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________________ कृतित्व/हिन्दी साहित्य मनीषी की कीर्ति स्मृतियाँ भगवान महावीर द्वारा प्रतिपादित अहिंसा दर्शन भगवान महावीर ने सर्वोदय के लिए अहिंसा, अपरिग्रह, अनेकान्त, अध्यात्मवाद, कर्मवाद, आदि उदार सिद्धांतों का प्रसार एवं प्रचार किया। जिनका जीवन में उपयोग कर, न केवल मानव समाज अपितु प्राणी मात्र आत्म हित तथा परहित करने में समर्थ हो सकता है। ये सिद्धांत सर्व शक्तियों के विकास के साथ विश्व में शान्ति स्थापित करने वाले हैं। अशान्त जीवन को शान्त और अज्ञानी जीवन को ज्ञानी बनाने के लिए उक्त सर्व ही सिद्धांतों की जीवन में नितान्त आवश्यकता है। जिस प्रकार विद्यार्थी अपनी अल्पबुद्धि और शक्ति के अनुसार अपार विद्या गुण को सहसा ग्रहण करने में असमर्थ होता है तो भी वह विद्या की कक्षाओं के क्रम से शनै: - शनै: अभ्यास करता हुआ महान् विद्यागुण को ग्रहण कर महान् विद्वान बन जाता है । उसी प्रकार अहिंसा एक विशाल सिद्धांत है विश्व के निर्बल मानव प्राय: अहिंसा जैसे उच्च व्यापक सिद्धांत को अपने जीवन में पालन करने के लिए सहसा असमर्थ होते हैं कारण कि समस्त मानवों के धारणा ज्ञान और आत्मबल एकसा नहीं होता है । तथापि यदि मानव के समक्ष अहिंसा की कक्षाएं उपस्थित कर दी जायें, तो वे मानव अपने बल, विवेक और परिस्थिति के अनुकूल उन कक्षाओं को जीवन में उतारने के लिए समर्थ हो सकते हैं । अहिंसा की सर्वोच्च व्यापक परिभाषा - यत्खलु कषाययोगात्प्राणानां द्रव्यभावरूपाणाम् । व्यपरोपणस्य करणं सुनिश्चिता भवति सा हिंसा ॥ ___ (पुरूषार्थ सिद्धयुपाय श्लोक 43) भावार्थ - क्रोध, मद, छल और लोभ से युक्त मन वचन तथा शरीर के द्वारा अपने तथा दूसरों के अंतरंग प्राणों एवं बाह्य प्राणों का घात नहीं करना अहिंसा है और उनका वध करना हिंसा है। अहिंसा सुखप्रद महान् धर्म है और हिंसा कष्ट प्रद महापाप है। अंतरंग प्राण = आत्मा के ज्ञान दर्शन सुख बल आदि गुण । बाह्य प्राण 1. स्पर्शन, 2 रसना, 3 नासिका, नेत्र, 5 कर्ण, 6 मनोबल, 7 वचनबल, 8 शरीरबल, 9 आयु, 10 श्वास। "आवश्यकता आविष्कार की जननी होती है" इस नीति के अनुसार महावीर ने अहिंसा की कक्षाओं का आविष्कार कर उनको जन समाज के समक्ष रखा और उपदेश दिया - "कि जिस व्यक्ति में जितनी बुद्धि तथा शक्ति है, उसी के अनुसार अपनी - अपनी कक्षाओं को स्वीकार कर अहिंसा व्रत को जीवन में उतारो"। इन सभी कक्षाओं में अहिंसा ही प्रधान लक्ष्य है। अहिंसा की मुख्यत: तीन कक्षाएं हैं - 1. पाक्षिक अहिंसा (अहिंसा के एक देश पालन का अभ्यास), 2 एक देश नैष्ठिक अहिंसा व्रत (नियम पूर्वक अहिंसा का अणुव्रत रूप से दृढ पालन करना), 3 अहिंसा महाव्रत (प्रतिज्ञा की दृढ़ता से अहिंसा का पूर्णरूप से पालन करना ।) -152 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012072
Book TitleDayachandji Sahityacharya Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Digambar Jain Sanskrit Mahavidyalaya Sagar
PublisherGanesh Digambar Jain Sanskrit Mahavidyalaya Sagar
Publication Year2008
Total Pages772
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size25 MB
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