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________________ व्यक्तित्व साहित्य मनीषी की कीर्ति स्मृतियाँ वामन में विशालता देखना आपके अहंकार शून्य जीवन का एक जीवन्त पाठ था। ऐसे सरस्वती पुत्र थे डॉ. दयाचंद जी कि संघर्ष में हर्ष का अनुभव करते रहे । न जैन समाज सागर से मान सम्मान की बांछा की और न ही किसी बड़े पुरस्कार के लिये प्रार्थना पत्र । एक बार जब मैं उनसे मिलने गया तो कहने लगे - निहालचन्द ! मैंने चतुर्विंशतिसन्धान महाकाव्य का सम्पादन पूरा कर लिया है। और भी कुछ लिखा है। (अब तक साहित्याचार्य जी का भारतीय ज्ञानपीठ से प्रकाशित शोध ग्रन्थ "जैन पूजा काव्य : एक चिन्तन प्रकाशित नहीं हो पाया था।) बाद में प्रकाशित हुआ मुझे आत्मीयता से सारी बातें बता रहे थे। पता नहीं मुझ पर उनका इतना आत्मीय भाव क्यों था! न मैं उनका शिष्य रहा और न ही कभी किसी सन्दर्भ में उनके सामीप्य का लाभ लिया परन्तु इतना अवश्य रहा कि मैं उनकी विनम्रता और सहजता का कायल बन गया था। बा. ब्रह्मचारिणी किरण दीदी उनकी बेटी उनके लिए बेटे से भी ज्यादा सेवा सुश्रुषा में निरत रहीं और उन्हें कभी यह कमी नहीं खटकने दी कि प्रारब्ध ने उन्हें एक बेटा नहीं दिया । सन्तोष रूपी अकूतधन के वे कुबेर थे। स्वाध्याय और व्रताराधना रूप संयम उनके दो सहजीवी मित्र रहे जिनके बल पर वे अपने व्यक्त्वि में सभी सद्गुणों की महक पैदा करते रहे। श्रद्धेय डॉ. पन्नालाल साहित्याचार्य जी के एक सम्मान समारोह में अन्य विद्वानों के साथ मुझे भी उनके चरणों में गुणानुवाद करने का अहोभाग्य प्राप्त हुआ था। उस समय डॉ. दयाचंद जी ने अपने वरिष्ठ विद्वान के प्रति कितना सम्मान का भाव देखा । आज परस्पर विद्वानों में वह आत्मीय भाव कहां देखने को मिल पाता है क्योंकि आज सभी अपने स्वार्थों की गणित में उलझे हुए हैं। डॉ. दयाचंद जी का नि:स्वार्थ और समर्पित व्यक्तित्व का हम “अभिनंदन ग्रन्थ" नहीं निकाल सके परन्तु उनकी अभिवन्दना में जो "स्मृति ग्रन्थ" का प्रकाशन कर उनके प्रति अपनी श्रृद्धांजलि समर्पित कर रहे हैं। कम से कम किरण दीदी के लिए एक विश्वास का उपहार तो अवश्य दे रहे हैं कि उनके पूज्य पिता श्री सागर में रहकर सागर जैसे विशाल हृदय और कर्तृत्त्व के अनुक्षण पुरूष थे। सागर के सुधी विद्वानों ने उनकी भावनाओं का संवेदनस्वर अपने में महसूस किया और देर आये दुरस्त आये" की कहावत चरितार्थ करते हुए स्मृति ग्रन्थ के रूप में एक सही प्रणति उस अक्षर पुरूष को भेंट की। जब मैं उनके शोध प्रबन्ध जैन पूजा काव्य “एक चिन्तन को पढ़ रहा था तो उन्होंने जिन लोगों को याद किया उनमें दमोह के डॉ. भागचन्द जी भागेन्दु प्रथम पुरूष रहे । वैसे उस शोध प्रबन्ध में जितने सहायक रहे सभी को बडी विनम्रता से याद किया था उन्हें बाद में श्रुत सम्बर्द्धन पुरस्कार (सन 2004) भी प्राप्त हुआ जो उनके श्रम का सही मूल्यांकन था । यदि डॉ. दयाचंद जी के व्यक्तित्व को सूत्र रूप में कहूं, तो वे एक निष्कामी ज्ञान सागर और पाण्डित्य के साथ श्रावकोचित संयम एवं चारित्र के धनी व्यक्ति थे। विद्वानों के प्रति वात्सल्य और सम्मान का भाव रखते थे। ऐसे सरस्वती पुत्र को अपनी विनम्र श्रद्धांजलि प्रस्तुत कर प्रणति करता हूँ। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012072
Book TitleDayachandji Sahityacharya Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Digambar Jain Sanskrit Mahavidyalaya Sagar
PublisherGanesh Digambar Jain Sanskrit Mahavidyalaya Sagar
Publication Year2008
Total Pages772
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size25 MB
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