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________________ कृतित्व/हिन्दी साहित्य मनीषी की कीर्ति स्मृतियाँ बीजापुर (दक्षिण का आगरा) का परिचय एवं इतिहास : गुलवर्गा से रोडमार्ग द्वारा बीजापुर का यात्राक्रम इस प्रकार है - गुलवर्गा से जेवर्गी 39 कि.मी. जेबर्गी से सिन्दगी से हिप्परगी 23 कि. मी. और यहाँ से बीजापुर से 37 कि.मी. की दूरी पर, राष्ट्रीय राजमार्ग क्रमांक 13 पर अवस्थित है । बंगलोर - हुबली - शोलापुर छोटीलाइन (मीटरगेज) पर बीजापुर दक्षिणमध्य रेलवे का एक प्रमुख रेलवे स्टेशन है भारत सरकार और कर्नाटक सरकार द्वारा बहुविज्ञापित बीजापुर अपनी गोल गुम्बद के लिये एक अत्यंत आकर्षक एवं आश्चर्यप्रद पर्यटककेन्द्र घोषित किया गया है। बीजापुर का प्राचीन नाम विजयपुर था। जिसका उल्लेख सप्तमशती के एक स्तंभ में एवं 11वीं सदी के मल्लिनाथ पुराण में उपलब्ध होता है। कन्नड़ भाषा में वर्तमान में भी इसको बीजापुर ही कहा जाता है। बीजापुर का सुन्दर एवं विशाल दि. जैन मंदिर एक मस्जिद के रूप में 15 वीं सदी में परिवर्तित कर दिया गया है उसका नवीन नाम करीमुद्दीन या पुरानी मस्जिद है जो कि आरकिला में स्थित है। उसके एक शिलालेख से ज्ञात होता है कि वह एक जैन मंदिर था, उसको एक यादव नृप ने भूमि का दान दिया था। यह मस्जिद आनन्दमहल से प्राय: 200 गज की दूरी पर है । इसके स्तंभ तथा छत के पाषाण संशिलष्ट नहीं हैं। दिगम्बर जैन मंदिर : वर्तमान में बीजापुर में दो दिगम्बर जैन मंदिर हैं (1) प्राचीन दि. जैन आदिनाथ मंदिर । इसमें 11वीं सदी से लेकर 20 वीं सदी तक की प्रतिमाएं विराजमान हैं। (2) दरगा के सहस्रफणी पार्श्वनाथ का मंदिर : इस मंदिर का नाम नागरीलिपि में लिखा है "श्री १००८ सहस्रफणी पार्श्वनाथ दि. जैन मंदिर दरगाबीजापुर"। कट्टर पन्थी धर्मद्वेषी पुरुषों के आक्रमण के भय से सुरक्षा के लिये इस प्रतिमा को भूमि के अन्दर सुरक्षित रख दिया गया था। वर्तमान में कुछ वर्षों पूर्व ही इस मूर्ति को निकाला गया था। इसकी रचना से ही इस मूर्ति का प्राचीनत्व सिद्ध होता है । 'दरगा' नामक ग्राम से अनुमानत: तीन कि.मी. दूर एक स्थान से इस मंदिर का अन्वेषण किया गया है। इस मंदिर में कृष्णपाषाण निर्मित आनुमानिक पाँचफीट उन्नत एक सहस्रफणी भ. पार्श्वनाथ की अतिशय पूर्ण प्रतिमा विराजमान है। उसकी विशेषता यह भी है कि एक सर्पफण में दुग्ध डालने से सभी कणों में से दुग्ध वह निकलता है। यह मूर्ति जमीन से निकाली गई है। इसी मूर्ति वाले कोष्ठ में संगमरमर निर्मित ,तीन फीट उन्नत एक चौबीसी प्रतिमा भी विराजमान है । द्वितीय कोष्ठ में कृष्णपाषाण निर्मित पद्मासन भ. पार्श्वनाथ की और भ. महावीर की पाँच फीट उन्नत पद्मासन प्रतिमा सुशोभित है। इस मंदिर के मूलनायक खड्गासन तीर्थंकर पार्श्वनाथ है ये सभी प्रतिमाएँ 10वीं, 14वीं और 15वीं सदी की निश्चित की जाती हैं। अवस्थिति :कुन्दाद्रि का मार्गदर्शन -नरसिंहराजपुर - कोप्पातीर्थहल्ली - गुड्डकेरी से कुन्दाद्रि को संभवत: -305 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012072
Book TitleDayachandji Sahityacharya Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Digambar Jain Sanskrit Mahavidyalaya Sagar
PublisherGanesh Digambar Jain Sanskrit Mahavidyalaya Sagar
Publication Year2008
Total Pages772
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size25 MB
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