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________________ शुभाशीष/श्रद्धांजलि साहित्य मनीषी की कीर्ति स्मृतियाँ विद्वत पीढ़ी की श्रेणी में अजर अमर अब नाम है सागर मण्डल मध्यप्रदेश के शाहपुर ग्राम में महिमा छाई । ग्यारह अगस्त उन्नीस सौ पन्द्रह में नव बसंती नभ में आई तात श्री "भगवानदास' के, गृह मंदिर में स्वाति बनकर आया श्रीमती माँ मथराबाई ने दिव्य परुष को जाया । दया मूर्ति श्री पंडित दयाचंद का शशि सम नाम है । विद्वत् पीढ़ी की श्रेणी में अजर अमर अब नाम है ॥1॥ पाँचों पुत्रों को पाँच पांडवों सम माँ ने जन्म दिया है । "माणिक चंद" "श्रुत सागर" तृतीय दयाचंद उदय किया है । "धर्मचंद" और "अमरचंद"का प्रतिष्ठा में नाम किया है । प्राथमिक शिक्षा पाई दयाचंद ने श्री गणेश काम किया है श्री गणेश संस्कृत महाविद्यालय में पाया जैन धर्म महान है । सिद्धांत शास्त्री साहित्याचार्य से शिक्षा ले वरदान मिला है||2|| मण्डल सागर खुरई नगर में परिणय होकर आये । दिन दूनी और रात चौगुनी महिमा ज्ञान बढ़ाये ।। पाँच सुताओं को जन्म देकर ज्ञान की पिपास बुझाये । चार सुताओं को पढ़ा लिखा कर गृहस्थाश्रम चमकाये | पंचम बेटी "किरण" दीदी वन ब्रह्मचर्य व्रत ले महान है । पूज्य पिता जी की सेवा में रत सेवा श्रम कर अमर नाम है ।।3।। ज्ञानाध्ययन किया निरंतर ज्ञान की गंगा बहाई । साहित्याचार्य ने प्राचार्य बनकर सरस्वती की ज्योति जलाई । कर्मठ वीर दया के सागर ने समाज सेवा कर ख्याति पाई। सम्यग्ज्ञान की ज्योति जलाकर शिक्षा दे ख्याति बढ़ाई । त्याग भाव से सेवाएं दें किया गजब का काम है । कर्मठयोगी ज्ञानी ध्यानि विद्वत् का किया गजब सम्मान है ।।4।। हरीसिंह गौर विश्वविद्यालय से डाक्ट्र रेड पद पाया । जैन पूजा काव्य चिंतन पर लिख विद्यालय नाम दमकाया ॥ 60 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012072
Book TitleDayachandji Sahityacharya Smruti Granth
Original Sutra AuthorN/A
AuthorGanesh Digambar Jain Sanskrit Mahavidyalaya Sagar
PublisherGanesh Digambar Jain Sanskrit Mahavidyalaya Sagar
Publication Year2008
Total Pages772
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size25 MB
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