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________________ समयसुन्दर का विचार-पक्ष ४७३ है और कहा है कि इसके फल प्रत्यक्ष दिखाई देते हैं। यह पाप का नाशक और सुख का कर्ता है। पुण्य के बिना बोधि-बीज की प्राप्ति नहीं हो सकती। १६.२ पापकर्म ___अशुभ कर्म को पाप कहते हैं। ज्ञानावरण आदि अशुभ कर्म ही पाप हैं। जीव को पापकर्म के कारण ही विविध प्रकार के कष्ट उठाने पड़ते हैं। समयसुन्दर ने जैन परम्परा में स्वीकृत अठारह प्रकार के पापों का उल्लेख किया है। वे हैं - १. प्राणातिपात, २. मृषावाद, ३. अदत्तादान, ४. मैथुन, ५. परिग्रह, ६. क्रोध, ७. मान, ८. माया, ९. लोभ, १०. राग, ११. द्वेष, १२. कलह, १३. अभ्याख्यान, १४. पैशून्य, १५. रति-अरति, १६. परपरिवाद, १७. मायामृषावाद, १८. मिथ्यात्वशल्य। समयसुन्दर ने पुण्य-कर्म को करणीय बताया है और पाप-कर्म को त्याज्य। १७. कषाय कषाय आत्मा का वैभाविक धर्म है। यह मन की विकृत दशा है। समयसुन्दर ने चार कषाय बताये हैं - १. क्रोध, २. मान, ३. माया और ४. लोभ। ये चारों ही आत्मघातक विकार हैं। उन्होंने इन चारों कषायों को पाप कहा है। उनका कहना है कि कषाय जैसी घातक अन्य कोई वस्तु नहीं है। विष तो मनुष्य को केवल एक बार ही मारता है, किन्तु कषाय अनन्त समय तक मारता है। १७.१ क्रोध यह क्षमा का शत्रु है। समयसुन्दर के विचारानुसार किसी भी व्यक्ति को क्रोध नहीं करना चाहिये, क्योंकि यह क्रोधी को तो आतप्त करता ही है, साथ ही साथ दूसरे को भी तपाता है। क्रोध करते हुए तप-जप करना अर्थहीन है, वह लेखे नहीं लग सकता। समयसुन्दर कहते हैं कि व्यक्ति पहले तो क्रोध ग्रस्त हो जाता है, लेकिन बाद में पछताता है; फिर दुःखी होकर कर्म को दोषी बताता है। अतएव क्रोध का परित्याग कर देना चाहिये और उसके स्थान पर क्षमा धारण करनी चाहिये। १. समयसुन्दर कृति कुसुमांजलि, पुण्य छत्तीसी, पृष्ठ ५३२ २. वही, श्री आदीश्वर ९८ पुत्र प्रतिबोध गीतम्, पृष्ठ २५३ ३. (क) वही, अठारह पापस्थानक गीतम्, पृष्ठ ४८३ (ख) षडावश्यकबालावबोध (इस कृति में अष्टादश पापों की सविस्तार व्याख्या है।) ४. श्रावकाराधना (पत्र २) ५. वही (पत्र १) ६. समयसुन्दर कृति कुसुमांजलि, क्षमा-छत्तीसी, पृष्ठ ५२५ ७. वही, पृष्ठ ५२५ ८. वही, क्रोधनिवारण गीतम्, पृष्ठ ४४९ For Private & Personal Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.012071
Book TitleMahopadhyaya Samaysundar Vyaktitva evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabh
PublisherJain Shwetambar Khartargaccha Sangh Jodhpur
Publication Year
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size19 MB
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