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________________ व्यक्तित्व साहित्य मनीषी की कीर्ति स्मृतियाँ समय विषयों की अधिकता थी साथ ही पंडिज जी सा. के ऊपर घर की जिम्मेदारियाँ भी थी, फिर भी प्रात: 6 बजे से रात्रि के 8 बजे तक अध्यापन कार्य किया करते थे। बीच का अवकाश उसमें समाहित रहता था। उन्होंने अपने जीवन में, जो विभिन्न स्थानों पर जाकर एवं स्थानीय रूप से समाज को प्रवचन के माध्यम से नई चेतना प्रदान की तथा छात्रों को अध्यापन के रूप में कठिन से कठिन परिश्रम किया वह नीव के पत्थर के समान है। जिस प्रकार नींव का पत्थर त्याग की प्रतिमूर्ति बनकर भी किसी को दिखता नहीं है उसी प्रकार विद्वानों का परिश्रम उनकी उदारता एवं त्याग किसी को दिखाई नहीं देता इस कारण ही समाज एवं छात्रों को अपने गुरुओं का विद्वानों का जो सम्मान करना चाहिए उससे वह वंचित रहते है। यदि पंडित जी सा. शासकीय सेवा में रत होते तो किसी विश्वविद्यालय के कुलपति होकर रिटायर होते परन्तु वर्णी जी के प्रति समर्पित होकर उन्होंने अपना पूर्ण जीवन धार्मिक शिक्षण संस्थानों के लिए आजीवन समर्पित कर दिया। _इसे अपूर्व संयोग ही कहा जायेगा कि आपके पाँचों ही भाई उच्च कोटि के न्याय दर्शन, साहित्य एवं प्रतिष्ठा कार्य के मर्मज्ञ विद्वान थे ये संस्कार आपको अपने पिताजी के माध्यम से प्राप्त हुए थे। मैंने छात्र जीवन एवं अध्यापकीय जीवन भी उन्हीं की छत्र छाया में व्यतीत किया। उनका मार्गदर्शन हमेशा ही अनुकरणीय रहेगा। ऐसे ज्ञान पिपासु जिन्होंने ढलती उम्र मैं पी.एच.डी. करके हम सभी के प्रेरणास्त्रोत बनें। आपके आदर्श हम अपने जीवन में उतार सकें इसी भावना के साथ आपके प्रति श्रद्धा सुमन समर्पित करता हूँ। अनुकरणीय व्यक्तित्व के धनी ज्ञान चंद्र शास्त्री, व्याकरणाचार्य वर्णी भवन मोराजी श्रद्धेय डॉ. पंडित दयाचंद्र जी साहित्याचार्य जैन जगत के ख्याति प्राप्त सुप्रसिद्ध विद्वान् थे आपने अपने जन्म स्थान शाहपुर ग्राम में प्राथमिक शिक्षा प्राप्त की अनन्तर आप सतर्कसुधा तरंगणी संस्कृत पाठ शाला सागर वर्तमान नाम श्री गणेश दिगम्बर जैन संस्कृत पाठशाला सागर महाविद्यालय सागर में प्रविष्ट हुए और क्रमश: अध्ययन करते हुए आपने सिद्धांत शास्त्री साहित्याचार्य तथा एम.ए. की उपाधि प्राप्त की। इस प्रकार आपने जैन सिद्धांत संस्कृत साहित्य,न्याय, व्याकरण आदि महत्वपूर्ण विषयों का गहन अध्ययन किया। अध्ययन के उपरांत आप इसी महाविद्यालय में अध्यापन कार्य करने लगे । अनेकों शिष्यों को Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012072
Book TitleDayachandji Sahityacharya Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Digambar Jain Sanskrit Mahavidyalaya Sagar
PublisherGanesh Digambar Jain Sanskrit Mahavidyalaya Sagar
Publication Year2008
Total Pages772
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size25 MB
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