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________________ कृतित्व/हिन्दी साहित्य मनीषी की कीर्ति स्मृतियाँ ने कहा है - महामंत्र की जाप किये नर सब सुखपावें अतिशयोक्ति रंचक भी इसमें नहीं दिखावें । देखो शून्यविवेक सुभग ग्वाला भी आखिर हुआ सुदर्शन कामदेव इसके प्रभाव कर ।। 4. णमोकार मंत्र नमस्कार मंत्र इस महामंत्र को नमस्कार मंत्र भी कहा जाता है कारण कि इस मंत्र में अनन्त पूज्य आत्माओं को नमस्कार किया गया है, इसलिये इस मंत्र में लोक एवं सर्व पद रखा गया है। इसमें दूसरी विशेषता यह है कि इसमें सामान्य पद निष्ठ अरिहन्त, सिद्ध शुद्ध आत्माओं को ही प्रणाम किया गया है, विशेष नाम के कथन से सीमित आत्माओं को ही नमस्कार हो पाता, किन्तु सामान्य पद के ग्रहण से अनन्त आत्माओं को नमस्कार सिद्ध हो जाता है। पूज्य आत्माओं को प्रणाम करने से आत्मा में विशुद्धि बढ़ती है तथा कष्टों का क्षय होता है। सन् 1986 में वर्णी भवन सागर म.प्र. में आयोजित सेमिनार में मध्यप्रदेश के तत्कालीन वित्तमंत्री स्व. श्री शिवभानुसिंह सोलंकी ने जो भाषण दिया था उसका सार इस प्रकार है"साम्प्रत विश्व में 300 धर्म प्रचलित हैं, तथा प्रसिद्ध 112 विश्व के प्रमुख राष्ट्रों में सिद्ध मंत्र 16 हैं उनमें एक णमोकार मंत्र भी महान प्रसिद्ध है। णमोकार मंत्र की वास्तविक साधना से विश्व के अन्य मानवों के लिये सिद्ध परमात्मा बन जाने का द्वार खुल जाता है । णमोकार मंत्र को नमस्कारपूर्वक शुद्ध पढ़ने से 1600 रक्त के सफेद दाने बढ़ जाते हैं और मान आदि कषाय बढ़ने से रक्त के 1500 सफेद दाने घट जाते हैं, यह सब णमोकार मंत्र का प्रभाव है।" अर्चनासंग्रह में कहा है - 'एसो पंच णमोकारो, सव्वपावप्पणासणो।" अर्थात् - यह पंचनमस्कार मंत्र सर्व पापों का नाश करने वाला है। णमोकार मंत्र की अन्य विशेषता - “णमोकार मंत्र में उच्चरित ध्वनियों से आत्मा में धन और ऋणात्मक दोनों प्रकार की विद्युत शक्ति उत्पन्न होती हैं जिससे कर्म कलंक और लौकिक जीवन के सर्वकष्ट एवं पाप भस्म हो जाते है।" 5. सर्वप्रथम मंत्र (आद्य मंत्र) - ___ यह णमोकार मंत्र सब मंत्रों में प्रथम (आद्य) मंत्र है अतएव इसकी प्राचीनता एवं अलौकिकता सिद्ध हो जाती है। इसके उत्तरकाल में निर्मित हुए मंत्रों का मूल आधार यही आद्य मंत्र है। इसलिये यह मंत्र अन्य मंत्रों से अपराजित और सर्वविघ्नों का विनाशक है। श्री उमास्वामी आचार्य ने इसी आशय को व्यक्त किया है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012072
Book TitleDayachandji Sahityacharya Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Digambar Jain Sanskrit Mahavidyalaya Sagar
PublisherGanesh Digambar Jain Sanskrit Mahavidyalaya Sagar
Publication Year2008
Total Pages772
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size25 MB
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