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________________ व्यक्तित्व साहित्य मनीषी की कीर्ति स्मृतियाँ जो कभी भी अपने पढ़ाये विद्यार्थियों को नहीं भूलते और जब भी समय मिलता था तो पंडित जी के पास जाता। उनके समाचार याद करता था। 87, 88 वर्ष की उम्र में भी पंडित जी पैदल उदासीन आश्रम जाते थे। एवं अपनी वाणी से लोगों को स्वाध्याय कराते थे पंडित जी उम्र के हिसाब से अस्वस्थ भी कभी कभी रहते थे। किन्तु अपनी दिन चर्या में बदलाव कभी नहीं आने दिया। वह दिन मोराजी में भगवान बाहुबली के मस्तकाभिषेक का दिन था । सौभाग्य से मैं भी गया था कि अचानक मालूम पड़ा कि पंडित जी का स्वास्थ्य ज्यादा खराब है। उन अंतिम क्षणों में पंडित जी की सेवा का अवसर मिला तब एक सुखद अनुभूति का एहसास हुआ कि पंडित जी में कितनी गंभीरता है जो अपने अंतिम क्षणों में इस नश्वर पर्याय को छोड़ने के लिए ईश्वर आराधना में ध्यान लगाये है। पंडित जी का देहावसान एक समाज एवं देश के लिए बहुत बड़ी क्षति है किन्तु उनके द्वारा पढ़ाये गये छात्र आज भी पूरे देश में सम्मान जनक पदोंपर तथा अच्छे - अच्छे व्यवसायों में कार्यरत है। ऐसे महान गुरु एवं विद्वान के बारे में मुझे कुछ लिखने का अवसर मिला जिसे मैं अपना महान सौभाग्य समझता हूँ ऐसे महान गुरु के प्रति मेरी अश्रुपूरित श्रद्धांजलि अर्पित है। स्वाति नक्षत्र की बूंद के अद्वितीय मोती राकेश जैन "रत्नेश" वर्णी कालोनी सागर (म.प्र.) सागर जिले के शाहपुर ग्राम के पण्डित परिवार में जन्मे पं. जी अपने नाम के अनुरूप दयावान एवं क्षमाशील थे। विनम्रता, सहजता, सरलता सादगी की प्रतिमूर्ति थे। यह एक सुखद संयोग था या पूर्व जन्म के संस्कार से एक ही परिवार में भगवान दास जी के घर आँगन में मथुरा देवी की कोख से पाँच सरस्वती पुत्र उत्पन्न हुए। जो इस धरा पर रत्न की भांति चमके । पाँचों पुत्र अपने क्षयोपशम से जैन धर्म के उत्कृष्ट विद्वान बने । जिन्होंने उस ज्ञान की ज्योति को स्वयं प्रकाशित किया एवं घर, समाज को भी आलोकित किया। पूज्य वर्णी जी की प्रेरणा से इनके पिताजी ने अपने तीन ज्येष्ठ पुत्रों को जैन समाज में जैन धर्म का प्रचार प्रसार हेतु समर्पित कर दिया । उन्हीं में तृतीय पुत्र पंडित दयाचंद जी साहित्याचार्य थे। उनका जीवन बहुत संघर्षमय रहा फिर भी धन लक्ष्मी के प्रति उनका कोई मोह नहीं था तभी तो उन्होंने अल्प वेतन में भी पूज्य गणेश प्रसाद जी वर्णी द्वारा संस्थापित इस संस्कृत महाविद्यालय में सुपरिडेटेन के रूप में एक वर्ष एवं 55 वर्ष तक अध्यापन का कार्य किया। जिसमें 20 वर्ष तक विद्यालय के प्राचार्य पद को भी सुशोभित किया। इतने अधिक समय तक किसी एक संस्था से जुड़े रहना यह उनकी उस संस्था के प्रति गहरी निष्ठा को दर्शाती है जो अपने आप में बहुत महत्वपूर्ण है । वर्ष 2001 में संस्था की ओर से पंडित जी (122) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012072
Book TitleDayachandji Sahityacharya Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Digambar Jain Sanskrit Mahavidyalaya Sagar
PublisherGanesh Digambar Jain Sanskrit Mahavidyalaya Sagar
Publication Year2008
Total Pages772
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size25 MB
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