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________________ कृतित्व / हिन्दी साहित्य मनीषी की कीर्ति स्मृतियाँ समाज में आज कुछ जागृति आई है तो इन संस्थाओं के माध्यम से ही आई है। पूर्वजों के द्वारा संस्थापित इन संस्था रूप वृक्षों को यदि हम हरा भरा न रख सके तो पश्चात्ताप की तपन में झुलसे बिना न रहेंगे । आज हमें साहित्य की भी बड़ी आवश्यकता है। "जहाँ नहीं साहित्य वहाँ आदित्य नहीं है"- जहां साहित्य नहीं है वहाँ अंधेरा ही अंधेरा है। जिन समाजों में कोई दार्शनिक, कोई सुदृढ़ मान्यताएँ और सिद्धांत नहीं हैं वे भी अपना थोथा साहित्य प्रकाशित कर दुनियाँ में अपना स्थान बना चुकी हैं, पर जिस जैन धर्म का दार्शनिक तत्त्व अजेय है, आचार पक्ष प्रशस्त है तथा विश्व कल्याण की भावना जिनमें प्रकट की गई है। उसका, विदेशों की बात जाने दो देश में भी पूरा प्रचार नहीं है। हम मन्दिरों का निर्माण तो करते है, प्रति वर्ष सैकड़ों प्रतिमाओं की प्रतिष्ठा कराते हैं पर भगवान् के सिद्धान्तों के प्रसार की ओर हमारा लक्ष्य नहीं जाता । यह एक ऐसा स्वर्ण युग है जिसमें लोगों का धर्म सम्बन्धी संघर्ष कम हुआ है। एक जमाना तो वह था जब एक धर्म वाले दूसरे धर्म वाले की बात सुनने के लिये तैयार नहीं थे। पर आज जनता में इतनी उदातरता आई है कि वह एक दूसरे के धर्म की बात को बड़ी श्रद्धा और प्रेम के साथ सुनने को तैयार है। खेत की भूमि इस समय प्रशस्त है उसमें बीज डालने की आवश्यकता है । यदि समय पर हम अच्छा बीज डाल सके तो उसका फल हम भोगेंगे और हमारी संतान भोगेगी। आजकल समाज में एकांकी विचारधारा का प्रचार होता जा रहा है जो समाज की उन्नति तथा संगठन में बाधक है। कोई पुण्य को सर्वथा हेय समझ बैठे हैं जिसके कारण वे संस्थाओं को दान देना, परोपकार करना, पूजा करना, सहयोग देना आदि आवश्यक कर्त्तव्यों को छोड़ते जाते हैं। इससे समाज के संगठन में बाधा आने लगी है। इस एकांगी विचारधारा के कारण ही मानव अनुचित प्रवृत्ति करते हुए भी अपने को धर्मात्मा और महात्मा मानने लगे हैं। अत: एकान्त विचारधारा को छोड़कर स्याद्वादी विचारधारा का प्रयत्न किया जाय तो समाज का कल्याण हो । Jain Education International 371 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012072
Book TitleDayachandji Sahityacharya Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Digambar Jain Sanskrit Mahavidyalaya Sagar
PublisherGanesh Digambar Jain Sanskrit Mahavidyalaya Sagar
Publication Year2008
Total Pages772
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size25 MB
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