SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 139
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ व्यक्तित्व साहित्य मनीषी की कीर्ति स्मृतियाँ शालीनता, गरिमा की मूर्ति श्रद्धेय पं. डॉ. दयाचंद जी साहित्याचार्य नेमिचंद रांधेलिया विनम्र परम आदरणीय पं. दयाचंद जी प. पू. गणेश प्रसाद जी वर्णी की शिष्य परम्परा की अंतिम कड़ियों में एक सुप्रतिष्ठित विद्वान, शिक्षक, धर्म एवं समाज के प्रथम श्रेणी के मोती थे। पू. वर्णी जी जो स्वयं 87 वर्ष की पुण्य शाली आयु में समाधिपूर्वक स्वर्ग सिधारे थे, उनके अनेक प्रमुख चोटी के विद्वान शिष्य भी दीर्घ आयु को प्राप्त करने वाले, सौभाग्यशाली थे, जिनमें सर्वप्रथम शिष्य पं. मुन्नालाल जी रांधेलिया न्यायतीर्थ वर्णी सागर (1893-1993) पं. वंशीधर जी व्याकरणाचार्य बीना (सागर), पं. जग मोहन लाल शास्त्री कटनी, पं. पन्नालाल जी साहित्याचार्य , पं. दरवारीलाल जी कोठिया आदि। स्वयं पं. दयाचंद जी भी लगभग (1915-2006) 91 वर्ष की उत्कृष्ठ आयु को पूर्ण हुए थे। इतने लम्बे समय तक जिनसे समाज को चतुर्मुखी लाभ मिला, यह समाज का अहोभाग्य था। पू. पं. जी अपने परिवार में विद्वानों की परम्परा में, स्व. पं. पिता श्री भगवानदास भाई जी एवं पू. माता - श्रीमती मथुराबाई की कोख को गौरवान्वित करने वाले तृतीय पुत्र थे। सिद्धांतशास्त्री जी एवं साहित्याचार्य उपाधि प्राप्त करने वाले, निरंतर अध्ययन करके, एक उनका उदाहरण नई पीढ़ी को है। 75 वर्ष की अवस्था में सन् 1990 में "जैन पूजा काव्य" पर शोध प्रबंध लिखकर 'डाक्टरेट' की उपाधि प्राप्त कर, डिग्री को भी गौरवान्वित किया। 'धर्म दिवाकर' 'साहित्य भूषण' उपाधि से सम्मानित होना तथा 2004 में "श्रुत संवर्धन पुरस्कार " से अलंकृत होना, न केवल श्री दि. जैन संस्कृत महाविद्यालय, गौरवमय हुआ, समस्त जैन समाज भी। 55 वर्ष की निरंतर शिक्षण सेवायें देकर सेवानिवृत होना भी एक अति दुर्लभ उदाहरण है। 12 फरवरी 2006 को, श्री गोमटेश्वर भगवान के महा मस्तिष्क अभिषेक के पुण्य दिवस में समाधिपूर्वक प्रयाण करना, पूर्व जन्म के शुभ संस्कारों का प्रतिफल हम मानते है ।हम जैन लोग पूर्व जन्म के कर्मो की परिणति को मानते है। मेरा पू.पं. जी से लगभग 60 वर्ष से परिचय था, जबकि मैं हाईस्कूल का विद्यार्थी था । मैंने उनको सदैव सादगी से रहते देखा, अत्यंत विनम्र और सभी को आत्मीयता से व्यवहार करते देखा । सामाजिक, धार्मिक कार्यो में अग्रणी रहते ही थे , मेरे पू. पिताश्री पं. मुन्नालाल जी रांधेलिया न्यायतीर्थ वर्णी के पास, (जबकि वे 1939 से 1948 तक संस्था के मंत्री थे) अंतिम समय तक (2 मई 1993) बीच बीच में एवं तात्विक चर्चा करते कुशल क्षेम ज्ञात करने नियमित रूप से आते थे। ऐसे व्यवहारिक पक्ष के धनी व्यक्ति की अस्वस्थ्यता कम ही दृष्टिगोचर होते हैं । यह भी व्यक्ति के आदर्श आचरण का एक उत्तम उदाहरण है। मैं आज 80 वर्ष में चल रहा हूँ, अतः सभी तरह के अनुभवों का भुक्त भोगी एवं साक्षी हूँ। अति श्रद्धास्पद पं. जी. से मेरी विशेष निकटता सन् 1990 से हुई जबकि मैं श्री गणेश दि. जैन -92) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012072
Book TitleDayachandji Sahityacharya Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Digambar Jain Sanskrit Mahavidyalaya Sagar
PublisherGanesh Digambar Jain Sanskrit Mahavidyalaya Sagar
Publication Year2008
Total Pages772
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size25 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy