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________________ कृतित्व/हिन्दी साहित्य मनीषी की कीर्ति स्मृतियाँ श्री सरअलवर्ट आइन्स्टाइन महोदय ने सापेक्षवाद के विषय में अपने विचार प्रकट किये हैं - हम विश्व के प्राणी केवल सापेक्षसत्य को ही जान सकते है कारण कि शब्दों में, पदार्थ के सर्वदेश को जानने की शक्ति नहीं है और हमारे विचार शब्दों के माध्यम से ही व्यक्त हो सकते है । पदार्थ के सर्वांश सत्य स्वरूप को केवल विश्व दृष्टा ही जान सकता है। (अनेकान्त वर्ष 11 किरण 3 पृष्ठ 243 ) जैन दर्शन ने, दर्शन शब्द की काल्पनिक भूमि को छोड़कर वस्तु स्थिति के आधार से विचारों के समीकरण एवं यथार्थ वस्तु विज्ञान के विषय में स्याद्वाद पद्धति (नय पद्धति) को विश्व के लिए प्रदान की है। (डॉ. सम्पूर्णानंद जैन दर्शन पृ. 560 ) राष्ट्रीय क्षेत्र में नयवाद - जैसे एक पदार्थ में स्थित अनेक धर्मो का परस्पर विरोध से रहित समीकरण करके नयवाद वस्तु व्यवस्था को निश्चित करता है, उसी प्रकार महाद्वीपों में और राष्ट्रों में निवास करने वाले मानवों के विविध विचारों में धर्मो में पारस्परिक विरोध को दूर कर विश्व बन्धुत्व की भावना को जन्म देने के लिए नयवाद समर्थ है। यह स्याद्वाद वर्ग विरोध, वर्ण विरोध, भाषा विरोध, प्रान्तविरोध और अधिकार विरोध को शान्ति से तिरस्कृत कर राष्ट्रीय क्षेत्र में सह अस्तित्व को स्थापित करने में सक्षम है। लोक व्यवहार में नयवाद - - मानव समाज का सम्पूर्ण व्यवहार पदार्थों में तथा प्रकृति परिवर्तन में भी सापेक्ष होता है, सत्य मार्ग का अन्वेषण तथा मनुष्यों की स्वाभाविक प्रवृत्ति नयवाद के द्वारा सुरीत्या होती है । सत्य व्यवहार में उपस्थित विरोध एवं विघ्नशान्ति नयवाद से होती है। जैसे पोष्टिक भोजन स्वस्थ पुरूष की अपेक्षा उपादेय है और रूग्णपुरूष की अपेक्षा हेय है। ऋतुओं की अपेक्षा प्रकृति का परिवर्तन होता है। ऋतुओं की अपेक्षा फलों का सेवन स्वास्थ्यवर्धक होता है। रोग होने पर दवा का सेवन अपेक्षाकृत ही लाभ प्रद होता है। धार्मिक क्रिया का पालन अपेक्षाकृत ही उपयोगी होता है। सत्य असत्य के परीक्षण में नयवाद से सफलता प्राप्त होती है । यथा सज्जन का उपकार करना ही चाहिए, दुर्जन का उपकार न कर तटस्थ रहना ही अच्छा है । लोक में प्रश्न का समाधान नयवाद के द्वारा ही हर्षप्रद होता है। ऐतिहासिक घटना का उदाहरण है - एक समय बादशाह अकबर ने अपने मंत्री वीरबल से प्रश्न किया- काले तख्ते पर चाक से एक बड़ी लाईन खींचकर अकबर ने वीरबल से कहा, कि इस लाईन को बिना मिटाये आप छोटा कर देवे तो आपकी बड़ी बुद्धिमानी समझी जावेगी । वीरबल ने तख्ते पर खिंची उस लाईन के नीचे एक बड़ी लाईन खींच दी और कहा कि हुजूर यह ऊपर की लाईन बिना मिटाये ही छोटी हो गई । इस नय पद्धति से उत्तर को सुनकर बादशाह अतिप्रसन्न हुआ और इनाम दिया | दूसरा उदाहरण - - एक समय कक्षा में शिक्षक महोदय शिष्य के प्रति प्रश्न करते है - वोर्ड पर अ ब स लिखकर प्रश्न किया कि दक्षिण (दाहिनी ओर है या बाम ओर । छात्र ने उत्तर दिया कि स की अपेक्षा ब बाम ओर है और 264 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012072
Book TitleDayachandji Sahityacharya Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Digambar Jain Sanskrit Mahavidyalaya Sagar
PublisherGanesh Digambar Jain Sanskrit Mahavidyalaya Sagar
Publication Year2008
Total Pages772
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size25 MB
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