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________________ शुभाशीष / श्रद्धांजलि Jain Education International साहित्य मनीषी की कीर्ति स्मृतियाँ पंडित दयाचंद जी साहित्याचार्य की स्मृतियाँ यहाँ जो फूल खिलते हैं झरेंगे वह सभी निश्चय । यहाँ पर जन्म जो लेते मरेंगे वह सभी निश्चय || अमर रहते बस वह ही निजातम ध्यान जो धरते । मिलन सम्मान भी उनको जो पर हित में सफर करते | सागर जिला मध्य भारत का धर्म नगर कहलाया है । वर्णी जी ने यहाँ शिक्षा का अनुपम दुर्ग बनाया है || यह संस्कृत विद्यालय उत्तम सागर का जीवन दर्पण | इसमें पंडित दयाचंद ने सब जीवन कीना अर्पण || इनके जीवन दर्शन की यह निर्मल चरित्र कहानी है । पर हित सदा विचारा इन ने यह आदर्श निशानी है ।। सरस्वती के वरद पुत्र यह इनका सत जीवन दर्शन । बारम्बार यहाँ करते हम इनका शत शत अभिनंदन ॥ यह दयामूर्ति श्री दयाचंद इनका कुछ हाल बताते है इन जो त्याग किया अब तक कुछ चित्रण सही दिखाते है | है नियर शाहपुर सागर के इस नगरी की अनुपम रचना । तहाँ बना जिनालय अति सुन्दर बिम्बों की वहाँ नहीं गणना ॥ उस नगरी में भगवानदास एक पंडित विज्ञ परम ज्ञाता । उनके सुत पाँच भये सुन्दर सब ही पंडित उत्तम भ्राता ॥ श्री माणिक चंद्र प्रथम सुत थे वह न्याय काव्य के ज्ञाता थे । दूजेत पंडित श्रुत सागर वह भी उत्तम व्याख्याता थे | तीजे सुत पंडित दयाचंद जिनकी यह कीर्ति यहाँ छाई । श्री धरमचंद्र चौथे सुत थे उनने भी यह महिमा पाई ॥ अरू अमर चंद पंचम सुत है जो नगर शाहपुर में रहते । श्री विम्व प्रतिष्ठा अरूविधान सब विधि पूर्वक ही करते | इनके अग्रज सब नहीं रहे उन सबको बारम्बार नमन । अब दयाचंद की स्मृतियों से लिखते है सत जीवन दर्शन || उन्नीस शतक ऊपर पन्द्रह ग्यारह अगस्त ईशा सन् में । है जनम आपका वसुधा पर खुशियाँ छाई थी परिजन में ॥ तुम नब्बे एक बरस तक ही जीवंत रहे इस वसुधा पर । 63 For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012072
Book TitleDayachandji Sahityacharya Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Digambar Jain Sanskrit Mahavidyalaya Sagar
PublisherGanesh Digambar Jain Sanskrit Mahavidyalaya Sagar
Publication Year2008
Total Pages772
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size25 MB
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