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________________ कृतित्व/हिन्दी साहित्य मनीषी की कीर्ति स्मृतियाँ विज्ञानसम्मत - णमोकार मंत्र की सत्यसाधना से विश्व के मानवों के लिए परमात्मा बन जाने का द्वार खुल जाता है। इस महामंत्र को नमस्कार पूर्वक शुद्ध पढ़ने से 1600 रक्त के सफेद दाने बढ़ जाते हैं और मान माया आदि कषाय करने से रक्त के 1600 सफेद दाने घट जाते हैं, रक्त विकृत हो जाता है। (म.प्र. वित्तमंत्री स्व. श्री शिवभानु सिंह सोलंकी : 1986) "रोगी तब तक स्वास्थ्य लाभ नहीं कर सकता जब तक वह अपने आराध्य में विश्वास नहीं करता। आस्तिक्यता ही समस्त रोगों को दूर करने वाली है। जब से रोगी को चारों ओर से निराशा घेर लती है, उस समय आराध्य देव के (मंत्र के) प्रति की गई प्रार्थना प्रकाश का कार्य करती है, प्रार्थना का फल अचिन्त्य होता है वह मंगल को देती है । (अमेरिकन डाक्टर होआर्ड रस्क का अभिमत) "आत्मशक्ति का विकास तभी होता है जब मनुष्य यह अनुभव करता है कि मानव शक्ति से परे भी कोई मंत्र वस्तु है, अत: श्रद्धापूर्वक की गई प्रार्थना बहुत चमत्कार उत्पन्न करती है । (वैज्ञानिक जज हेरोल्डमेहिना अमेरिका) "सभी बीमारियां शारीरिक मानसिक एवं आध्यात्मिक क्रियाओं से संबद्ध हैं, अत: जीवन में जब तक धार्मिक प्रवृत्ति (मंत्र आदि) का उदय नहीं होगा, रोगी का स्वस्थ होना कठिन है। प्रार्थना धार्मिक प्रवृत्ति (मंत्र शक्ति) पैदा करती है । आराध्य (मंत्र आदि) के प्रति की गई भक्ति में बहुत बड़ा आत्म संबल है। उच्च या पवित्र आत्माओं की आराधना (मंत्र बल) जादू का कार्य करती है"। (वैज्ञानिक डाक्टर सलफ्रैंडहोरी अमेरिका) 4. जैन दर्शन में आध्यात्मिक रत्नत्रय का महत्वपूर्ण कथन - "सम्यग्दर्शन ज्ञान चारित्राणि मोक्षमार्ग:"। (उमास्वामी3 वि.द्वि. शती प्रथम चरणः तत्त्वार्थ सूत्र प्रथम । प्र. अ. सू)1 तात्पर्य - भव्य आत्मा में एक साथ प्राप्त यथार्थ दर्शन सत्यार्थ - ज्ञान, सम्यक्चारित्र ये तीन आत्मिक रत्न मुक्ति के मार्ग हैं। विज्ञान से सिद्धि (1) "Right belief Right knowledge and Right conduct these tagether constitute the Path to Liberation" (स्वतंत्रता के सूत्र - तत्त्वार्थ सूत्र, आ. कनकनन्दी) (2) दूरदृष्टि (श्रद्धा), पक्का इरादा (ज्ञान), कड़ा अनुशासन (सदाचरण) ये तीन कर्तव्य राष्ट्र का कल्याण करते हैं, एवं इन गुणों से मानव की आत्मा पवित्र होती है। (स्व. इन्द्रिरागाँधी: पूर्व प्रधान मंत्रिणी: भारत) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012072
Book TitleDayachandji Sahityacharya Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Digambar Jain Sanskrit Mahavidyalaya Sagar
PublisherGanesh Digambar Jain Sanskrit Mahavidyalaya Sagar
Publication Year2008
Total Pages772
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size25 MB
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