, सहर्ष जयध्वनि की गई । इसी प्रकार जतारा, नीमटोरिया, हलवानी, शाहपुर आदि स्थानों के बहिष्कृत कुटुम्ब व्यक्ति तथा विधवा नारियों का सरलता के साथ स्थितिकरण उन सन्त की प्रेरणा से किया गया। 6. सन्त वर्णी जी की हार्दिक कामना थी कि काशी जैसी विद्याप्रधान नगरी में एक दि0 जैन संस्कृत महाविद्यालय की स्थापना अवश्य हो । इस विषय के विचार आप, बाबा भागीरथ जी वर्णी आदि निकट वर्ती सन्तों के प्रति सदैव व्यक्त किया करते थे। पुन: पुन: इन विचारों को सुनकर श्री झम्मनलाल जी कामावालों ने एक रुपया विद्यालय की स्थापना के लिए प्रदान किया। वर्णी जी ने सहर्ष वह रुपया ले लिया और पोस्ट आफिस से उस एक रुपया के द्वारा 64 पो0 कार्ड खरीद लिए। रात्रि में ही 64 पो0 कार्ड लिखकर 64 स्थानों (कलकत्ता, आरा, बम्बई आदि) के दानी श्रीमानों को भेज दिए । पत्र में लिखा था कि “वाराणसी जैसी विशाल नगरी में जहाँ हजारों छात्र संस्कृतविद्या का अध्ययन कर अपने अज्ञानान्धकार का नाश कर रहे हों वहाँ पर छात्रों के उच्चकोटि के अध्ययन के लिए एक दि0 जैन संस्कृत महाविद्यालय की स्थापना अत्यावश्यक है। छात्रावास में संस्कृतपाठी छात्रों को पूर्णसुविधा आवश्यक है। आशा है आप महानुभाव हमारी वेदना का प्रतिकार करेंगे । यह मेरी एक की ही वेदना नहीं है किन्तु अखिल समाज के छात्रों की वेदना है। ___ एक मास के अन्दर बहुत से श्रीमानों के आशाजनक उत्तर आ गये, दान में रुपये आने लगे और अनेक नेता भी पधारने लगे। पत्रों में समाचार प्रकाशित हुए । मुहूर्त निश्चित किया गया। वि0सं0 1962, वी0 नि0 सं0 2432 ज्येष्ठ शुक्ला पंचमी (श्रुतपंचमी) को प्रातः काल मैदागिनी में श्री पार्श्वनाथ अर्चन आदि कृत्यों के साथ श्रीमान् दानवीर सेठ माणिकचन्द्र जी बम्बई के कर कमलों द्वारा स्याद्वादमहाविद्यालय का उद्घाटन किया गया, जिसके प्रथम छात्र स्वयं वर्णी जी म0 ही बने । जिसमें संस्कृत का अध्ययन अध्यापन प्रारम्भ से अब तक चल रहा है। 7. सन् 1905 में वैसाख शुक्ल 3 (अक्षय तृतीया) के शुभ मुहूर्त में सागर म0प्र0 के प्रार्गण में "श्री गणेश दि0 जैन संस्कृत महाविद्यालय की स्थापना कर उन सन्त ने मध्य प्रदेश में एवं बुन्देल खण्ड में संस्कृत साहित्य के प्रचार का श्री गणेश किया। इस प्रकार उन सन्त वर्णी के सैकड़ों शिक्षाप्रद संस्मरण हैं परन्तु यहाँ संक्षेप में ही कुछ संस्मरणों का विवेचन 'आत्मकथा' 'वर्णी जी और उनका दिव्य दान आदि पुस्तकों के आधार से किया गया है। विशेष जीवन परिचय तथा संस्मरण जानने के लिए उनसे सम्बोधित "आत्मकथा" आदि ग्रन्थों का अनुशीलन करना आवश्यक है । उनका दैनिक प्रवचन नित्य प्रात: सायं अध्यात्मविषय पर होता था जो छात्र-छात्रा बालक बृद्ध नरनारी सभी को प्रिय होता था। -405 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012072
Book TitleDayachandji Sahityacharya Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Digambar Jain Sanskrit Mahavidyalaya Sagar
PublisherGanesh Digambar Jain Sanskrit Mahavidyalaya Sagar
Publication Year2008
Total Pages772
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size25 MB
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