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________________ कृतित्व/हिन्दी साहित्य मनीषी की कीर्ति स्मृतियाँ 1 ईसा की द्वितीय सदी में करहाटक (महाराष्ट्र) में एक कदम्ब नामक राजवंश की स्थापना हुई। उसके उत्तराधिकारी मयूरवर्मन् (चतुर्थ सदी) ने अपनी राजधानी वनवासी (कर्नाटक) में स्थानांतरित की । उसका एक उत्तराधिकारी काकुत्स्थ वर्मन् जैनधर्म का पोषक था । उसका पुत्र मृशेवर्मन् ( 450 478 ई.) भी जैन धर्मका अनुयायी और गुरुओं का सम्मान करने वाला शासक था । संभवत: इन ही शासकों के समय में अर्थात् ईसा की पाँचवी सदी में तुमुलनाडु पर इस जिन भक्त वंश का आधिपत्य हो गया था । दसवीं सदी में तुलुनाडु का शासन अलुप या अलुब वंशी सामंतों के अधिकार में आ गया था वे भी श्री जिनेन्द्र देव के भक्त थे । इसी वंश के राजा कुलशेखर अलुपेन्द्र प्रथम (12 वीं सदी) के शासनकाल में तुलनाडु में जैनधर्म को राजकीय प्रश्रय प्राप्त था । मूडविद्री के एक शिलालेख में उल्लेख है कि कुलशेखर नृप तृतीय (सन् 1355-1590) ने मूडविद्री की गुरुवसदि (पार्श्वनाथ मंदिर ) को दान दिया था। इस लेख में कुलशेखर को भट्टारक चारुकीर्ति के प्रति 'श्रीपाद पद्माराधक' कहा गया है । यह राजा महान् वैभवशाली, रत्नजड़ित सिंहासन पर आसीन रहता था । तुलुदेश, बंगवाडि के बंगवंश के भी आधीन रहा। यह वंश सन् 1100 से 1600 तक पृथक् अस्तित्व विद्यमान था । इसके सभी राजा जैनधर्म के अनुयायी थे । प्रथम यह वंश होय्सल शासकों का सामंतरूप में रहा । वीरनरसिंह बंगनरेन्द्र (सन् 1245-1275) में एक कुशल और विद्याव्यसनी शासक था। उसके गुरु आचार्य अजित सेन थे । 16 वीं सदी में यह वंश विवाह संस्कार द्वारा कारकल के भैररसकुल से संयुक्त हो गया। वह वंश जिनदत्तराय (हुमचा में सान्तरवंश के संस्थापक एक जैनराजा ) की कुलपरम्परा के अंतर्गत था। इस क्षेत्र के शिलालेखों में तोलहार जैनशासकों (सन् 1169) का भी उल्लेख प्राप्त होता है। कालान्तर में सामंतगण, होय्सल राज वंश की अधीनता से स्वतंत्र हो गये। इनमें चौटरवंशीय राजा भी थे जिनका उल्लेख, 1690 ई. के एक शिलालेख में उपलब्ध होता है। इन राजाओं ने मूडविद्री को अपनी राजधानी बनाया था | इतिहास से ज्ञात होता है कि इन नरेशों ने संभवत: 700 वर्षो तक मूडविद्री में राज्य किया। ये नरेश जैनधर्म के प्रतिपालक थे । इनके वंशज आज भी मूडविद्री में अपने जीर्णशीर्ण महलों में निवास करते हैं और शासन से पेंशन प्राप्त करते है । साल्वराजवंश का तथा हाडुबल्लिवंश का महामण्डलेश्वर परम जिनभक्त था, किसी समय मूडविद्री क्षेत्र उसके आधीन था ऐसा उल्लेख यहाँ के शिलालेख से प्राप्त होता है, मूवी विजयनगर साम्राज्य के पतन के पश्चात् टीपूसुलतान के अधिकार में आ गया। उसके पश्चात् यहाँ पर ब्रिटिश शासन चलता रहा। इसी समय सन् 1956 में मूडविद्री, मैसूरराज्य वर्तमान कर्नाटक में सम्मिलित कर दिया गया। भ. महावीर के अनुयायी जैन नरेशों में, हेमांगद (कर्नाटक में स्थित ) देश के जीवन्धर नरेश और मालवदेश के नरेशों का भी नाम उल्लेखनीय है । इसके संबंध में डॉ. नेमिचंद्र जी ज्योतिषाचार्य ने कहा है : "दक्षिणभारत के नरेशों में सालुब नामक एक राजवंश का उल्लेख प्राप्त होता है। साल्व मल्ल 308 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012072
Book TitleDayachandji Sahityacharya Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Digambar Jain Sanskrit Mahavidyalaya Sagar
PublisherGanesh Digambar Jain Sanskrit Mahavidyalaya Sagar
Publication Year2008
Total Pages772
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size25 MB
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