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________________ व्यक्तित्व साहित्य मनीषी की कीर्ति स्मृतियाँ पूर्ण जीवन देखकर उनकी महानता को देखा जा सकता था । आपने जिस समर्पण भावना के साथ जैन समाज की सेवा हेतु अपना जीवन समर्पित किया है वह श्लाघनीय व स्तुत्य है। आपका बहुचर्चित शोधग्रंथ जो साहित्य क्षेत्र में अपनी प्रसिद्धि का परिचय लहरा चुकी है ऐसी संस्था भारतीय ज्ञानपीठ से प्रकाशित जैन पूजा - काव्य, एक चिंतन का अध्ययन करने का अवसर मिला है । यह महनीय पुस्तक देखकर आपकी साहित्य सपर्या का मूल्यांकन किया जा सकता है । यह कृति निश्चित ही जैन साहित्य ही नहीं अपितु जैनतर साहित्य में भी अपना महत्त्वपूर्ण स्थान रखती है। अपने जीवन के अमूल्य समय का कैसे सदुपयोग किया जावे जो बहुजन हिताय, बहुजन सुखाय, बन सके यह जानने और समझने के लिए डॉ. दयाचंद जी साहित्याचार्य का आदर्श जीवन है । आदरणीय पंडित जी के विशाल कृतित्त्व एवं व्यक्तित्व का मूल्यांकन माँ सरस्वती की उपासना का ही एक अंग है । आपका पूरा जीवन शिक्षा और साहित्याराधना के लिए समर्पित रहा है। उनकी इसी महान् साहित्यिक प्रतिभा को देखते हुए पूज्य उपाध्याय श्री ज्ञानसागर जी महाराज की प्रेरणा से संचालित श्रुत संवर्धन पुरस्कार दिया गया, जो निष्पक्ष समाज सेवा की दृष्टि से उनका उचित मूल्यांकन है। ___बहुआयामी व्यक्तित्व के धनी आदरणीय पंडित दयाचंद्र जी का व्यक्तित्व बहुत विशाल है । आपने अपने जीवन में अनेक महत्त्वपूर्ण कार्य किये हैं । साहित्य और शिक्षा के क्षेत्र में आपका योगदान अत्यंत प्रशंसनीय रहा है। साहित्यिक कार्यों के अतिरिक्त सामाजिक कार्यो में भी आप अत्यधिक व्यस्त रहे हैं । यही कारण है कि प्राचार्य होने के साथ ही साहित्यिक शैक्षणिक तथा सामाजिक संस्थाओं के साथ आपका घनिष्ट सम्बंध रहा है। उनका जीवन अत्यंत धार्मिक, सरल व सेवाभावी रहा है । सादा जीवन व उच्च - विचार को उन्होंने सच्चे अर्थो में चरितार्थ किया है। उनकी कथनी व करनी में कोई अंतर नहीं था। उनकी वाणी में मिठास, कोमलता, सरस हृदयता थी। वे कभी किसी का दिल दुखाना जानते ही नहीं थे। सेवा के क्षेत्र में बिना किसी लोभ-लालच के आगे रहे । यही कारण है कि लोगों का उनके प्रति पूर्ण विश्वास, प्रेम व अपनापन सदैव रहा । उनमें गुरुत्वाकर्षण शक्ति थी, जिससे सभी उनके पास खिंचे आते थे। वे सही मायनों में अजातशत्रु थे। पंडित जी का पूरा जीवन धार्मिक भावना से ओत प्रोत रहा है । आप सच्चे मुनिभक्त थे। अनेक आचार्यो, मुनियों, साधुओं व विद्वानों की आप पर असीम कृपा रही है । सम्पूर्ण विद्वत् जगत् में आपकी गिनती अग्रणी पंक्ति में होती थी। आपकी छत्रछाया, सहयोग व मार्गदर्शन में अनेक छात्रों ने अपना जीवन संवारा है। विद्वानों का आदर सत्कार करना आपकी विशेषता रही है । आप अत्यंत सहिष्णु व संयमी थे। पंडित जी में किसी प्रकार का पूर्वाग्रह नहीं था। ऐसे विशाल गौरवशाली व्यक्तित्व व कृत्तित्व के धनी आदरणीय पंडित जी को समर्पित साहित्य मनीषी की कीर्ति स्मृतियां नामक स्मृति ग्रंथ निश्चित ही साहित्य की मानिदों पर एक नयी इबारत लिखेगा -90 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012072
Book TitleDayachandji Sahityacharya Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Digambar Jain Sanskrit Mahavidyalaya Sagar
PublisherGanesh Digambar Jain Sanskrit Mahavidyalaya Sagar
Publication Year2008
Total Pages772
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size25 MB
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