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________________ कृतित्व / हिन्दी साहित्य मनीषी की कीर्ति स्मृतियाँ वर्तमान में मानव इन्द्रिय विषयतृष्णा के कारण मांसाहार, तामसाहार और अभक्ष्याहार को अधिक मात्रा में सेवन करने लगा है इसलिये मानव के विचार दानव के समान दूषित हो गये हैं। इन्द्रियलिप्सा ने मांसाहार को बढ़ाया और मांसाहार ने प्राणिवध को बढ़ाया है। इससे मानव के दुर्विचार बढ़ने लगे हैं। हिन्दी कवि केवचन ध्यान देने योग्य हैं - गंध के बढ़ जाने सेबाग उजड़ जाता है, आवाज बढ़ जाने से राग उजड़ जाता है । आचार बिगड़ जाने से जीवन भ्रष्ट हो जाता है, विचार बदल जाने से आचार बिगड़ जाता है । मांसाहार से मानव का विचार बदल जाता है । प्राणियों की हिंसा से भारत से विदेशों के लिये अधिक मांस का निर्यात हो रहा है। इससे मानवों में अशान्ति और विद्रोह की भावना बढ़ने लगी है। क्रूरभावों से ही मूक तथा निरपराध प्राणियों पर स्लाटर हाऊ सों में वैज्ञानिक शस्त्रों से प्रहार किया जा रहा है। अविवेकपूर्ण दुष्टविचारों से ही मानवों में पारस्परिक प्रेम परोपकार और सहयोग की भावना विनष्टप्राय हो रही है। शाकाहार प्राकृतिक आहार है और मांसाहार मुर्दाप्राणियों के शरीर का आहार है। शाकाहार मानवों का आहार है और मांसाहार दानवों का आहार है। शाकाहार प्राणियों का रक्षक है और मांसाहार प्राणियों का भक्षक है । शाकाहार स्वर्ग का द्वार है और मांसाहार नरक का द्वार है । शाकाहार अहिंसा जनक है और मांसाहार हिंसा का जनक है। शाकाहार मित्रता का वर्धक है और मांसाहार शत्रुता का वर्धक है शाकाहार देश IT विधायक है और मांसाहार देश का विघातक है । शाकाहार देश का दिवाकर है और मांसाहार देश का निशाचर है । शाकाहार अमृत है और मांसाहार विष है। शाकाहार शान्ति का सागर है और मांसाहार अशान्ति का सागर । शाकाहार की जननी दया है और मांसाहार की जननी अदया है। शाकाहार का नारा - जिओ और जीने दो जमाने में सभी को और मांसाहार का नारा-मरो और मारो जमाने में सभी को । Jain Education International 276 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012072
Book TitleDayachandji Sahityacharya Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Digambar Jain Sanskrit Mahavidyalaya Sagar
PublisherGanesh Digambar Jain Sanskrit Mahavidyalaya Sagar
Publication Year2008
Total Pages772
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size25 MB
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