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________________ व्यक्तित्व साहित्य मनीषी की कीर्ति स्मृतियाँ डॉ. पंडित दयाचंद्र जी साहित्याचार्य - व्यक्तित्व एवं कृतित्व प्रतिष्ठाचार्य पंडित भागचंद्र जैन 'इन्दु' श्री गणेश दिगम्बर जैन संस्कृत महाविद्यालय श्री वर्णी भवन मोराजी सागर के बीसवीं सदी के जाने माने राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त-मनीषी विद्वान स्व. डॉ. पंडित दयाचंद जी 'साहित्याचार्य' के व्यक्तित्व एवं कृतित्व के बारे में जितना भी लिखा जाय कम होगा । छात्रों के प्रति :- पंडित जी ने अपनी कड़ी मेहनत से मोराजी विद्यालय को चमकाया एवं छात्रों के प्रति अत्यधिक स्नेह देकर उनको पढ़ाया। इसी कारण जब से आपने कार्य भार सम्हाला - छात्रों की संख्या में वृद्धि हुई एवं अनेकों छात्र अच्छे विद्वाने बनें । आप न केवल पढ़ाते थे किन्तु छात्रावास की भी बहुत अच्छी तरह से देखरेख करते थे साथ साथ छात्रों को कैसा भोजन मिल रहा है इसको भी जाकर देखते छात्रों की हर तरह से व्यवस्थाओं की जरूरतों की उनके स्वास्थ्य की जानकारी लेते अस्वस्थ्य होने पर उनकी समुचित इलाज की व्यवस्था कराते थे। छात्रों की पढ़ाई की जानकारी उनके अभिभावकों को समय समय पर देते रहना अभिभावकों के आने पर उनसे मधुर व्यवहार करना पंडित जी के जीवन की विशेषता थी । परममुनि भक्त:- पंडित श्री दयाचंद्र जी विद्वान के साथ साथ परम मुनि भक्त थे आपके कार्य काल में आचार्य श्री विद्यासागर जी विराजमान हुए, आर्यिका ऋजुमति का ससंघ वर्षायोग सन् 1993 में हुआ। 1994 में मुनि श्री तरूण यसागर जी मुनि श्री प्रज्ञासागर जी मोराजी विराजे । 3-6-2001 से 14-62001 तक मुनि श्री समतासागर जी के आर्शीवाद से सर्वोदय ज्ञान संस्कार शिविर सम्पन्न हुआ । 9 मई 2002 में आदरणीय श्री विरागसागर जी के द्वारा राजवार्तिक सिद्धांत शास्त्र की वाचना प्रारम्भ हुई। मुनि श्री 108 अजित सागर जी ऐलक 105 श्री निर्भय सागर जी के सानिध्य में 2005 में मोराजी विद्यालय का शताब्दी समारोह सम्पन्न हुआ जिसमें लगभग 300 विद्वानों श्रेष्ठी वर्ग राजनेताओं एवं समाज के गणमान्य नागरिक उपस्थित रहे । इसी से उनकी साधु सन्तों के प्रति आस्था एवं लगन प्रभावित होती है। ऐसे अद्वितीय प्रतिभा के धनी पंडित श्री दयाचंद्र जी हम सभी को प्रेरणा के श्रोत रहे । 1 प्रवचन कला के धनी ओजस्वी वक्ता :- पंडित दयाचंद्र जी एक ओजस्वी वक्ता थे। आपके प्रवचनों को सुनने के लिए समाज दौड़ी दौड़ी आती थी । देश के विभिन्न प्रान्तों मे प्रवचनार्थ आमंत्रित किये जाते थे। अनेकों स्थानों पर उन्हें विशिष्ट सम्मान से सम्मानित किया गया । । श्रद्धा सुमन :- पंडित जी आज हमारे बीच में नहीं है किन्तु हमें उनके जीवन से बहुत प्रेरणा मिलती उनके प्रति श्रद्धा सुमन अर्पित करते हैं । Jain Education International 86 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012072
Book TitleDayachandji Sahityacharya Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Digambar Jain Sanskrit Mahavidyalaya Sagar
PublisherGanesh Digambar Jain Sanskrit Mahavidyalaya Sagar
Publication Year2008
Total Pages772
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size25 MB
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