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________________ ४७२ महोपाध्याय समयसुन्दर : व्यक्तित्व एवं कृतित्व विश्वास नहीं था कि ईश्वर मनुष्य का अच्छा या बुरा कुछ भी कर सकता है। प्रत्येक जीव कर्माधीन है। यदि वह शुभ कर्म करता है, तो उसे शुभ फल की प्राप्ति होगी और यदि वह अशुभ कर्म करता है, तो उसे अशुभ फल की प्राप्ति होगी। समयसुन्दर लिखते हैं कि कर्म-मुक्ति ही मोक्ष है। आत्मा ज्ञानावरणीय, दर्शनावरणीय, वेदनीय, मोहनीय, आयुष्य, नाम, गोत्र और अन्तराय - इन आठ कर्मों से आवृत्त है। कर्मों के व्यपगत होते ही आत्मा शाश्वतगति रूप मोक्ष को प्राप्त करता है। यदि जीव को हम चन्द्रमा मानें, तो कर्म को मेघ कह सकते हैं। कर्म रूपी मेघ का आवरण हो जाने से आत्मारूपी चन्द्रमा की ज्ञानादि रूप किरणें प्रकट नहीं हो सकतीं। जैसे-जैसे कर्म-मेघ आत्म-चन्द्र के आगे से हटेंगे, वैसे-वैसे आत्मा रूपी चन्द्रमा की विभा प्रकट होती जाएगी। जिस समय कर्म-मेघ पूर्णतः हट जायेंगे, आत्मा मुक्त हो जायेगी। समयसुन्दर के मतानुसार कर्म से छुटकारा पाना बड़ा कठिन है। यह अतुल बलशाली है। तीर्थङ्कर, चक्रवर्ती, वासुदेव, बलदेव आदि अतुलबली महापुरुष भी कर्म के चंगुल में फँसे हैं। उनका उपदेश है, 'जीव अछइ करमें तूं जीतो, पिणहिव जीपि तूं कर्म'६ अर्थात् पहले तो तुम कर्म से विजित हो गये थे, अब तुम कर्म को विजित करो। किये हुए कर्मों को भोगे बिना अथवा क्षय किये बिना छुटकारा नहीं मिल सकता। समयसुन्दर ने मुख्यतः कर्म के दो भेद माने हैं - पुण्यकर्म और पापकर्म। १६.१ पुण्यकर्म __ शुभ कर्म को पुण्य कहते हैं। समयसुन्दर ने अभयदान, सुपात्रदान, अनुकम्पादान, साधु-श्रावक-धर्म, तीर्थ-यात्रा, शील-धर्म, तप, ध्यान, सामायिक, पौषध, प्रतिक्रमण, देव-पूजा, गुरु-सेवा – ये पुण्य के भेद बताए हैं। उन्होंने पुण्य करने के लिए प्रेरणा दी १. वही, प्रस्ताव सवैया छत्तीसी, पृष्ठ ५१५-१६ २. (क) वही, कर्म छत्तीसी, पृष्ठ ५२६ (ख) कल्पलता (कल्पसूत्र-टीका), पृष्ठ १५१ ३. सप्तस्मरणस्तववृत्ति, प्रथमस्मरण, पृष्ठ २ ४. समयसुन्दर कृति कुसुमांजलि, कर्मछत्तीसी, पृष्ठ ५३२ ५. थावच्चासुत ऋषि-चौपाई (खण्ड १, ढाल ५ से पूर्व दूहा ४) ६. सप्तस्मरणस्तववृत्ति, प्रथमस्मरण, पृष्ठ २ ७. (क) समयसुन्दर कृति कुसुमांजलि, कर्मगीतम्, पृष्ठ ४४० (ख) वही, कर्मछत्तीसी, पृष्ठ ५२६ ८. कल्पलता, पृष्ठ १५१ ९. समयसुन्दर कृति कुसुमांजलि, पुण्य-छत्तीसी, पृष्ठ ५३२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.012071
Book TitleMahopadhyaya Samaysundar Vyaktitva evam Krutitva
Original Sutra AuthorN/A
AuthorChandraprabh
PublisherJain Shwetambar Khartargaccha Sangh Jodhpur
Publication Year
Total Pages508
LanguageHindi
ClassificationSmruti_Granth
File Size19 MB
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